लोकतंत्र में यह पहली बार देखने को मिला है कि जिस व्यक्ति को जो तरीका बेहतर लग रहा है, वो उसी को ढाल बनाकर, उसके समर्थन में हर संभव तर्क देते हुए उसे जायज ठहरा रहा है। बॉलीवुड में ‘नारीवाद’ की नई परिभाषा गढ़कर महिलाओं को अपमानित करने वाली स्वरा भास्कर और विवादों का रिश्ता नया नहीं है। ‘वीरे दी वेडिंग‘ फिल्म में खुलकर अपने ‘मन की बात‘ करने वाली स्वरा भास्कर को बहुत आसानी से नारीवाद का चेहरा बना कर पेश किया जाने लगा है। यह वर्तमान समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि महिलाओं के अधिकारों को उसके शारीरिक सुख और जबरन फूहड़पन मात्र से जोड़कर पेश कर देने से वो समाज में महिलाओं की नई पहचान दिलाने वाले ठहराए जाने लगते हैं।
इस फिल्म में स्वरा भास्कर ने हस्तमैथुन के दृश्य को फिल्माया था और इस दृश्य को एक बड़े वर्ग ने महिलाओं के प्रति रूढ़िवादिता को ख़त्म करने वाला एक ऐतिहासिक कदम भी बताया था। इस दृश्य के बाद से ही स्वरा भास्कर एक बड़ा नाम बन गई। युवाओं को नारीवाद, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता आदि मामलों पर ‘नई दिशा’ देने की जो जिम्मेदारी स्वरा भास्कर, कॉमेडी के नाम पर स्वयं कॉमेडी, यानी कुणाल कामरा, मल्लिका दुआ और AIB जैसे नव-क्रांतिकारियों ने उठाई है, वह मात्र एक दोयम दर्जे का भोंडापन है।
आम चुनावों के बीच नव-क्रांतिकारियों की तर्ज पर ही सोशल मीडिया पर तख्तियों के माध्यम से अपने विचार प्रकट करने वाले एक ट्विटर यूज़र ने मतदाताओं से इस चुनाव में समझदारी से अपने मताधिकार का प्रयोग करने की बात उठाई है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी राय भी दी है कि अपनी ऊँगली का इस्तेमाल ‘वीरे दी वेडिंग’ फिल्म वाली स्वरा भास्कर की तरह ना करें, बल्कि समझदारी से मतदान करने के लिए करें। लेकिन इस अपील से लिबरल समूह और खुद स्वरा कुछ नाराज नजर आ रहे हैं।
Awwwwwww!!!!! My trolls are hard at work again, sweating it out in the heat to popularise my name.. You guys are SO dedicated & sweet!!! ????❣️❣️❣️❣️ Don’t mind the slut-shaming guys.. their imagination is a bit limited.. but loving the effort you two ?????? pic.twitter.com/fRqjGZ3b0q
— Swara Bhasker (@ReallySwara) April 29, 2019
बस इस एक सन्देश के बाद लिबरल गैंग में माहौल ‘धुआँ-धुआँ’ हो गया। ‘प्लाकार्ड गाय’ को यौन कुंठित और बीमार बताया जाने लगा है। यहाँ तक की स्वरा भास्कर को उन्ही की फिल्म के दृश्य की याद दिलाने पर वो भड़क जाती है और उनका ट्रॉल समूह लोगों को बीमार साबित करने पर उतर आता है।
कॉन्ग्रेस के पार्टी ‘प्रवक्ता’ कुणाल कामरा के ‘कॉमेडी’ के नाम पर बनाए जाने वाले वीडियो से अभिव्यक्ति की आजादी, लोकतंत्र की हत्या, लिबरल, एनार्की, फासिज़्म, ‘माई लाइफ माई रूल्ज़’ जैसे शब्दकोश विकसित करने वाले लोगों का दूसरों की अभिव्यक्ति की आजादी से किलस जाना नई बात नहीं है।
नव-लिबरल्स की इस नई फसल को यह समझना अभी बाकी है कि अभिव्यक्ति की आजादी हमेशा आत्यंतिक होती है और यह दोनों ओर से समान रूप से जायज ही होती है। सामान्य शब्दों में इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि स्वरा भास्कर की अभिव्यक्ति को उनका ‘अधिकार’ और प्लाकार्ड का समर्थन करने वालों की अभिव्यक्ति को यौन कुंठा और बिमारी बता देना ही सबसे बड़ी मानसिक कुंठा है।
यह हास्यास्पद बात है कि स्वरा भास्कर जैसे लोग आज उन लोगों के समर्थन में खड़े हैं जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी बयान देने के बाद आज खुलकर चन्दा माँगकर संसद पहुँचने का सपना देख रहे हैं। FoE को गाली अगर किसी ने बनाया है, तो वो यही लोग हैं। लेकिन जब आज यही अभिव्यक्ति इनके विपरीत काम कर रही है, तब इन्हें पसीना छूट रहा है।
हालाँकि, प्रतिक्रिया करने वालों को भी समझना चाहिए कि स्वतन्त्रता और अधिकारों के साथ ही जिम्मेदारी भी होती है। कथित लिबरल गैंग की तरह ही यदि अपने हर अधिकार का शोषण के स्तर तक इस्तेमाल किया जाने लगे तो उस अधिकार की प्रासंगिकता पर ही सवाल लगने शुरू हो जाते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यदि आज मजाक बनकर रह गई है, तो उसमें सबसे बड़ा योगदान इंटेरनेट पर सस्ते कॉमेडियंस के वीडियो देखकर बने इन नव-लिबरल्स का ही है।