मैं समय हूॅं। जिन्ना के जमूरों की कहानी सुनाने जा रहा हूॅं। ये कथा मेरे सिवाय कोई सुना नहीं सकता। क्योंकि मैं ही बिहारी हूॅं। यह कथा मियॉं मुशर्रफ से लेकर इमरान तक की है। एटम बम के सुतली बम के भाव गिरने की है।
यह कथा 2.5 बिहारियों की भी है, जिनके मंतर से जमूरों के हाथ कटोरा आया। 1.5 ने तो ‘आतंक के अन्नदाता’ की उनके ही घर लैंड कर लंका लगाई। 1 ने वाया-मार्फत मंतर भेजा, क्योंकि विरोधी कहते हैं उसके आँत में दॉंत है। तीनों के पराक्रम से आज एटम बम पाव, आधा पाव का हो चुका है।
एटम बम का नाम सुन देह सिहर गया। पर उन 2.5 देह का सोचिए जिनसे एटम बम सिहर गया। बत्ती नहीं जली। पर्दा उठाता हूॅं परिचय कराता हूॅं। एक बिहारी अपने लालू, दूसरे सुशासन वाले नीतीशे कुमार और आधे मौसम विज्ञानी रामविलास, जिनके बंगले मने लोजपा का चुनाव निशान में ही सत्ता की चाबी रहती है।
परिचय हो गया तो कथा 16 बरस पीछे ले चलता हूॅं। 2003 का साल। महीना अगस्त। तब लालू आईआईएम- हार्वर्ड मास्टरी करने नहीं गए थे। रामविलास नाखून कटा शहीद ही हुए थे। 1.5 बिहारी की इस जुगल जोड़ी को मियॉं परवेज मुशर्रफ ने घर बुलाया। मियॉं साहेब चच्चा सैम के कम होते खैरात से दुबले थे।
1.5 बिहारी ने मौका लपक मियॉं साहेब का कान फूॅंक दिया। धीरे-धीरे आउ-माउ-चाउ मॉडल आया। तेजी से मियाँ साहब रुखसत हो गए। इधर, सुशासन आया और चच्चा सैम का खुला बाजार लाने वाले के कैबिनेट में 1.5 इन थे। खान साहेब के आते-आते आतंक का अन्नदाता समझ चुका था कि आउ-माउ-चाउ में चच्चा बला बॉंटने का जिगरा नहीं है। इधर, सुशासन में विदेशी बिजनेस मॉडल परचम लहरा शटर गिरा चुका था।
इस मॉडल की खोज सुशासन की जोत पहली बार जगने से हुई। चौक-चौक पर ठेका सजा। सवा रुपए का भॉंग पचाने वालों पर विदेशी जादू करने आई। लेकिन, जेब अठन्नी-चवन्नी से भरे थे और विदेशी भाव गिराने को तैयार नहीं। सो सुशासन की किरपा से ‘ठेकादारों’ ने नया नुस्खा खोजा। पव्वा का सील टूटा और 5-10 के भाव बूॅंदों में बिकने लगी विदेशी। वो भी ऐसी चढ़ती कि पूछिए मत जनाब!
फिर बहार आई। विदेशी बंद हो गई। ठेकादार भी सुशासन का बिजनेस मॉडल ले गिरिराज मेल पर सवार हो पाकिस्तान पहुॅंच गए, जहॉं कटोरा में चवन्नी गिराने वाले कद्रदान भी न थे। ठेकादारों से खान साहब को सुशासन का विदेशी बेचो फॉर्मूला हाथ लगा। खान साहेब को पहली बीवी विदेशी लाने का अनुभव भी था। इसलिए फॉर्मूला चोखा लगा।
लेकिन, बेचने को कुछ न था। आखिर में गोदाम से एटम बम निकला। खान साहेब चिल्लाए एटम बम मार दूॅंगा। भाव न चढ़ा। छुक-छुक करते रेल वाले शेख साहेब आए। अंडा और करंट खाकर शेख साहेब ने मुनादी की- हमने एटम बम काट लिया। छोटे-छोटे। पाव-आधा पाव के।
खान साहेब ने भी ताव खाया। टोकरी में सजाए एटम बम। बीच बाजार खड़े हुए। आवाज लगाई ले लो…एटम बम। 5 का 2 ले लो। पाव भर ले लो…आधा पाव ले लो। लाल-नीले-हरे ले लो। लेकिन, सुतली के भाव आया चीनी बाग के एटम बम का बाजार न चढ़ा। कब फुस्स हो जाए चीनी भी न जाने!
खान साहेब ऑफर लाए। बाय एटम बम गेट हूर फ्री। वही हूर जिसे पाने की लबलबाहट में लौंडे खुद को उड़ा लेते हैं। तब भी भाव ना चढ़ा। खान साहेब ने नया पासा फेंका। भाजी में टिमाटर के बदले ही डाल लेना। वैसे भी अब कबाब कहॉं नसीब। भाजी बनाने के लिए हूर तो पहले से ही फ्री दे रहा हूॅं। लेकिन, लौंडे न आएँ।
इधर, सुशासन का नया फॉर्मूला आ गया “क्यूँ करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार।” उधर, 2.5 कॉकटेल के असर से जिहाद भड़ाम और हूर के ख्वाब भी दूभर। थक हार खान साहेब भी बोले- हम से न हो पाएगा।
कहते हैं एक बिहारी सौ पर भारी। कहते तो यह भी हैं कि तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा। यहॉं तो 2.5 ही 20 करोड़ पर भारी पड़े। अब मैग्सेसे वाले बिहारी चाहे तो अपने 2.5 बंधु-बांधव के इस पराक्रम पर स्क्रीन काली कर लें। मैं तो अपनी गति में हूॅं, सो कथा को पूर्णविराम लगाता हूॅं।