Friday, November 15, 2024
Homeहास्य-व्यंग्य-कटाक्षख़लीफ़ा मियाँ... किसाण तो वो हैं जिन्हें हमणे ट्रक की बत्ती के पीछे लगाया...

ख़लीफ़ा मियाँ… किसाण तो वो हैं जिन्हें हमणे ट्रक की बत्ती के पीछे लगाया है

नेता बोला; हाँ वई, हैं तो एक ही नाम। ख़लीफ़ा आगे लगे चाहे पीछे। पर बात वो ना है। बात ये है कि अब समय आ गया है कि हम अपणी ताक़त दिखाएँ।

बॉर्डर पर जय किसान सभा। लॉकडाउन और धूप के कारण कुम्हलाए लोग ऊँघ रहे हैं। कुछ खड़े होकर दिल्ली की ओर देख रहे हैं। कई सप्ताह से व्यवस्था डगमगाई सी हुई है। इनसे दूर एक टेंट में नेता और उप नेता चिंतन में व्यस्त हैं।

उप नेता; उस्ताद जी, हमने सब ट्राई कर लिया। भाषण दिया, धमकी दी, गाँवों से लाने के लिए लोगों से ज़बरदस्ती कर ली, ट्रैक्टर रैली की, मसाज करवाया, लंगर खाए, गीत गाया, भांगड़ा किया… चुप रहे, माने कृषि सम्बंधित सारी चालें चल लीं पर ये गोरमिंट तो सुण ई नई रई। इधर गर्मी बढ़ती जा रही है। आँखें बंद किए चिंतन-ग्रस्त नेता बोला; ये तो है। पर तू चिंता न कर। ऊपर से ऑर्डर ना भी आया तो अपणे पास और भी बहुत त्रीके हैं गोरमिंट से अपणी माँग मनवाने के।

उप नेता बोला; ओर कोण सा तरीक़ा बच रहा उस्ताद जी? नेता बोला; बस तू चुप हो ले और देख कि कल मैं क्या करता हूँ। उप नेता ने अपने नेता की गंभीरता पर एक नज़र डाली और धरने के शुरुआती दिनों से लेकर अब तक एक-एक करके चली गई सारी चालें मन ही मन याद किया। फिर इस प्रश्न पर पहुँचा कि; करने के लिए बचा क्या है अब? ये कल क्या करने वाला है? आत्मदाह तो नई कर लेगा?

नेता ने उसे कुछ सोचते हुए देख लिया और मन में इस लघु चिंतन पर सवाल पूछने की तैयारी करने लगा। वो पूछने ही वाला था कि; तू भी कभी-कभी सोचता है क्या? तब तक उप नेता सतर्क हो गया और उसने सोचना बंद कर दिया।

दूसरे दिन नेता मंच पर पहुँचा। सामने ‘किसानों’ की भीड़ थी। भीड़ को देखकर उसने ताजे-ताजे रिकी पोंटिंग को बोल्ड किए हरभजन सिंह की तरह अपने दोनों हाथ हवा में उठाए और बोला; भाइयों यह सरकार किसाणों का खून चूसती ई जा रही है। हम इतने दिनों तक धरणे पर बैठे, ट्रैक्टर रैली की, लाल क़िला फ़तह किया, ख़लीफ़ा मियाँ से ट्वीट करवाया, भांगड़ा किया… लेकिन इस सरकार के काण के नीचे जूं नई रेंक रई। अब समय आ गया है कि हमें हमारी ताक़त दिखानी होगी।

नीचे से एक आवाज़ आई, ख़लीफ़ा मियाँ नई मियाँ ख़लीफ़ा।

नेता बोला; हाँ वई, हैं तो एक ही नाम। ख़लीफ़ा आगे लगे चाहे पीछे। पर बात वो ना है। बात ये है कि अब समय आ गया है कि हम अपणी ताक़त दिखाएँ। नीचे से एक आवाज़ और आई; तो अभी तक क्या दिखा रहे थे? जो दिखाया वो ताक़त नई थी? नेता झेंप गया। बोला; ऐसा नई है। ताक़त तो वो भी थी। पर अब कुछ और करना है।

किसी ने पूछा; क्या करना है? नेता बोला; अब हमें एग्रिकल्चर धरणा देणा पड़ेगा। आज यहाँ मैं सरकार को चेतावनी दे रहा हूँ कि उसणे क़ानून वापस ना लिए तो हम एग्रिकल्चर धरणा करेंगे।

थोड़ी देर के लिए लोग आपस में खुसर-फुसर करने लगे। नेता समझ गया कि उसकी बात लोगों को समझ नहीं आई। उसने घोषणा की; एग्रिकल्चर धरणे से मेरा मतलब है कि जब तक सरकार सारे क़ानून वापस नहीं लेती तब तक हम खेती बंद कर देंगे।

वहाँ उपस्थित चैनल के संवाददाता, कैमरामैन और यूट्यूबर ब्रेकिंग न्यूज़ की तैयारी करने लगे। सबने मन ही मन कहा; ये लगा मास्टर स्ट्रोक। अब सरकार को पता चलेगा कि किसान की ताक़त क्या होती है।

इधर शाम को अपने टेंट में नेता और उप नेता खुद को दर्शन के हवाले किए बैठे बात कर रहे थे। सामने टेबल पर गिलास रखे हुए थे जिनमें लस्सी रखी थी। उप नेता बोला; उस्ताद जी, आपने तो किसाणों को ट्रक की नई बत्ती के पीछे लगा दिया। आप तो बिलकुल ट्रक ड्राइवर की तरह स्मार्ट हो।

नेता बोला; तू इत्ते सालों से है साथ हमारे और फिर भी मुझे ट्रक ड्राइवर समझता है? अरे बेवक़ूफ़ हम ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे हैं टिकरी बॉर्डर पर नई। उप नेता झेंप गया। बोला; सोरी उस्ताद जी सोरी। मैं भूल गया था कि आप तो किसाण हो। फिर अचानक उसे लगा कि उससे फिर गलती हो गई। उसने सुधारते हुए कहा; मेरा मतलब किसाण नेता उस्ताद जी।

नेता मुस्कुराते हुए बोला; नेता! केवल नेता ! किसाण तो वो हैं जिन्हें हमणे ट्रक की बत्ती के पीछे लगाया है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘गालीबाज’ देवदत्त पटनायक का संस्कृति मंत्रालय वाला सेमिनार कैंसिल: पहले बनाया गया था मेहमान, विरोध के बाद पलटा फैसला

साहित्य अकादमी ने देवदत्त पटनायक को भारतीय पुराणों पर सेमिनार के उद्घाटन भाषण के लिए आमंत्रित किया था, जिसका महिलाओं को गालियाँ देने का लंबा अतीत रहा है।

नाथूराम गोडसे का शव परिवार को क्यों नहीं दिया? दाह संस्कार और अस्थियों का विसर्जन पुलिस ने क्यों किया? – ‘नेहरू सरकार का आदेश’...

नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के साथ ये ठीक उसी तरह से हुआ, जैसा आजादी से पहले सरदार भगत सिंह और उनके साथियों के साथ अंग्रेजों ने किया था।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -