साथियो! आजादी के कई सालों बाद भी ये देखने को मिलता था कि केवल जो अमीर और पूँजीपति किस्म के व्यक्ति थे, उनका ही अपहरण किया जाता था या बस उन्हें ही लूटा जाता था। देश की बहुजन आबादी इस चीज के एहसास से सदियों से वंचित थी। खास तौर पे बिहार में तो हालात और विकट थे। ऐसे अन्याय भरे माहौल मे फिर उदय होता है गरीबों के नायक श्री लालू प्रसाद यादव का।
जनसुलभ अपहरण
आज जो बिहार के जातिवादी, सवर्णवादी और मनुवादी लालू जी से इतनी नफरत करते हैं, तो उसका कारण यही है कि पहले जो अपहरण और लूट केवल अमीरों और सामंतों तक सीमित थी, उसे लालू जी ने अपने कुशल नेतृत्व में गरीबों तक पहुँचा दिया। बिहार में सामाजिक न्याय की ऐसी क्रांति आई कि मात्र ₹2000 कमाने वाले टीचर्स का भी अपहरण होने लगा।
समाजवादी लालू ने ही तोड़ी थी अपहरण और लूट की अभिजात्यता
ये सामंतवाद की प्रताड़ना झेल रहे गरीब-गुरबा लोगों के लिए एक सुकून देने वाली क्रांति थी। लूट का ऐसा सामाजवादी विकेंद्रीकरण किया गया कि लोग ₹5000 जैसी छोटी रकम भी लेकर चलना मुनासिब नहीं समझते थे और इतने की भी DD बनवा कर चलते थे। राह चलते लुट जाने का भय जो पहले केवल अमीर और अभिजात्यों तक सीमित था, उसे गरीबों के मसीहा श्री लालू प्रसाद यादव ने एक-एक गरीब तक पहुँचाने का काम किया। हालाँकि, गोदी मीडिया और सवर्णवादी समाज ने यह तथ्य कभी नहीं बताया लेकिन, जानकार तो यह भी बताते हैं कि जिस ‘कैशलेस इकोनॉमी’ का नारा बुलंद कर के वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी हर जगह खुद की वाह-वाही करवा रहे हैं, उसका मॉडल भी लालू की ही उपरोक्त वर्णित नीतियों का हिस्सा है।
असल में, ये लालू यादव के समाजिक न्याय का ही कमाल था कि अब हर गरीब और शोषित भी अपहरण कर लिए जाने के उसी डर के साथ बेचैनी से जी सकता था, जो पहले केवल समाज के ऊँचे तबके तक सीमित हुआ करती थी। अपहरण के लालूकरण नामक इस क्रांति के बारे में एक मशहूर शायर ने भी लिखा था, “जब 85% गरीब ने भी महसूस किया अपहरणकर्ता का राज, उसे जलन से सामंतवादी कहते हैं जंगल राज।”
GST से पहले लालू लेकर आए थे SRT यानी, ‘सरल रंगदारी टैक्स’
लालू जी इतने बड़े दूरदर्शी थे कि उनके सरकार द्वारा किए गए कई कामों को ही मोदी सरकार ने नाम बदलकर लागू कर दिया है। उदाहरण के तौर पर GST ही ले लीजिए, जिसके तहत ‘एक देश, एक टैक्स’ की व्यवस्था करके मोदी जी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, उसे लालू जी ने कई साल पहले ही लागू कर दिया था। 90 के दशक में बिहार में किसी भी कार्य को करने के लिए, चाहे वो भवन निर्माण हो या दुकानदारी, सब के लिए एक अत्यंत ही ‘सरल रंगदारी टैक्स’ चुकाना पड़ता था। यह एक ‘सिंगल विंडो क्लीयरेंस’ जैसी व्यवस्था हुआ करती थी। जहाँ रंगदारी के एकमुश्त भुगतान के तुरंत बाद ही आप अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हो जाते थे।
आज नरेंद्र मोदी, टैक्स चोरी और काला धन को देश की बहुत बड़ी समस्या बताते हैं, लेकिन लालू जी के राज में रंगदारी वसूली की इतनी चाक-चौबंद व्यवस्था थी कि अगर किसी भी व्यक्ति ने रंगदारी ना देने या कम देने जैसा अनैतिक कार्य किया, उसे तत्काल प्रभाव से क्षेत्रीय रंगदारी वसूली अधिकारी द्वारा दंडित किया जाता था। दंड विधान में इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति की हत्या से लेकर, उसकी दुकान, मकान को बम से उड़ा देने जैसी, कठोर सजाओं का प्रावधान था। इससे यह भी साबित होता है कि लालू राज में बिहार में न्याय व्यवस्था कितनी प्रभावी थी।
आज कई अर्थशास्त्री बताते हैं कि देश GST के बदलाव को झेलने के लिए तैयार नहीं था, जिस कारण देश का काफी आर्थिक नुकसान हुआ। लेकिन, गोदी मीडिया ये कभी नहीं बताता है कि रंगदारी टैक्स के रूप में लालू जी ने इस सरल टैक्स प्रणाली की शुरुआत 20 साल पहले ही कर दी थी, ताकि आज के समय में GST को अपनाते हुए व्यापारी किसी उलझन में ना फँसें।
परमादरणीय लालू जी ऐसे करिश्माई मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने कालजयी मुख्यमंत्रीत्व काल में पर्यावरण, पर्यटन से लेकर नारीवाद तक जैसे आज के गंभीर सामाजिक मुद्दों पे आज से 20 वर्ष पूर्व ही कई क्रांतिकारी कदम ऊठा लिए थे। तब इन विषयों पर पूरे विश्व मे कोई सोचता भी नहीं था। किंतु हमारा गैर राजनीतिक गोदी मीडिया हमेशा गरीबों के नायक की इन उपलब्धियों को अपनी ‘एक कठिन सवाल पूछने’ की कुंठा के कारण नजरअंदाज कर देता है या दबाने की कोशिश करता है।
पर्यावरणविद ‘चाराहारी’ लालू ने रोका था ग्रीन हाउस उत्सर्जन, गोदी मीडिया ने छुपाया
विश्व ने 1992 में ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए क्योटो प्रोटोकाॅल पास किया और आप जानते होंगे कि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन का एक बड़ा कारण मवेशी हैं। ऐसे में श्री लालू जी ने समाज कल्याण के लिए यह बीड़ा उठाया और जिस जेनेटिकली मोडीफाईड चारे को खाकर मवेशी ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन कर ग्लोबल वॉर्मिंग करते थे, उसे लालू स्वयं डकार गए। इस प्रकार आप देखेंगे कि भगवान शिव ने जिस प्रकार मानव कल्याण के लिए हलाहल निगल लिया था, लालू ने भी उसी प्रकार समाज के लिए सारा चारा तक खा लिया था।
यह जानकार आपको आश्चर्य होगा कि जिस ‘बड़े कदम’ को विश्व ने 1992 में क्योटो प्राॅटोकाॅल के रूप में अपनाया, वो काम दूरदर्शी लालू जी ने 1980 में ही चाईबासा के कोषागार से शुरू कर दिया था। शिव जी की तरह लालू जी ने इस संसार की भलाई के लिए ₹900 करोड़ के चारे को डकारा और उस दिन से ‘चाराकंठ’ रूप में जाने गए।
लालू राज में ‘शेल्टर हाउस’ सुविधा से लेस थे बिहार के दियारा-देहात
आजकल ईको पर्यटन और रूरल पर्यटन का बड़ा क्रेज है। कहने की जरूरत नहीं है कि ये भी लालू जी की नीतियों में ही शामिल था। 90 के दशक में कई अपराधी पड़ोस के राज्यों से बिहार के देहात में छुपने के लिए आते थे। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के नामी बदमाश श्रीप्रकाश शुक्ला ने UP पुलिस के STF से बचते हुए कई महीने मोकामा के दियारा में बिताया था। जहाँ नरेंद्र मोदी की पर्यटन नीतियाँ केवल पाँच सितारा होटल के मालिकों और पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाने वाली हैं, वहीं लालू जी की पर्यटन नीति गरीब, किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फायदा पहुँचाने वाली थी।
‘वीमेन एम्पावरमेंट’
वर्तमान का एक और ज्वलंत समाजिक मुद्दा जिस पर लालू जी ने वर्षों पहले राह दिखाई थी, वो है नारीवाद। आज जहाँ अमेरिका अभी अपनी पहली महिला राष्ट्रपति का इंतजार कर रहा है, लालू जी ने अपनी सत्ता का त्याग कर राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की। मशहुर अमेरिकी टीवी सीरीज ‘हाऊस ऑफ कार्ड्स’ भी लालू जी के जीवन से ही प्रेरणा लेता है। केविन स्पेसी ने लालू जी द्वारा राबड़ी जी को मुख्यमंत्री बनाने के कदम से ही सीख ली है। तभी तो कहते हैं, “लालू जो आज सोचता है, अमेरिका वो बीस साल बाद सोचता है।”
(यह व्यंग्य राघवेंद्र प्रताप सिंह द्वारा लिखा गया है)