पूरा देश को इस्तीफे का इन्तजार था धोनी का, लेकिन इस्तीफ़ा आया है कॉन्ग्रेस के राजपरिवार से। एक बार फिर राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है और साबित कर दिया है कि वो वाकई में जिम्मेदारियों से और पार्टी अध्यक्ष पद की एक्टिंग करते हुए दुखी हो चुके हैं। जिस तरह से साबू को जब गुस्सा आता है, तब किसी ग्रह पर ज्वालामुखी फूटता है, ठीक उसी तरह से जब राहुल गाँधी को जब इस्तीफ़ा आता है, तब किसी ना किसी ग्रह पर ज्वालामुखी फूटता है।
राहुल गाँधी का यह इस्तीफ़ा तब सामान्य घटना होती अगर इस से सिर्फ राहुल गाँधी अकेले प्रभावित हो रहे होते। जबकि उनके एक इस्तीफे पर कई ऐसे लोगों का भविष्य टिका है, जो राहुल गाँधी के दम पर विश्वविजय के अभियान का सपना देख रहे थे।
प्रसिद्ध इतिहासकार (कम कहानीकार ज़्यादा) नामचन्द्र गुहा ने नाम न बताने की शर्त पर कहा है कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी अगले चुनाव से पहले-पहले ब्रेग्जिट से बागी राष्ट्रों के शीर्ष नेतृत्व से भी लगातार सम्पर्क बनाकर चल रहे हैं और सम्भावनाएँ हैं कि ‘पतंजलि यूरोपियन संघ’ की स्थापना कर के कम से कम 4 महाद्वीपों को इसकी सदस्यता की शपथ दिलवाकर वहाँ भी अपनी सरकार बनाने का दावा करने वाले हैं। लेकिन यह सब तभी संभव हो पाता अगर कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में राहुल गाँधी एक अमर ज्योति की तरह डटकर खड़े रहते और कॉन्ग्रेस की नाव डुबोने में भाजपा की कंधे से कन्धा मिलाकर मदद करते।
इस बार जिस दृढ़निश्चय के साथ राहुल गाँधी अपने इस्तीफे के फैसले पर अड़े हुए हैं, उससे भाजपा और तमाम गाँधी परिवारविरोधी शक्तियों में निराशा की लहर छाई हुई है। राहुल गाँधी का आज का इस्तीफे वाला ट्वीट पढ़ने के बाद से भाजपा कार्यकर्ता एक दूसरे से खुलकर बात नहीं कर रहे हैं और किसी भी सवाल का जवाब सिर्फ ‘जय श्री राम’ कहकर ही दे रहे हैं।
कुछ कार्यकर्ताओं का तो यहाँ तक भी कहना है कि अब वो केदारनाथ की ध्यान गुफा जाकर ही जीवनयापन करेंगे क्योंकि राहुल गाँधी के इस्तीफे के बाद से अब राजनीति में ‘फन’ गायब हो जाएगा। उन्हें आज भी राहुल गाँधी की वो प्रतिज्ञा याद है, जिसमें उन्होंने वायदा किया था- “मैं ये मजा पूरे देशवासियों को देना चाहता हूँ।”
कुछ गुप्त सूत्रों का तो यह भी कहना है कि इस इस्तीफे के पीछे जो कारण है वह असल में यह है कि राहुल गाँधी अब उस BHEL के मोबाइल की तलाश में जा रहे हैं, जिसका जिक्र उन्होंने अपनी चुनावी रैलियों में किया था।
शेयर मार्केट में गिरे आलू से सोना बनाने वाली मशीन के भाव
राहुल गाँधी के इस इस्तीफे का प्रभाव इतना शक्तिशाली था कि इसका असर सिर्फ भाजपा कार्यालय तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि शेयर मार्केट में भी इसके हलके झटके महसूस किए गए। टीशर्ट और बनियान बेचकर पत्रकारिता में अपनी जड़ें स्थापित करने वाली वेबसाइट ‘दी झोलाटॉप’ के मशहूर व्यर्थशास्त्री ने इस मामले की पड़ताल करते हुए पाया कि उन लोगों ने अब ‘आलू से सोना मशीन मेकर्स-ब्रदर्स’ वाली कम्पनी से हाथ खींच लिए हैं, जिन्हें यकीन था कि आज नहीं तो कल, यह मशीन राहुल गाँधी जी के नेतृत्व में जनता को सौंप दी जाएगी। लेकिन गरीब आदमी के लिए यह स्वप्न देखने वाले युगपुरुष के इस्तीफे के बाद यह कम्पनी डूबने के कगार पर है और शेयर मार्किट से भी समाचार ठीक नहीं आ रहे हैं।
मोदी जी नहीं कर पाएँगे कभी दिल से माफ़
राहुल गाँधी के इस्तीफे देने की घटना से पीएम मोदी विशेष तौर पर दुखी हैं। जब राहुल गाँधी के इस्तीफे पर उनकी क्या जानने के लिए मीडियाकर्मी उनके आवास पर पहुँचे, तो मोदी जी ने कहा- “हालाँकि, यह राहुल गाँधी जी का व्यक्तिगत मसला है। फिर भी, देशहित के ऊपर उन्होंने अपना व्यक्तिगत हित रखा है, जिसके लिए मैं उन्हें दिल से कभी माफ़ नहीं कर पाउँगा।”
यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी जी जब भी किसी को दिल से माफ़ नहीं कर पाते हैं तो कुछ समय बाद ही वह व्यक्ति संसद में शपथ लेते हुए देखा जाता है। हो सकता है कि राहुल गाँधी पर भी इसी तरह से कोई कृपा बरसे और वो आजीवन नरेंद्र मोदी जी को धन्यवाद देते नजर आएँ।
अमित शाह ने बुलाई उच्चस्तरीय आपात बैठक
राहुल गाँधी के इस्तीफे की खबर से कार्यकर्ताओं के गिरे हुए मनोबल को देखकर अमित शाह ने तुरंत एक्शन लेते हुए एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई है। इस बैठक में कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए विशेष मोटिवेशनल सेशन चलाए जाएँगे। साथ ही कुछ ऐसे मोटिवेशनल गुरुओं के द्वारा भाषण दिलवाए जाएँगे, जो हाईस्कूल में छात्रों के फेल होने पर उन्हें ‘चिल’ करने की नसीहत देते हैं।
कॉन्ग्रेस के नए पार्टी अध्यक्ष को देखकर फूट-फूटकर रोए आडवाणी जी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कॉन्ग्रेस ने युवा की जगह अब महा-वरिष्ठ अध्यक्ष को नेतृत्व देने का फैसला ले लिया है और यह नाम है- मोतीलाल वोरा। हालाँकि वोरा जी का इस बात पर यह कहना है कि उन्हें तो इस बारे में कोई जानकारी तक नहीं है। अब कॉन्ग्रेस की जिम्मेदारी तो यही बनती है कि वो किसी भी तरह से वोरा साहब को कम से कम 2024 चुनाव की दहलीज तक अध्यक्ष पद पर बने रहने को मजबूर कर सकें। एक झलक कॉन्ग्रेस के संभावित अध्यक्ष जी पर –
फिलहाल तो मीडिया के सूत्रों की बात को वोरा जी ने दबा दिया है लेकिन यदि वाकई में मोती लाल वोरा कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष इस अवस्था में बनते हैं, तो ये देखकर भाजपा की मार्गदर्शक मंडली में बैठे लाल कृष्ण आडवाणी जी को अभी भी अपनी पार्टी बदलने पर विचार करना चाहिए।