भारत में कुछ लोगों के भीतर पाकिस्तान के लिए अथाह ‘प्रेम’ समय-समय पर देखने को मिलता रहता है फिर चाहे दोनों देशों के मध्य परिस्थितियाँ कितनी ही गंभीर क्यों न हों। बीते दिनों पुलवामा हमले से बाद देश में पाकिस्तान को लेकर काफ़ी आक्रोश देखने को मिला। बच्चे-बच्चे के मन में पाकिस्तान के प्रति गुस्सा और नाराज़गी थी। ऐसे संवेदनशील माहौल में भी कुछ लोगों को देश की भावनाओं से तनिक भी फर्क़ नहीं पड़ा।
इस सूची में वैसे तो कई नाम हैं, जिन्होंने पाकिस्तान का समर्थन करके राष्ट्रभावना पर निशाना साधा। लेकिन हालिया नाम इसमें बॉलीवुड अदाकारा सोनी राज़दान का है। ‘सर’, ‘सड़क’ और ‘राजी’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकीं सोनी राज़दान को आज भारत ने एक ऐसी पहचान दी है, जिसके बलबूते वो आए दिन विवादित बयान देकर चर्चा का विषय बन जाती हैं।
सोनी राज़दान की हाल ही में ‘नो फादर्स इन कश्मीर’ नाम की फिल्म आने वाली है। इसके प्रमोशन पर उन्होंने पाकिस्तान जाकर रहने तक की बात बोल डाली। सोनी राज़दान का कहना है कि जब भी वह कुछ बोलती हैं तो ट्रोल का हिस्सा बन जाती हैं। उन्हें देशद्रोही कहा जाता है। इसलिए कभी-कभी वह सोचती हैं कि उन्हें पाकिस्तान ही चले जाना चाहिए। वह वहाँ पर ज्यादा खुश रहेंगी। सोनी की मानें को पाकिस्तान का खाना भी बहुत अच्छा है।
सोनी राज़दान का इस दौरान यह भी कहना रहा कि वह अपनी मर्जी से पाकिस्तान में छुट्टियाँ भी मनाने जाएँगी। उनकी मानें तो उन्हें ट्रोलर्स के पाकिस्तान भेजने वाली बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।
पाकिस्तान में सुकून-चैन और अच्छा खाना ढूँढने वाली सोनी रज़दान का यह बयान दर्शाता है कि उन्हें देश में क्या हो रहा है और देश में कैसी स्थितियाँ हैं, इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। अपने पति महेश भट्ट की तरह उनका ज़हन भी पाक की नुमाइंदगी ही करता है।
इस बात में कोई दो-राय नहीं कि यदि वह देश और धर्म की भावनाओं के विरोध में जाकर बयानबाजी करेंगी तो ट्रोल का हिस्सा बनेंगी ही। इसके अलावा जरूरी है कि वह केवल छुट्टियाँ मनाने के लिहाज से ही नहीं बल्कि जीवन बिताने के लिहाज़ से भी पाकिस्तान में जाकर रहें। तभी शायद उन्हें इस बात का अंदाजा होगा कि जिस आतंक को पनाह देने वाली सरजमीं की तारीफों के वे पुलिंदे बाँध रही हैं, वो उन्हें कैसे इस तरह के विवादित बयान देने की छूट देता है।
मलाला जैसी तथाकथित प्रोग्रेसिव फेमिनिस्टों के उदाहरण हमारे सामने पहले ही आ चुके हैं, जिन्होंने पाकिस्तान का नागरिक होने के बावजूद भी पाकिस्तान में ‘हिंदू बहनों’ पर हुए अत्याचार पर सवाल तक नहीं उठाया। क्योंकि उन्हें मालूम था कि वहाँ पर पसरी मजहब और आतंक की कट्टरता उन्हें इसकी छूट नहीं देता है।
गलती सोनी राज़दान जैसे लोगों की नहीं है, गलती हमारे देश में निहित उदारता की है, जिसके कारण आज लोग आलोचना के नाम पर राष्ट्र भावना से खिलवाड़ करते हैं। यदि पाकिस्तान जैसा रवैया भारत में अपनाया जाता तो शायद इस तरह के बोल कभी भी बुलंद न हो पाते जो भारत में रहकर पाकिस्तान में खुशी को ढूँढते फिरते हैं। लेकिन हमारा देश सहिष्णु है और आगे की सोचता है। पाकिस्तान तो अपनी मौत खुद मरेगा – यह बात प्रधानमंत्री मोदी भी कह ही चुके हैं। तो हम वैसे तुच्छ देश की मानसिकता पर गौर ही क्यों करें! गौर तो सोनी राज़दान को करना चाहिए अपने शब्दों पर लेकिन…
जरा गौर कीजिए सोनी राज़दान के शब्दों को, जो उन्होंने अपने बयान में कहा, “मैं भारत के पूरी तरह हिंदू देश बनने के खिलाफ हूं। पाकिस्तान में मिला जुला कल्चर नहीं है, इसी वजह वह बेहतर देश नहीं बन सका।” अरे मैडम! जब वो बेहतर देश नहीं है तो वहाँ क्या घास छिलने जाएँगी आप? और सवाल यह भी कि अगर चली जाती हैं (जिसकी संभावना कम है, क्योंकि आप धूर्त हैं, मौकापरस्त हैं) तो क्या ऐसी ही बातें पाकिस्तान की बहुसंख्यक आबादी वाले समुदाय के बारे में बोल सकती हैं?