खिलौने बच्चों के मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और बच्चों को मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक रूप से स्थिरता देते हैं। दुनिया भर में खिलौनों का कारोबार लगभग 8000 अरब रुपए का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी केवल 40 अरब रुपयों की है।
भारत में आयातित खिलौनों में चीनी खिलौने शीर्ष पर हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल अगस्त के मन की बात के अंक में कहा कि खिलौने ऐसे होने चाहिए जिनके रहते बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी। ऐसे खिलौने बनाए जाएँ, जो पर्यावरण के भी अनुकूल हों।
दरअसल हमारे देश में चीन से आयातित खिलौने प्लास्टिक या हानिकारक केमिकल से बने होते हैं। जिनकी क्वालिटी काफी खराब होती है। पिछले साल ही क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से कराए गए टेस्टिंग सर्वे में खुलासा हुआ है कि चीन से मँगाए गए खिलौने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और वह सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करते।
इन्हीं सारे घटनाक्रमों के बीच अभी कुछ ही दिनों पहले केंद्र सरकार ने देश का पहला टॉय फेयर यानी खिलौनों का मेला आयोजित किया। ये मेला 27 फरवरी से 2 मार्च तक चला। इस वर्ष कोरोना वायरस के चलते ये मेला वर्चुअली आयोजित किया गया।
इस वर्चुअल आयोजित मेले में 10 लाख से अधिक रजिस्ट्रेशन हुए। हमारे देश में भी कई ऐसे खिलौने हैं, जिनकी ब्रांडिंग और पोजिशनिंग करके उन्हें विश्व स्तर पर पहचान दिलाई जा सकती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए देश में कुल 8 टॉय मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर का निर्माण हो रहा है। अभी योजना के अंतर्गत कर्नाटक और मध्य प्रदेश में 2 टॉय क्लस्टर बनाए गए हैं।
भारत में बनने वाले प्रसिद्ध और अनोखे खिलौने
कोंडापल्ली के खिलौने– आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के कोंडापल्ली इलाके में यह खिलौने लगभग 400 सालों से बनाए जा रहे हैं। इन खिलौनों को बनाने वाले लोगों को आर्य क्षत्रिय कहते हैं। इन खिलौनों को भारत सरकार की ओर से जीआई टैग मिल चुका है। इन खिलौनों में दशावतारा और डांसिंग डॉल बहुत प्रसिद्ध है।
नातुनग्राम के खिलौने– पश्चिम बंगाल के वर्दमान और कोलकाता में इन विशेष खिलौनों का निर्माण किया जाता है। इन खिलौनों में उल्लू बहुत पसंद किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन खिलौनों को घर में रखने से उन्नति होती है। इनमें से कुछ खिलौने बंगाल के भक्ति आंदोलन से भी जुड़े हुए हैं।
बत्तो बाई की गुड़िया– यह गुड़िया मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में बनाई जाती है। इसे सरकार की ओर से जीआई टैग देने के लिए तैयारी चल रही है। यह गुड़िया आदिवासी हस्तकला की पहचान है। बत्तो बाई की गुड़िया के साथ यह मान्यता है कि इसे किसी कुँवारी लड़की को देने पर उसकी जल्दी शादी हो जाती है।
तंजावुर की गुड़िया– तमिलनाडु के तंजावुर में बनाई जाने वाली इस गुड़िया की खास बात यह है कि यह अपनी मुंडी और कमर हिलाती है। इन खिलौनों को कुछ खास कारीगर तैयार करते हैं। यह दिखने में बहुत सुंदर होती है।
ऐसी कई खिलौने हमारे देश में मौजूद हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। देशवासियों ने जैसे चाइनीज सामानों का बहिष्कार किया है, वैसे ही चाइनीज खिलौनों का भी बहिष्कार किया जाना चाहिए।
भारते के इन खिलौनों की बिक्री बढ़ने से देश में लघु उद्योग को ताकत मिलेगी। तो फिर भूलिए पावर रेंजर, डोरेमोन, शिनचैन को… और तैयार हो जाइए बच्चों को तंजावुर डॉल और दशावतार जैसे भारतीय खिलौने दिलाने के लिए।
लेखक: सुशान्त प्रताप सिंह, IIMC-दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं।