प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच महाबलिपुरम में मुलकात हुई। हालाँकि, इस बारे में कुछ विशेष बताने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मीडिया से आपको पल-पल का अपडेट मिलता रहा। इसीलिए, हम उनके हैंडशेक और कूटनीति की बातें न करते हुए शुक्रवार (अक्टूबर 9, 2019) की शाम दोनों की मौजूदगी में मामल्लपुरम के शोर मंदिर में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम की बात करेंगे। इस दौरान कलाक्षेत्र ने कुल 6 प्रस्तुतियाँ दी। इन सभी प्रस्तुतियों के गहरे अर्थ थे। इसकी कुछ ऐसी बातें हैं, जिसके बारे में आपको जानना चाहिए। शोर मंदिर इस ऐतिहासिक पल का गवाह बना।
जिस कलाक्षेत्र के कलाकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने प्रस्तुतियाँ दी, उसकी संस्थापक रुक्मिणी देवी थीं। कार्यक्रम के दौरान रुक्मिणी देवी का नाम भी गूँजा। तीसरे परफॉरमेंस के दौरान उनकी कोरियोग्राफी की चर्चा हुई। उस प्रस्तुति की बात हम आगे करेंगे, लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि भारत-चीन के बीच अनौपचारिक समिट के दौरान जिस रुक्मिणी देवी का नाम मंच से लिया गया, वो एक साधारण नाम नहीं है। आप जान कर भले ही चौंक जाएँ लेकिन क्या आपको पता है कि रुक्मिणी देवी ने भारत की राष्ट्रपति का पद ठुकरा दिया था?
रुक्मिणी देवी राज्यसभा के लिए नामित की जाने वाली पहली महिला थीं। वह 2 बार राज्यसभा सांसद रहीं। तमिलनाडु के ‘मंदिरों का शहर’ मदुरै में जन्मीं रुक्मिणी नृत्य और नाटकों को कोरियोग्राफ करती थीं। लेकिन, भरतनाट्यम में पारंगत होने की उनकी ललक इतनी बढ़ गई कि बाद में वह भारत के सबसे महान शख्सियतों में शामिल हुईं। ‘इंडिया टुडे’ ने उन्हें उन 100 लोगों की सूची में शामिल किया, जिन्होंने भारत को एक नया आकार दिया। 1935 में उन्होंने अपना पहला स्टेज परफॉरमेंस दिया और उसके बाद से वह कभी नहीं रुकीं।
नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर सीवी रमन ने तो उनके इस परफॉरमेंस की तुलना हिमालय की ऊँचाई के सदृश आकर्षण से की। जो देश अपनी नृत्य शैलियों को भूलने लगा था और यहाँ तक कि भरतनाट्यम को अश्लील तक मानने लगा था, उस देश में रुक्मिणी देवी ने न सिर्फ़ इसे पुनर्जीवित किया बल्कि उसे पुनर्स्थापित कर जन-जन में लोकप्रिय बनाया। रुक्मिणी देवी कलाक्षेत्र और नृत्य से इतनी ज्यादा जुड़ गई थीं कि 1977 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने उन्हें भारत का राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव दिया, उन्होंने इसे तुरंत नकार दिया। वजह एक ही थी- यह उन्हें उनके काम से दूर कर देता, कला से दूर कर देता।
इतनी महान शख्सियत का नाम और काम, दोनों ही उनकी मृत्यु के बाद चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर महाबलिपुरम के शोर मंदिर में ऐसा गूँजा कि उसकी आवाज़ दिल्ली से लेकर बीजिंग तक सुनाई दी। उस कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति रुक्मिणी देवी द्वारा कोरियोग्राफ किए गए रामायण डांस-ड्रामा का एक भाग था। रुक्मिणी देवी ने इसे 6 भाग के सीरीज में कोरियोग्राफ किया था। ‘महा पट्टाभिषेकम’ के जिस भाग का मंचन मोदी-जिनपिंग के सामने शोर मंदिर के प्रांगण में किया गया, उसे ‘सेतुबंधनम’ के नाम से जाना जाता है। इसमें वानर सेना द्वारा रामेश्वरम से लंका तक सेतु बनाने का दृश्य है।
कलाक्षेत्र ने इस दौरान कबीरदास के एक भजन को लेकर भी प्रस्तुति दी। यह भजन भी श्रीराम से ही जुड़ा है। इस दौरान पहली प्रस्तुति ‘अलरिप्पू’ नृत्य की थी। इसके बाद ‘पुरप्पाडु’ की प्रस्तुति हुई, जिसमें कई तरह की भाव-भंगिमाओं के साथ नृत्य किया जाता है। प्रस्तुतियों का अंत एक तमिल गाने से हुआ, जो वैश्विक शांति और सद्भाव को बढ़ावा देता है। कुल मिला कर देखें तो रुक्मिणी देवी द्वारा स्थापित संस्था ने इस ऐतिहासिक पल में चार चाँद लगाने और इसे सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे, कबीर के जिस भाजन पर प्रस्तुति दी गई, उसके बोल इस प्रकार हैं:
भजो रे भैया राम गोविंद हरी।
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी॥
जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी॥
संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी॥
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सम्मान में प्रधानमंत्री @narendramodi ने करीब आधे घंटे के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया है। संत कबीर रचित मशहूर भजन ‘भजो रे भैया राम गोविंद हरी’ भी इस दौरान पेश किया जाएगा। कबीर ने भगवान राम की आऱाधना में इस भजन की रचना की थी।
— Brajesh Kumar Singh (@brajeshksingh) October 11, 2019
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के पौत्र पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गाँधी के मुताबिक रुक्मिणी देवी पशु-अधिकारों के लिए हमेशा समर्पित रहीं। एक बार वह किसी रेलवे स्टेशन पर खड़ी थीं, तभी उन्हें एहसास हुआ कि कोई उनकी साड़ी खींच रहा है। जब उन्होंने देखा तो वह पिंजरे में बंद एक बन्दर था जो बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा था। रुक्मिणी देवी के अनुसार, वो उस समय भले ही कुछ नहीं कर सकती थीं लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि इस एक घटना ने उनको एक मिशन सौंपा है। जानवरों पर क्रूरता के रोकथाम के लिए उन्होंने 1952 में संसद में एक प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश किया, जिसकी पंडित नेहरू ने भी प्रशंसा की।
गाँधी लिखते हैं कि रुक्मिणी देवी और मोरारजी देसाई में कुछ समानताएँ थीं। दोनों ही शाकाहारी थे, अल्कोहल नहीं लेते थे और ब्राह्मण थे। दोनों ही मार्क्सवादी और सोशियलिस्ट विचारधारा के समर्थक थे। राष्ट्रपति बनाने वाले प्रस्ताव के बारे में गोपालकृष्ण गाँधी कुछ यूँ बताते हैं:
“1977 में अचानक से रुक्मिणी देवी को मोरारजी देसाई का कॉल आया। उस समय राष्ट्रपति का पद खाली पड़ा था। देसाई ने रुक्मिणी देवी से पूछा कि क्या आप प्रेजिडेंट बनेंगी? रुक्मिणी देवी ने पूछा किस संस्था या संगठन का प्रेजिडेंट? जब मोरारजी कहा- ‘भारत की राष्ट्रपति’, तब उन्होंने नकारने में वक़्त नहीं लगाया। रुक्मिणी देवी ने बाद में कहा था कि नंगे पाँव चलने वाली एक महिला भला राष्ट्रपति भवन में ऐसे कैसे कर पाएगी? उन्होंने आगे पूछा कि बन्दूक और युद्ध साजो-सामान से नफरत करने वाली एक महिला लगातार अस्त्र-शस्त्र धारी अंगरक्षकों से घिरी कैसे रह सकती है? एक शाकाहारी महिला विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को मीट कैसे खिलाएगी?”
तो ऐसी थी रुक्मिणी देवी की शख्सियत। आज तक भारत के इतिहास में शायद वह ऐसी अकेली हस्ती हैं, जिन्होंने देश का राष्ट्रपति बनने से इनकार कर दिया। एक तमिल महिला विश्व पटल पर चमकीं और भारत का नाम रोशन किया। आज अगर चीन के राष्ट्रपति के सामने भारत ने यह प्रदर्शित किया कि सैंकड़ों-हज़ारों वर्ष पुरानी नृत्य कलाएँ भी हमनें सहेज कर रखी हैं तो इसमें रुक्मिणी देवी का योगदान है। उन्होंने कई लोगों को भरतनाट्यम की शिक्षा देकर इसे विलुप्त होने से बचाया।