Sunday, April 28, 2024
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सरयू नदी में स्नान, फिर हनुमान गढ़ी और कनक भवन में पूजा… इसके बाद सिर्फ 20 मिनट में बन गई रामलला की आँखें: अरुण योगीराज ने बताया कहाँ से मिली प्रेरणा

“आँखों को गढ़ने का काम शुरू करने से पहले मुझे सरयू नदी में स्नान करना पड़ा और हनुमान गढ़ी और कनक भवन में पूजा के लिए जाना पड़ा। मैं बहुत उलझन में था क्योंकि मुझे पता था कि 10 तरह की आँखें कैसे बनाई जाती हैं। फिर मैंने उनकी आँखों को बनाया, जिसमें चमक दिखती है।"

अयोध्या में रामलला अपने जन्मस्थान पर विराजमान हो गए हैं। रामलला की मूर्ति को बनाया है मशहूर मूर्तिकार अरुण योगीराज ने। अरुण योगीराज ने बताया है कि रामलला की मूर्ति को बनाने की प्रेरणा उन्हें अयोध्या में ही मिली। उन्होंने पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर देने वाली रामलला की आँखों को बनाने में उन्हें सिर्फ 20 मिनट का समय लगा। दरअसल, उन्होंने एक खास मुहूर्त में रामलला की आँखों को बनाया था।

मीडिया चैनल विओन के साथ बातचीत में अरुण योगीराज ने मूर्ति के निर्माण की पूरी कहानी बयान की। अरुण योगीराज ने बताया, “शुरू के दो माह मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं रामलला का चेहरा किस तरह बनाऊँ। ये दीपावली का दिन था, और मैं अयोध्या में था। मैंने यहाँ त्यौहार मनाते हुए बच्चों को देखा, उनके चेहरों को देखकर ही मुझे रामलला का चेहरा बनाने की प्रेरणा मिली।”

अरुण योगीराज ने आगे कहा, “रामलला की आँखों के लिए मेरे पास सिर्फ 20 मिनट का समय था। ये समय मुहूर्त के हिसाब से था।” उन्होंने बताया कि आँखों को बनाने के लिए उन्होंने पवित्र अनुष्ठान भी किए। उन्होंने कहा, “आँखों को गढ़ने का काम शुरू करने से पहले मुझे सरयू नदी में स्नान करना पड़ा और हनुमान गढ़ी और कनक भवन में पूजा के लिए जाना पड़ा। इसके अलावा, मुझे काम के लिए एक सोने की चिनाई वाली कैंची और एक चाँदी का हथौड़ा दिया गया। मैं बहुत उलझन में था क्योंकि मुझे पता था कि 10 तरह की आँखें कैसे बनाई जाती हैं। फिर मैंने उनकी आँखों को बनाया, जिसमें चमक दिखती है।”

एक बंदर हर रोज रामलला को देखने आता

अरुण योगीराज ने बताया कि जब मैं मूर्ति बना रहा था, तब एक माह तक एक बंदर हर दिन एक ही समय पर स्टूडियो आता था। वो मूर्ति को बनाने का काम देखता था और फिर चुपचाप वहाँ से चला जाता था। वो हर शाम 4 से 5 बजे के बीच आता था।

अरुण योगीराज ने दावा किया, “मुझे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद एक बंदर गर्भगृह में आया और कुछ मिनट तक वहाँ बैठा और फिर चला गया।” उन्होंने कहा, “मैं प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति के साथ बैठा था और इसे देख रहा था और मुझे लगा कि यह बहुत अलग दिखाई दे रही है और ऐसा नहीं लग रहा है कि मैंने ही इसे बनाया है।”

योगीराज ने कहा कि पहले दिन से उनका लक्ष्य एक ऐसी मूर्ति बनाने का था, जो भारत के लोगों से जुड़ सके और उन्हें मंदिर की समिति द्वारा चुने जाने की चिंता नहीं थी। अरुण योगीराज ने कहा कि वे चाहते थे कि मूर्ति बहुत ही सुंदर और भव्य हो।

“मैं चाहता था कि मूर्ति देखकर लोगों को भगवान राम की याद आ जाए।”

उन्होंने बताया कि भगवान राम की मूर्ति का चेहरा बनाने के लिए उन्होंने अयोध्या में बच्चों के चेहरे से प्रेरणा पाई थी। योगीराज की मेहनत का नतीजा यह हुआ कि रामलला की मूर्ति बहुत ही सुंदर और भव्य बनी है। मूर्ति की आँखें बहुत ही आकर्षक हैं। लोगों ने मूर्ति की आँखों की तारीफ की है।

उस देश में, जहाँ प्रभु श्री राम सर्वत्र पूजनीय हैं, उनकी मूर्ति बनाने के लिए चुने गए मूर्तिकारों में से एक होना अपने आप में एक उपलब्धि है। मूर्तिकार अरुण योगीराज ने निश्चित तौर पर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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