जो वामपंथी समाज हिन्दू धर्म में जातिवाद का ढोल पीट कर अपने तरह-तरह के स्वार्थ सिद्ध करता है उसको कहीं न कहीं काँवड़ यात्रा एक बड़ा और कड़ा संदेश देती है। पिछली रिपोर्टों में जमीनी तौर पर जुटाई जानकारी से हमने ये बताया कि शिव सबके हैं। इनके साथ इस यात्रा में यह साबित हुआ कि काँवड़ यात्रा न सिर्फ हिन्दुओं में जातिवाद का खंडन करती है बल्कि यह भी बताती है कि हिन्दू धर्म में लिंग भेद का कोई स्थान नहीं है।
मुजफ्फरनगर से हरिद्वार रोड पर बागोवाली चौराहे के पास आराम कर रहे काँवड़ यात्रियों से हमने सवाल किया कि क्या किसी ने उनकी जाति पूछी? इस पर उन्होंने बताया, “हरिद्वार से ले कर अब तक लगभग 100 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं हम। हमसे किसी ने जाति का नाम भी नहीं लिया। हर कोई एक दूसरे को भोले कह कर ही बुला रहा है। इस यात्रा में लग ही नहीं रहा कि जाति होती भी है।”
काँवड़ यात्रा में शामिल किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी माँ ने ऑपइंडिया को बताया, “मेरा खुद का जन्म दलित परिवार में हुआ था। आज मैं जूना अखाड़े के पवित्र आश्रम में सम्मान के साथ रुकी हूँ और किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर की पदवी पर हूँ।”
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी ने ऑपइंडिया को बताया, “जिसे हिन्दू धर्म जाति व्यवस्था में बँटा दिखाई देता है वो यहाँ आए। हम संतों को भी बेवजह जातिवाद के नाम पर बदनाम किया जाता है जबकि हमने सिर्फ समाज को जोड़ने का काम किया है। हरिद्वार में अनगिनत लंगर चल रहे हैं। न उसमें खाने वाले की कोई जाति पूछ रहा है और न ही खिलाने वाले की।”
हरिद्वार के कथावाचक पवन शास्त्री ने ऑपइंडिया को बताया, “जातिवाद के नाम पर महज राजनीति करने वाले कुछ लोग ही हिन्दू धर्म को बदनाम करते हैं। मैंने अनगिनत काँवड़ वेदमंत्रों से अभिमंत्रित कर के उठवाई है। किसी से जाति तो दूर उसका धर्म भी नहीं पूछा। शिव पर सबका समान अधिकार है। ये काँवड़ तो छोड़िए, मेरी उम्र 40 साल से अधिक है और मैंने अपने अब तक के जीवन में एक भी केस ऐसा नहीं सुना जिसमें किसी भी काँवड़िए की किसी ने जाति पूछी हो।”
हरिद्वार के समाजसेवी अधीर कौशिक ने हमसे बात करते हुए कहा, “अफ़सोस की बात ये है कि मीडिया यहाँ दिख रही सामाजिक समानता को नहीं दिखाती। फर्जी खबरें फैलाने वालों को मेरी चुनौती है कि वो हिन्दुओं की आस्था के केंद्र पूरे हरिद्वार में एक भी स्थान या मंदिर ऐसा दिखा दें जिसमें किसी भी जाति विशेष के आने पर रोक हो। जातिवाद तो दूर, यहाँ क्षेत्रवाद भी नहीं है। किसी ने किसी भी काँवड़िए से ये नहीं पूछा कि कहाँ से आए हो। असल में वामपंथी हमारे तीर्थस्थलों और संतों को बस अफवाह उड़ा कर बदनाम करना चाहते हैं।”
काँवड़ यात्रा में लिंगभेद भी नहीं
काँवड़ यात्रा में महिलाओं की भी अच्छी-खासी तादाद देखी गई। यात्रा में शामिल कुछ महिलाओं ने ऑपइंडिया से बताया, “पूरी काँवड़ यात्रा में हमें कहीं भी किसी भी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। हम पुरुष काँवड़ यात्रियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हैं।”
इसके अलावा महिलाएँ कई दुकानों पर सामान बेचने के साथ भंडारे आदि में काँवड़ियों की सेवा करते दिखाई दीं। उन सभी के चेहरे पर संतोष और सेवा के भाव दिखे।