ओडिशा में मंदिरों, मठों और हिन्दू धार्मिक स्थलों पर नवीन पटनायक सरकार की बुरी नाराज़ है। जिस तरह से ऐसे स्थलों को ढहाया जा रहा है, अगर ऐसा किसी अन्य मज़हब के साथ किया जाता तो अब तक दुनिया भर के मीडिया संस्थान इस खबर को छाप चुके होते। ओडिशा का पुरी सिर्फ़ विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के लिए ही नहीं जाना जाता है, अपितु यहाँ देश के विभिन्न हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई मठ हैं। बीजद सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपयों के नए प्रोजेक्ट का ऐलान किया है, जिसके तहत पुरी को एक ‘वर्ल्ड हेरिटेज सिटी’ के रूप में विकसित किया जाएगा। लेकिन, इसके लिए मठों को ढहाया जा रहा है।
यह कितना अजीब है कि वर्ल्ड हेरिटेज बनाने के लिए शहर के हेरिटेज को ही मिटाया जा रहा है। जगन्नाथ मंदिर केवल एक मंदिर ही नहीं रहा है बल्कि कई धार्मिक स्थलों की एक बड़ी संरचना का यह मुख्य बिंदु है। उस संरचना को मिटा कर मंदिर को विकसित करना क्या संभव है? राज्य सरकार की इस योजना में सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना है। सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता किए जाएँगे। लेकिन, इनकी क़ीमत चुका रहे हैं वे साधु-सन्यासी जो सालों से इन मठों, मंदिरों और धार्मिक स्थलों का सञ्चालन करते रहे हैं। इन्हें परेशान किया जा रहा ताकि ये उन स्थलों को ढाहने की इजाजत दे दें।
आदि शंकराचार्य ने पुरी में गोवर्धन मठ स्थापित किया था। ठीक इसी तरह चैतन्य महाप्रभु ने गम्भीरा मठ के प्रांगण में आराधना करते हुए वर्षों बीता दिए थे। रामानुजाचार्य ने एमार मठ की स्थापना की थी। उड़िया वैष्णव सम्प्रदाय से लेकर रामानंदी संप्रदाय तक के संतों ने वहाँ मठ स्थापित किए। ब्रिटिश राज ने भी इन मठों को जगन्नाथ मंदिर की संपत्ति से पृथक माना था। श्रद्धालुओं ने स्वेच्छा से अपने-अपने सम्प्रदायों के लिए मठ बनाने हेतु संपत्ति दान दी की थी। सरकार ने श्री जगन्नाथ टेम्पल एडमिनिस्ट्रेशन (SJTA) का गठन कर मंदिर के सञ्चालन पर एक तरह से कब्ज़ा किया और फिर इन मठों के भी बुरे दिन शुरू हो गए।
Another example of State-sponsored #Hinduphobia. Till when will Hindu society tolerate such attacks on Hindu civilization?
— Oxomiya Jiyori?? (@SouleFacts) September 3, 2019
Demolished Languli Mutt, a 14th century Hindu monastery of Dasanami Naga sampradaya,
demolished the 12th century Emar Math.
https://t.co/QWXXrmXCmA #Puri
एसजेटीए ने इन मठों को जगन्नाथ मंदिर की संपत्ति बता कर ढाहना शुरू कर दिया। सरकार का कहना है कि इन मठों के बिल्डिंग सुरक्षित नहीं हैं और इसीलिए इन्हें हटाना ज़रूरी है। लांगुली मठ 300 वर्ष पुराना था। इसे रैपिड एक्शन फाॅर्स और पुलिस की मौजूदगी में ढाह दिया गया। 900 वर्ष पूर्व निर्मित एमार मठ को भी नहीं बख्शा गया। इसके प्रांगण में एक सदी पुराना रघुनन्दन पुस्तकालय स्थित है। इसकी मूर्तियों और पुस्तकों को कहीं और शिफ्ट कर दिया गया। हेरिटेज संरचनाओं की तो रक्षा की जानी चाहिए। लेकिन क्या ऐसा करने से उस स्थल का ऐतिहासिक महत्त्व चला नहीं जाएगा?
एमार मठ पुरी शहर का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। 12वीं सदी में स्थापित इस मठ की देखरेख का काम गोविंदाचार्य के शिष्य और फिर उनके वंशज करते आ रहे थे। जगन्नाथ मंदिर के आध्यात्मिक रक्षक एमार मठ के आचार्य ही रहे हैं। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि रथयात्रा के दौरान रथों के निर्माण के लिए लड़कियाँ भी यही देता है। इलाक़े के कई सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहा एमार मठ बालभोग के दौरान ज़रूरी फूलों की सप्लाई भी करता है।
यहाँ तक कि एमार मठ की देखरेख करने वाले साधु-संत इस्लामिक आक्रांताओं के आतंक के दौर में भी वहाँ से नहीं हिले। जिन्होंने क्रूर इस्लामिक साम्राजयवाद के सामने सर नहीं झुकाया, आज राज्य सरकार उनसे सब कुछ छीन रही है। बाद में गजपति साम्राज्य की पुनर्स्थापना के दौरान एमार मठ को टैक्स से राहत प्रदान की गई थी। मठ के पास सन 1800 में 60,000 एकड़ ज़मीन थी। जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद बहुत प्रसिद्ध है। लेकिन, क्या आपको पता है कि ब्रिटिश राज के दौरान एक समय ऐसा भी आया था जब अंग्रेजों ने अकाल का हवाला देकर अन्न की सप्लाई करने से मना कर दिया था।
Govt of Odisha has plan to demolish #PunjabiMatha located to south of #Jagannath Temple. @Puri_Official had already gave notice.
— Anil Biswal (@BiswalAnil) September 4, 2019
Guru Nanak Dev ji had stayed in Punjabi Mutt while he visited Puri. This monasteries has a glorifying history of martial braveness. pic.twitter.com/5N4wxUjkXN
तब एमार मठ न सिर्फ़ जगन्नाथ मंदिर बल्कि समूचे पुरी के लिए आगे आया था और उसने साढ़े 7 महीने तक पूरे इलाक़े का पेट भरा था। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा है कि मठ के भीतर स्थित लाइब्रेरी का पुनर्निर्माण किया जाएगा। इसके लिए 25 करोड़ रुपए सैंक्शन किए गए हैं। ताम्रपत्रों पर लिखे गए सैकड़ों वर्ष पुरानी पुस्तकों को डिजिटलाइज किए जाने की योजना बनाई जा रही है। बड़ा अखाड़ा मठ के महंत हरिनारायण दास ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि मठ ढहाए जा रहे हैं और जनता चुपचाप तमाशा देख रही है। मठ संस्कृति को बर्बाद किए जाने पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा दृश्य देख कर दुःख होता है।
यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस नेता भी ओडिशा सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। स्थानीय विधायक सुरेश राउत ने कहा कि हिन्दू धर्म की प्राचीन परम्पराओं को खंडित किया जाना निंदनीय है। इससे हज़ारों लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ा है जो पूरी तरह मठ पर आश्रित थे। कई लोगों की रोजी-रोटी पर भी अब सवालिया निशान लग गया है। सरकार ने अपने निर्णय से पहले स्थानीय लोगों से बातचीत कर के उनकी राय भी नहीं ली। इसी तरह बड़ा अखाड़ा मठ को 600 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य आक्रांताओं से जगन्नाथ मंदिर को बचाना था।
राज्य सरकार को यह समझना पड़ेगा कि केवल श्रीमंदिर ही सब कुछ नहीं है बल्कि ये जो सारे मठ हैं, वो सभी इसका हिस्सा हैं। श्रीमंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए उसी के हाथ-पाँव काटना कहाँ तक उचित है? मंदिर की रक्षा के लिए जो भी केंद्र स्थापित किए गए थे, कालांतर में उन्हें ही अखाड़ों के नाम से जाना गया। ये मंदिर की पहचान का एक हिस्सा हैं। इन्हे नुकसान पहुँचा कर मंदिर के सौंदर्यीकरण या फिर शहर को वर्ल्ड हेरिटेज बनाना बेमानी है।