प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (13 दिसंबर, 2021) काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर देश को समर्पित करने के लिए वाराणसी पहुँचे हैं। यहाँ सैंकड़ों की भीड़ का अभिवादन करने के बाद उन्होंने ‘काशी के कोतवाल’ यानी काल भैरव के मंदिर में पूजा-अर्चना की। ललिता घाट पर प्रधानमंत्री ने गंगा स्नान किया। यहीं से वे कॉरिडोर देश को समर्पित करने विश्वनाथ धाम में प्रवेश करेंगे।
#WATCH | People greet Prime Minister Narendra Modi in his parliamentary constituency Varanasi, Uttar Pradesh
— ANI UP (@ANINewsUP) December 13, 2021
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#WATCH | PM Narendra Modi offers prayers, takes a holy dip in Ganga river in Varanasi
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The PM is scheduled to visit Kashi Vishwanath Temple and inaugurate the Kashi Vishwanath Corridor project later today
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जानकारी के मुताबिक, काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण रेवती नक्षत्र में किया जाना है। राम मंदिर के लिए मुहूर्त तैयार करने वाले आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने बताया कि 13 दिसंबर को रेवती नक्षत्र में दिन में 1:37 बजे से 1:57 बजे तक 20 मिनट का शुभ मुहूर्त प्राप्त हुआ है। यह मुहूर्त हर दृष्टि से उत्तम है।
कैसा है कॉरिडोर?
ललिता घाट और विश्वनाथ मंदिर परिसर के बीच वाले कॉरिडोर के हिस्से को ‘मंदिर चौक’ का नाम दिया गया है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के सूचना जनसंपर्क अधिकारी पीयूष तिवारी ने ऑपइंडिया को बताया, “प्रधानमंत्री यहीं से कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे। ये कॉरिडोर का सबसे बड़ा हिस्सा है। ज्यादा भीड़ होने पर हम इस हिस्से में श्रद्धालुओं को रोक भी सकते हैं ताकि मंदिर में अव्यवस्था न हो। इसी हिस्से में एम्पोरियम बनाए गए हैं।”
5.2 लाख वर्ग फीट में फैला है कॉरिडोर
कॉरिडोर 5.2 लाख वर्ग फीट में फैला हुआ है। इसमें 33,075 वर्ग फीट में काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर है। इस कॉरिडोर में एक साथ 02 लाख लोग जमा हो सकते हैं। निर्माण में मकराना, चुनार के लाल बलुआ पत्थर समेत 7 विशेष पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। विश्राम गृह, संग्रहालय, सुरक्षा कक्ष और पुस्तकालय भी कॉरिडोर का हिस्सा हैं। पूरे कॉरिडोर में वृक्षारोपण के लिए जगह बनाई गई है। इनमें परिजात, रुद्राक्ष, अशोक, बेल इत्यादि पेड़ लगेंगे ताकि पूरा परिसर हरा-भरा रहे।
तिवारी ने बताया, “पहले जो मंदिर का परिसर था, वह केवल 3500 स्क्वायर फीट था। कॉरिडोर के लिए जब हमने घरों की खरीद शुरू की तो पहले ड्रोन सर्वे करवाया। इसमें कई पुराने मंदिर दिखे। जब हमने निर्माण शुरू किया तो इस बात का ध्यान रखा कि परिसर में अगर कोई श्रद्धालु बाहर से आए तो उसे वह हर सुविधा दी जाए जो एक धार्मिक स्थल में उसे मिलना चाहिए।” वे बताते हैं, “मेन गेट के बगल में यात्री सुविधा केंद्र बनाया गया है। सुरक्षा जाँच के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में प्रवेश करेंगे। इसमें चार द्वार बनाए गए हैं, जो चारों दिशाओं में हैं। यह परिसर चुनार के लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है और इसका फर्श मकराना के सफेद संगमरमर से बना है। इस परिसर में अभी वृक्षारोपण होना है। इसी तरह गंगा की तरफ से भी प्रवेश की सुविधा है।”
सुविधा केंद्र से लेकर वैदिक केंद्र तक
तिवारी ने बताया कि पूरे कॉरिडोर में तीन यात्री सुविधा केंद्र बनाए गए हैं। इसके अलावा गेस्ट हाउस, धार्मिक पुस्तकों की बिक्री का केंद्र, जलपान केंद्र, सिटी म्यूजियम, वाराणसी गैलरी, मुमुक्षु भवन इत्यादि भी हैं। योग साधना के लिए वैदिक केंद्र है। सिटी म्यूजियम और वाराणसी भवन दोनों संग्रहालय हैं और तिवारी के अनुसार अलग-अलग उद्देश्यों से बनाए गए हैं। कॉरिडोर में कैफे बिल्डिंग है। गंगा व्यू गैलरी है, जहाँ बैठकर गंगा का पूरा दृश्य देखा जा सकता है। इसके अलावा एम्पोरियम है। उन्होंने बताया, “एम्पोरियम वाले हिस्से में जीआई उत्पादों के बड़े-बड़े शोरूम होंगे।” वे कहते हैं, “इस परियोजना को बनाने का जो मुख्य उद्देश्य था वह यह है कि सावन के सोमवार और शिवरात्रि पर करीब ढाई से तीन लाख लोग आते हैं। उस दौरान पूरा शहर, पूरी गलियाँ ठसाठस भरी होती हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए लोगों को कम से कम तीन से चार किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी। अब गंगा स्नान कर श्रद्धालु सीधे कॉरिडोर में प्रवेश करेंगे। बाबा का जलाभिषेक करेंगे और शहर में निकल जाएँगे। मंदिर परिसर वाले ही हिस्से में एक वक्त में कम से कम 10 हजार लोग अब आ सकते हैं।”
40 ऐसे मंदिर मिले जो घरों में दब गए थे
वाराणसी के आयुक्त दीपक अग्रवाल बताते हैं कि इस कॉरिडोर के लिए जिस बोर्ड का गठन किया गया था, उसने कुल 314 घरों की खरीद की थी। जब कॉरिडोर निर्माण के लिए इन घरों को तोड़ने का काम शुरू किया गया तो करीब 40 ऐसे प्राचीन मंदिर मिले जो अतिक्रमण की वजह से लुप्त हो चुके थे। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती कॉरिडोर वाले हिस्से में जिनलोगों की संपत्ति आ रही थी उन्हें अपनी जगह छोड़ने के लिए तैयार करना था। लेकिन लोग इसके लिए तैयार हुए, क्योंकि इस परियोजना में उनकी आस्था थी। हमने पारदर्शी और आकर्षक वित्तीय प्रस्ताव मुहैया कराया। कई परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति देखते हुए उन्हें कम जगह के एवज में भी अच्छा-खासा मुआवजा प्रदान किया गया। जिन्होंने अतिक्रमण कर रखा था उनके भी हितों का ध्यान रखा गया। अग्रवाल ने बताया कि जो प्राचीन मंदिर इस दौरान मिले उन्हें संरक्षित किया गया है और जल्द ही श्रदालु इनमें दर्शन कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि मंदिर परिसर में मुख्य मंदिरों के अलावा कई छोटे मंदिर बनाए गए हैं। इनमें से कुछ में देवताओं की पुर्नस्थापना हो चुकी है। कई ऐसे मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल भी गए हैं। शेष में काम अंतिम दौर में है।