अयोध्या में 22 जनवरी, 2024 को भगवान राम की जन्मभूमि पर उनके बाल स्वरूप रामलला मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूरी दुनिया की कई बड़ी हस्तियों की मौजूदगी रहेगी। इसी दिन पूरे देश में एक बार फिर से दिवाली भी मनाई जाएगी। इस अवसर पर हिन्दू समाज उन तमाम कारसेवकों को श्रद्धाभाव से याद कर रहा है जिन्होंने अपने प्राण रामजन्मभूमि आंदोलन में न्योछावर कर दिए। उन्हीं तमाम ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों में एक थे राजेंद्र धरकार।
30 अक्टूबर, 1990 को राजेंद्र ने महज 16 साल की उम्र में मुलायम सरकार के आदेश पर चली गोली अपने शरीर पर झेली थी। ऑपइंडिया की टीम ने राजेंद्र के घर पहुँच कर वर्तमान हालातों का जायजा लिया।
दिवंगत कारसेवक के घर में खाने के लाले
राजेंद्र धरकार का घर रामजन्मभूमि से महज आधे किलोमीटर की दूरी पर रहता है। घर नाले के बगल में बना है जिसे पार करने के लिए अस्थाई तौर पर एक सीमेंट का बेहद पतला रास्ता बनाया गया है। राजेंद्र के घर में उनकी 3 भतीजियाँ मिलीं जिन्होंने हमें बताया कि भले ही लोगों को घर मिल रहे हैं लेकिन उनको एक शौचालय तक नहीं मिल पाया। घर के आगे एक सप्लाई वाला नल है जिस से पानी टाइम पर आता और फिर चला जाता है। एक मंजिला मकान देख कर लगा कि कम से कम 2 दशक से वहाँ रंग-रोगन नहीं हुआ है।
प्लास्टर भी उखड़ रहे हैं। पड़ोस में राजेंद्र धरकार के चाचा का मकान है। वह टीन शेड का बना हुआ है जिसमें रहने के लिए ठीक से चारपाई भी नहीं दिखी।
जब हम राजेंद्र के मकान के अंदर गए तब घुप अँधेरा मिला। पता चला कि बिजली जा चुकी है। बिजली का बोर्ड उखड़ा हुआ था। 2 कमरों के घर में 2 बल्ब लगे थे जो इन्वर्टर आदि न होने की वजह से बुझे थे। बर्तन इधर-उधर बिखरे पड़े दिखे। राजेंद्र की तीनों भतीजियों में सबसे बड़ी 18 साल की है। उन्होंने हमें बताया कि पैसे न होने की वजह से उनकी पढ़ाई भी बंद हो चुकी है। फ़िलहाल बलिदानी राजेंद्र के बड़े भाई चमन धरकार बाँस की टोकरियाँ आदि बना कर घर का गुजारा करते हैं।
राजेंद्र का परिवार कई पीढ़ियों पहले आजमगढ़ जिले से अयोध्या काम-धंधे की तलाश में आया था। राजेंद्र के भाई रवींद्र के 3 बेटे भी हैं। 6 संतानों के इस परिवार के सदस्य जैसे-तैसे गुजारा कर रहे हैं। हालाँकि, रवींद्र को बेटियों की शादी में होने वाले खर्च की भी चिंता है। इसी वजह से वो सरकार से कोई स्थाई समाधान मिलने की उम्मीद लगाए हैं।
भक्ति में ग़रीबी नहीं है बाधा
बलिदान हुए राजेंद्र धरकार का परिवार भले ही बेहद अभाव में जी रहा है लेकिन ईश्वर भक्ति के निशान इस घर के कदम-कदम पर देखे जा सकते हैं। घर के बाहर नीम का पेड़ है जिसे राजेंद्र के परिजन माँ शीतना के तौर पर पूजते हैं। जब हम घर के अंदर गए तब कालिख लगी दीवारों पर महादेव शिव के पोस्टर लगे मिले। परिवार भगवान की तस्वीरों की नियमित रूप से साफ़-सफाई करता है।
शादी हुई थी, गौना आने से पहले हो गए बलिदान
राजेंद्र धरकार की भतीजियों ने हमें बताया कि उनके पापा चमन उन्हें 1990 की घटना की कहानी बताते हैं। उन्होंने कहा कि उनके चाचा राजेंद्र भगवान राम के पक्के भक्त थे और बराबर जन्मभूमि का दर्शन करने जाते थे। 30 अक्टूबर, 1990 को जब राजेंद्र ने अपने ही घर के आगे देश भर से आए कारसेवकों का जमावड़ा देखा तो वो भी उनके बीच शामिल हो गए। वो कारसवेकों की भीड़ में विवादित ढाँचे की तरफ बढ़ने लगे। इसी दौरान गोलियाँ चलने लगीं और नाबालिग कारसेवक राजेंद्र वीरगति को प्राप्त हो गए।
राजेंद्र की भतीजियों ने हमें आगे बताया कि उनके चाचा की शादी तब तक हो चुकी थी लेकिन गौना नहीं आया था। गौना आने से पहले ही राजेंद्र बलिदान हो गए तो लड़की के घर वालों ने शादी कहीं और कर दी। तब राजेंद्र के भाई चमन भी उनके साथ कारसेवा में जाने की जिद कर रहे थे। हालाँकि, बताया गया कि राजेंद्र ने उन्हें परिवार का ध्यान रखने को कहा और अकेले ही चले गए। तब राजेंद्र के माता-पिता भी जीवित थे, जो अब दुनिया में नहीं हैं। परिवार में राजेंद्र के भाई चमन धरकार, उनकी पत्नी और 3 बेटियाँ हैं।
खून से भरा था श्रीराम हॉस्पिटल
राजेंद्र धरकारर की चाची माधुरी ने हमें बताया कि वो अपने भतीजे के साथ हुई घटना की गवाह हैं। उन्होंने बताया कि जब उन्हें पता चला कि राजेंद्र को गोली लग गई तब वो सब घटनास्थल की तरफ भागे। इस दौरान उन्हें पुलिस ने रोक लिया और आगे नहीं जाने दिया। माधुरी धरकार के मुताबिक, जैसे-तैसे वो लोग श्रीराम हॉस्पिटल पहुँच पाए। माधुरी ने याद किया कि अस्पताल में इतना ज्यादा खून फैला हुआ था कि उनके पैर भीग गए थे। दूर से गोलियाँ चलने की भी आवाज आ रही थीं। राजेंद्र को गोली सिर और पैर में मारी गई थी।
जमीन पर फेंक दी गई थी लाश
माधुरी धरकार ने हमें आगे बताया कि अस्पताल में रखी हुई कई लाशों के बीच उन्होंने खोजबीन की और आखिरकार जमीन पर राजेंद्र की लाश पड़ी दिखी। जब राजेंद्र के घर वाले लाश को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने की कोशिश करने लगे तब उन्हें प्रशासन द्वारा रोक दिया गया। अस्पताल से शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। पोस्टमार्टम हाउस पर राजेंद्र के परिजनों और प्रशासन के बीच झगड़ा हुआ। आखिरकार प्रशासन ने शव को इस शर्त पर उनके परिजनों को सौंपा कि वो इसे ले कर घर नहीं जाएँगे।
दिवंगत राजेंद्र की चाची ने हमें आगे बताया कि आखिरकार शव को अस्पताल से सीधे श्मशान घाट ले जाने की जिद पर उनके परिवार को मजबूर होना पड़ा। शव के साथ श्मशान तक पुलिस बल भी चल रहा था। माधुरी धरकार ने बताया कि भगवान के लिए बलिदान देने एक बावजूद किसी ने भी पिछले 3 दशक में उनके परिवार की तरफ झाँक कर नहीं देखा। हालाँकि, इस परिवार ने राम मंदिर बनने पर बेहद ख़ुशी जताई और इसे राजेंद्र का सपना साकार होने जैसा कहा। राजेंद्र धरकार के परिजनों को उम्मीद है कि वर्तमान सरकार अब बदले हालात में उनके घर पर ध्यान देगी और उनके हालात सुधारने में मदद करेगी।