दिवाली प्रकाश का पर्व है, इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है और हिन्दू आतिशबाजी कर के और दीपक जला कर ख़ुशी मनाते हैं। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए इसके बाद नया साल शुरू हो जाता है। बाजारों में चहल-पहल होती है, अरबों रुपए का कारोबार होता है। हाँ, कुछ सेलेब्रिटीज ज़रूर ‘ज्ञान’ देने आ जाते हैं और हिन्दू त्योहार को बदनाम करते हैं। इन सबके बीच हमें ये भी याद रखना चाहिए कि वो दिवाली का ही मौका था जब शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार किया गया था।
चलिए, फिर से उस प्रकरण को याद करते हैं क्योंकि 2014 के पहले भारत में हिन्दुओं की जो दुर्दशा थी उसके जिम्मेदार लोगों को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता। हर पीढ़ी को उनके बारे में बताने की ज़रूरत है। जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित 4 मठों में से एक है तमिलनाडु का कांची कामकोटि पीठ। जयेन्द्र सरस्वती वहाँ के मुख्य महंत हुआ करते थे। दिवाली की आधी रात को एक अनुष्ठान के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। ऐसा लग रहा था जैसे भारत में मुग़ल शासन चल रहा हो।
याद रखिए, ये वही भारत है जहाँ कश्मीर को अपनी बपौती मानने वाले शेख अब्दुल्ला को नज़रबंद भी किया जाता था तो आलीशान कोठियों में। जब अंग्रेजों का शासन था तो महात्मा गाँधी के लिए भव्य आगा खाँ पैलेस को ही जेल बना दिया गया। उसी देश में एक हिन्दू संत को बीच पूजा से गिरफ्तार करवा लिया जाता है, चोर-उचक्कों की तरह पुलिस की गाड़ी से ले जाया जाता है और रात भर न्यायालय में खुले में बिठा कर रखा जाता है – ये हिन्दुओं से घृणा करने वाले सत्ताधीशों के घमंड नहीं तो और क्या सूचित करता है।
दिवाली पर शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की गिरफ़्तारी
तेलंगाना (तब आंध्र प्रदेश) स्थित महबूबनगर से जयेन्द्र सरस्वती को तमिलनाडु पुलिस ने गिरफ्तार किया था। मामला कुछ यूँ था कि 2004 में चेन्नई के पास स्थित कांचीपुरम के वरदराजस्वामी मंदिर में 3 सितंबर को वहाँ के मैनेजर ए शंकररमण की हत्या कर दी गई थी। तमिलनाडु पुलिस ने शंकराचार्य को ही इसका मुख्य आरोपित बना दिया। ये हत्याकांड मंदिर परिसर में ही हुआ था। उस समय तमिलनाडु में AIADMK की सरकार थी। खुद मुख्यमंत्री जयललिता ने शंकराचार्य की गिरफ़्तारी का आदेश दिया था।
उन्हें गिरफ्तार करने की AIADMK सरकार को इतनी जल्दी थी कि राज्य के तत्कालीन एडिशनल डायरेक्टर-जनरल ऑफ पुलिस KVS मूर्ति को हेलीकॉप्टर से आंध्र प्रदेश भेजा गया। इसके अलावा एक अन्य सरकारी एयरक्राफ्ट भी वहाँ उतरा। तत्कालीन आंध्र प्रदेश की पुलिस को इस संबंध में बताया गया और हैदराबाद से 90 किलोमीटर दूर स्थित महबूबनगर वो सभी गाड़ी से पहुँचे। रात के 11:25 बजे इस गिरफ़्तारी की कार्रवाई को अंजाम दिया गया।
एक्स टेक्सटाइल मिल के गेस्ट हाउस में घुस कर शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती को हिरासत में लिया गया था। उन्हें गाड़ी से हैदराबाद लाया गया और वहाँ से हवाई मार्ग से चेन्नई ले जाया गया। 12 नवंबर, 2004 को सुबह 6 बजे कांचीपुरम के जुडिशल मजिस्ट्रेट उत्तमराजन ने उन्हें 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजना का फैसला सुनाया। फिर उन्हें वेल्लोर स्थित केंद्रीय कारगर में ले जाकर बंद कर दिया गया। भारत के इतिहास में किसी दुर्दांत आतंकी के लिए इतनी जल्दबाजी से ऐसी कार्रवाई शायद ही कभी देखने को मिली हो।
14 नवंबर को कांची मठ के वकीलों त्यागराजन और चेलप्पा को जेल में महंत से मिलने की अनुमति दी गई। शंकराचार्य ने बताया कि उन्हें इस मामले में फँसाया गया है और उनके बचाव के लिए सारे कानूनी कदम उठाए जाएँ। उनके खिलाफ IPC की धारा-302 (हत्या), 201 (अपराध की जानकारी छिपाना, सबूत मिटाना), 205 (मुकदमे की कार्यवाही में झूठी पहचान दिखाना), 213 (रिश्वत लेकर आरोपितों को छिपाना), 34 (समान मंशा से कई लोगों द्वारा किसी अपराध को अंजाम देना) और 120B (आपराधिक धमकी) के तहत मामले दर्ज किए गए थे।
मद्रास हाईकोर्ट में दायर की गई जमानत याचिका में शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती ने खुद को निर्दोष बताया। पुलिस ने मठ द्वारा हत्यारों को रुपए दिए जाने का दावा कोर्ट में किया। कहा गया कि शंकररमण ने शंकराचार्य के खिलाफ कई आरोप लगाए थे, इसीलिए उनकी हत्या करा दी गई। जयेन्द्र सरस्वती द्वारा हत्यारों को फोन कॉल किए जाने का दावा भी किया गया। पुलिस मामला साबित होने से पहले ही उन्हें अपराधी बताने लगी। शंकराचार्य की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता राम जेठमलानी ने पुलिस के दावों की धज्जियाँ उड़ा दी थीं।
मद्रास हाईकोर्ट को उन्होंने बताया कि इस मामले में गिरफ़्तारी के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों तक का पालन नहीं किया गया। एक 70 वर्षीय बुजुर्ग, जो डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के मरीज हैं, उन्हें रात के समय गिरफ्तार किया गया। 14 नवंबर तक इस मामले में 17 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका था। इनमें वो 5 लोग भी शामिल थे जिन्होंने हत्या की बात कबूलते हुए आत्मसमर्पण किया था, लेकिन पुलिस ने कहा कि उनकी कोई संलिप्तता है ही नहीं।
बड़ी बात ये है कि एक बुजुर्ग हिन्दू संत को इस तरह से गिरफ्तार किए जाने का तमिलनाडु के सभी राजनीतिक दलों ने स्वागत किया। वामपंथी दल तो एकदम प्रफुल्लित थे। सिर्फ एक भाजपा ही थी जो इस बर्बरता के विरोध में खड़ी थी। DMK नेता करूणानिधि, जो उस समय विपक्ष में थे, उन्होंने इसे एक ईमानदार कार्रवाई बताते हुए इसकी प्रशंसा की। नागालैंड के वर्तमान राज्यपाल, जो उस समय तमिलनाडु में भाजपा के नेता थे, उन्होंने सवाल उठाया कि जब जयेन्द्र सरस्वती के कहीं भागने की कोई आशंका थी ही नहीं, फिर जल्दबाजी में राजनीतिक दबाव में ये गिरफ़्तारी क्यों अंजाम दी गई?
भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील केंद्र की UPA सरकार से की और उन्हें पूजा के लिए सामग्रियाँ व व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराने की वकालत की। सोचिए, कांचीपुरम का मठ बंद हो गया था, जिस कमरे में आचार्य दर्शन देते थे वो बंद हो गया, कामकोटि अम्मा मंदिर पर काला झंडा लहरा रहा था और मठ के सभी कर्मचारी उस दिन काली पट्टी पहन कर काम करने आए, उस समय DMK क्या कर रही थी?
द्रविड़ पार्टियों ने एक हिन्दू संत की प्रताड़ना का मनाया था जश्न
आज उदयनिधि स्टालिन सनातन धर्म को डेंगू-मलेरिया बताते हुए इसे खत्म करने की बातें करते हैं, वो यूँ ही नहीं है। उनकी पार्टी ने हिन्दू विरोधी राजनीति कर के और ब्राह्मणों के खिलाफ घृणा का माहौल बना कर अपने लिए एक ऐसे वोट बैंक को तैयार किया है जो हिन्दुओं की पीड़ा को देख कर ताली बजाता है। उस समय भी यही हुआ था। DMK के कार्यकर्ता पटाखे उड़ा रहे थे, जश्न मना रहे थे, गाने बजा कर नाच-गान में लगे हुए थे। आज ये विपक्षी दल प्रेस की स्वतंत्रता की बातें करते हैं, लेकिन शंकराचार्य की गिरफ़्तारी के समय तमिलनाडु पुलिस ने मीडियाकर्मियों से भी धक्का-मुक्की की थी।
शंकराचार्य ने अपने साथ हो रहे इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर पुलिस से पूछा था, “क्या मैं वीरप्पन हूँ?” वीरप्पन उस समय का कुछकिता चंदन तस्कर था जिसका खौफ दक्षिण भारत के कई राज्यों में था और जिसे उस साल 19 अक्टूबर को ही एक एनकाउंटर में मार गिराया गया था। खास बात ये है कि सहिष्णु, बेनवॉश्ड और कायर बना दिए गए हिन्दुओं ने शंकराचार्य की गिरफ़्तारी के बाद हिन्दुओं ने उस तरह का कोई आंदोलन भी खड़ा नहीं किया।
जबकि ये वो समय था जब दिल्ली में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान कुरान की प्रति जलाए जाने के अफवाह मात्र से कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में इस्लामी भीड़ ने सड़क पर उतर कर हिंसा की थी। ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ पर पैगंबर मुहम्मद के अपमान का आरोप लगाते हुए इसके बेंगलुरु स्थित दफ्तर पर हमला कर दिया गया था और संपादक को माफ़ी माँगने के लिए मजबूर कर दिया था। जबकि भारत के मीडिया संस्थानों ने कोर्ट के फैसले से पहले ही शंकराचार्य को अपराधी बता कर उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की थीं, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा।
पिछड़ों के कल्याण के लिए प्रयासरत थे शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती
जबकि जयेन्द्र सरस्वती के बारे में माना जाता है कि वो एक समाजसेवी भी थे जिन्होंने कांची मठ को कर्मकांड के अलावा जन-कल्याण से भी जोड़ा। कई शिक्षा संस्थान स्थापित किए, अस्पताल बनवाए, वेद दर्शन के प्रचार के लिए भारत भ्रमण किया और उत्तर-पूर्वी में गुवाहाटी में जनसेवा संस्थान स्थापित कर भारत की आध्यात्मिक और भौगोलिक एकता को पुष्ट किया। क्या उनकी गिरफ़्तारी इसीलिए की गई क्योंकि आध्यात्मिक चेतना के संचार का काम कर रहे जयेन्द्र सरस्वती से वामपंथी ताकतों, मिशनरियों और इस्लामी कट्टरपंथियों को खतरा था?
शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती को पूरे एक दशक तक प्रताड़ित किया गया। अंततः 2013 में पुडुचेरी की अदालत ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया। मीडिया ट्रायल और भारत में हिन्दू विरोधियों की सत्ता होने के कारण उन्हें काफी कुछ भुगतना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट को अंदाज़ा था कि इस मामले में ‘खेला’ किया गया है, तभी इस मामले को पुडुचेरी ट्रांसफर किया गया था। 27 फरवरी, 2018 को उनका निधन हो गया। हिन्दू धर्म के प्रसार और सामाजिक कार्यों के कारण उनकी तुलना रामानुजन से भी हुई।
दलितों के लिए शिक्षा-स्वास्थ्य सुविधाएँ स्थापित करने के लिए उन्होंने जीवन पर्यन्त प्रयास किया। जातिगत भेदभाव के लिए उनके मन या मठ में कोई जगह नहीं थी। वो एक ऐसे संत थे जिन्होंने धारावी की गरीब बस्तियों में भी घुस कर जन-कल्याण के कार्य किए थे। देश की कई दलित बस्तियों में वो घूमे। कई हिन्दू मंदिरों के जीर्णोद्धार में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। 18 जुलाई, 1935 को जन्मे जयेन्द्र सरस्वती को 1994 में उनके गुरु चंद्रशेखर सरस्वती स्वमिगल के निधन के बाद मठ का दायित्व सौंपा गया था।