प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 फरवरी, 2022 को हैदराबाद में संत और समाज सुधारक रामानुजाचार्य की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। उनकी 216 फीट ऊँची प्रतिमा को ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ (Statue Of Equality) नाम दिया गया है। 45 एकड़ में बनी यह प्रतिमा हैदराबाद के शमशाबाद में स्थित है।
1000 करोड़ रुपए खर्च
रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती उत्सव के मौके पर 2 फरवरी से समारोह का आयोजन किया जाएगा। इसे ‘रामानुज सहस्राब्दी समारोहम’ नाम दिया गया है। इस मौके पर रामानुजाचार्य की दो मूर्ति का अनावरण किया जाएगा। 216 फीट ऊँची मूर्ति सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल और जस्ते की बनी हुई है। जबकि दूसरी मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की जाएगी। जो रामानुजाचार्य के 120 सालों की यात्रा की याद में 120 किलो सोने से निर्मित की गई है।
त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी ने टीवी9 भारतवर्ष से खास बातचीत में इस मंदिर के बारे में विस्तार से बात करते हुए बताया कि इस स्टैच्यू के साथ 108 मंदिर भी बनाए गए हैं, जिन पर कारीगरी ऐसी है कि कुछ मिनट को पलकें ठहर सी जाती हैं। स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी को बनाने में 18 महीने का समय लगा है, इसके लिए मूर्तिकारों ने कई डिज़ाइन तैयार किए और उनकी स्कैनिंग करने के बाद सबसे बेस्ट मूर्ति को विशाल रूप दिया गया। इस प्रतिमा की ऊँचाई 108 फ़ीट है, जबकि प्रतिमा में लगे त्रिदण्डम की उँचाई 138 फ़ीट है। टोटल प्रतिमा की हाइट 216 फ़ीट है।
आचार्य रामानुजाचार्य की प्रतिमा में 5 कमल पंखुडियाँ, 27 पद्म पीठम, 36 हाथी और प्रतिमा तक पहुँचने के लिए 108 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। जानकारी के मुताबिक कार्यक्रम के लिए बनाए गए 1035 हवन कुंडों में लगभग दो लाख किलो गाय के घी से हवन किया जाएगा।
कौन हैं रामानुजाचार्य
वैष्णव संत रामानुजाचार्य का जन्म साल 1017 में तमिलनाड़ु के श्रीपेरंबदूर में हुआ था। उनका जन्म तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने गुरु यमुनाचार्य से कांची में दीक्षा ली थी। श्रीरंगम के यतिराज नाम के संन्यासी से उन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इसके बाद उन्होंने भारत भर में घूमकर वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार किया। इस दौरान उन्होंने श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्रह जैसे ग्रंथों की रचना की। साल 1137 में श्रीरंगम में रामानुजाचार्य ने 120 साल की आयु में अपना देह त्याग दिया था।
रामानुजाचार्य ने वेदांत दर्शन पर अपने विशिष्ट द्वैत वेदांत का प्रतिपादन किया था। उनकी शिष्य परंपरा में गुरु रामानंद हुए, जिनके शिष्य कबीर थे। रामानुजाचार्य स्वामी ने सबसे पहले समानता का संदेश दिया था और इसके लिए उन्होंने पूरे देश में भ्रमण भी किया था।