राम जन्मभूमि आंदोलन के समय एक नारा चला था, “अयोध्या तो बस झाँकी है, मथुरा काशी बाकी है”। 9 नवंबर को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि हिंदूवादी अब अगला दावा मथुरा और काशी में जानबूझकर हिन्दुओं के पवित्र मंदिरों को तोड़कर उनके ऊपर बनाई गई मस्जिदों को हटाने और पूरे स्थल के मालिकाना हक़ का कर सकते हैं। इसके अलावा द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक कहे जाने वाले बाबा विश्वनाथ के बगल में (या कुछ लोगों के अपुष्ट दावों की मानें तो असली ज्योतिर्लिंग के ऊपर) बनी ज्ञानवापी मस्जिद और भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थान मथुरा में बने ईदगाह के खिलाफ रामजन्मभूमि मंदिर की तर्ज पर आंदोलन चल सकने की भी सुगबुगाहट होने लगी है।
और इन्हीं अटकलों में से एक को बल देते हुए वाराणसी की सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) सुधा यादव की अदालत में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के मुकदमे की सुनवाई पुनः शुरू हो गई है। इस सुनवाई पर पिछले दो दशकों से इलाहबाद हाई कोर्ट का स्टे लगा हुआ था, जो हाल ही में खत्म हो गया है। मुकदमे में अगली सुनवाई की तारीख़ 9 जनवरी, 2020 तय हुई है।
1991 में पंडित सोमनाथ व्यास व कुछ अन्य पक्षकारों ने स्थानीय अदालत में सिविल वाद दायर किया था। उनकी माँग थी कि ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर के निर्माण हो, और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार दिया जाए। गौरतलब है कि अभी वर्तमान मंदिर में भी कुछ बार अदालत से इजाज़त लेनी पड़ती है पूजा करने के लिए। उदाहरण के तौर पर, एक श्रद्धालु मंदिर के भीतर रह कर मंदिर की दीवार पर स्थित ‘शृंगार गौरी’ नामक स्थल का जलाभिषेक करना चाहते थे, लेकिन इजाज़त अदालत ने नहीं दी। कहा कि केवल सालाना जो पूजा होती है, वही चलते रहने की अनुमति दी जाएगी। इस प्रकार के आदेशों का क़ानूनी औचित्य चाहे जो हो, यह हिन्दू धर्म में पूजा-विधियों और कर्मकाण्डों के सतत विकास और बदलाव में बाधक होते हैं।
1991 में वाद के पक्षकारों ने भी यह विषय उठाया था कि हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, राग-भोग, दर्शन आदि के साथ निर्माण, मरम्मत और पुनरोद्धार का अधिकार प्राप्त है। उन्होंने दावा किया था कथित तौर पर ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाने वाला ढाँचा ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर के परिसर का अंश है। लेकिन 1998 में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने पूरे मामले पर ही स्टे कर दिया। वह स्टे सुप्रीम कोर्ट से हटने के बाद सुनवाई हो रही है।
क्या अयोध्या के बाद अब काशी की बारी है?
हिन्दू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने अदालत को अर्जी देते हुए कहा है कि ज्ञानवापी परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है। मस्जिद का निर्माण हिन्दुओं के पवित्र स्थल पर दूसरे मजहब के जबरन कब्ज़े से हुआ है। अतः, 1991 के प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप एक्ट के हिसाब से भी इस स्थल का 15 अगस्त, 1947 को मूल स्वरूप हिन्दू मंदिर ही था। इस धार्मिक स्वरूप की तस्दीक करने और ऐतिहासिक परिस्थितियों के साक्ष्य इकट्ठा करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) से सर्वेक्षण कराया जाना जरूरी है। रस्तोगी ने भवन की बाहरी और अंदरूनी दीवारों, गुंबदों, तहखाने आदि के सबंध में एएसआई की निरीक्षण रिपोर्ट मँगाने की अपील की है। उनका दावा है कि मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे पुरातात्विक खुदाई हो तो नीचे ज्योतिर्लिंग ही निकलेगा।
गौरतलब है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के सर्वेक्षण ने रामजन्मभूमि मामले में हिन्दू पक्ष में फैसला जाने में अहम भूमिका निभाई थी। उसने न केवल यह साबित किया कि बाबरी मस्जिद किसी खाली जगह पर नहीं बल्कि हिन्दू मंदिर के भग्नावशेषों पर बनी, बल्कि यह भी साबित किया कि वह मंदिर विभिन्न स्वरूपों में मस्जिद के करीब दो हज़ार साल पहले से था।