प्रत्येक वर्ष आश्विन महीने की पूर्णिमा के बाद चतुर्थी तिथि को ‘करवा चौथ’ का त्योहार मनाने की परंपरा भारत में रही है, खासकर पश्चिमी और उत्तर भारतीय महिलाओं में। कार्तिक के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला ये त्योहार फिल्मों और टीवी सीरियलों के माध्यम से देश-विदेश की महिलाओं में और लोकप्रिय हुआ। इस दिन महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र की सलामती के लिए उपवास रखती हैं और रात को चन्द्रमा के दर्शन के उपरांत पति के हाथों जल ग्रहण कर इसका समापन करती हैं।
भारतीय इतिहास में सामान्यतः ये परंपरा रही है कि पूर्व काल में पुरुष जीविकोपार्जन से लेकर युद्ध तक जैसे कार्यों के लिए दूर जाया करते थे और महीनों बाद लौटते थे। उनमें से कइयों के लौटने पर भी संशय रहता था। वो महिलाओं-बच्चों को सुरक्षित घर पर छोड़ जाते थे। ऐसे में ये महिलाएँ उनकी लंबी उम्र और सलामती के लिए इस तरह के उपवास करती थीं। ये परंपरा आज तक चली आ रही है। अब जैसा कि हिन्दू धर्म के हर त्योहार के साथ होता है, इसे भी बदनाम करने की साजिश चल निकली है।
ऐसा करने वालों में ताज़ा नाम जुड़ा है लेखिका तस्लीमा नसरीन का, जिन्हें इस्लाम के रूढ़िवाद पर पुस्तक लिखने के लिए बांग्लादेश ने निकाल बाहर किया और वो हिन्दुओं के देश भारत में शरण लेकर रहती हैं। लेकिन, इस्लामी कट्टरपंथियों का रोज निशाना बनने वाली तस्लीमा नसरीन खुद को न्यूट्रल दिखाने के लिए हिन्दू त्योहार पर निशाना साध रही हैं, बिना कुछ जाने-समझे। ये अलग बात है कि इसके बावजूद हिन्दू उन्हें देश से बाहर नहीं निकाल रहे और न ही उन्हें हत्या की धमकियाँ दे रहे।
लेकिन हाँ, सही भाषा में तथ्यों के साथ जवाब देने का अधिकार हमें हमारा संविधान और धर्म, दोनों देता है। दरअसल, बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने करवा चौथ का त्योहार मनाते हुए तस्वीर साझा की थी। उसे ट्वीट करते हुए तस्लीमा नसरीन ने ट्विटर पर लिखा, “ये लोकप्रिय और अमीर महिलाएँ भारतीय उपमहाद्वीप के सभी वर्ग और जाति के लाखों महिलाओं एवं लड़कियों पर अपना प्रभाव डालती हैं, उस करवा चौथ त्योहार को मना कर, जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय पितृसत्तात्मक रीति-रीवाज है। “
तस्लीमा नसरीन ने करवा चौथ त्योहार को पितृसत्ता का शीर्ष करार दिया। सबसे पहली बात तो ये कि पितृसत्ता में कोई बुराई नहीं है। पिता की सत्ता होनी चाहिए। पुरुष का शासन होना चाहिए, ठीक उसी तरह मातृसत्ता भी होनी चाहिए। माताओं का शासन भी होना चाहिए। दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं, विरोधी नहीं। तभी हमारे यहाँ अर्धनारीश्वर का कॉन्सेप्ट है, जहाँ शिव-पार्वती मिल कर आधे-आधे स्त्री-पुरुष का रूप धारण करते हैं।
हिन्दू धर्म की बात से पहले कुछ सवाल। पितृसत्ता को चुनौती देने का अर्थ क्या है? किसी गर्भवती अभिनेत्री का नंगी होकर तस्वीर क्लिक कराना? या फिर किसी मॉडल का छोटे कपड़ों में मैगजीन के कवर पर आना? किसी महिला द्वारा खुलेआम सड़क पर पुरुषों को चाँटे मारना, या फिर झूठे दहेज़-बलात्कार के मामलों में फँसाना? जिस तरह रणवीर सिंह के न्यूड फोफोज का पितृसत्ता से कुछ लेना-देना नहीं है, उसी तरह महिलाओं का कम कपड़े पहनने का मातृसत्ता से कोई लेना-देना नहीं है। हाँ, ये व्यक्तिगत चॉइस का मामला हो सकता है, लेकिन इसका विरोध करना भी किसी का व्यक्तिगत चॉइस ही है।
फिर मातृसत्ता का उदाहरण क्या है? इसका उदाहरण है कि सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के परम साहित्य वेदों की कई ऋचाएँ महिलाओं ने लिखीं। किस अन्य मजहब में ऐसा मिलता है? इसका उदाहरण है कि सती सावित्री ने यमराज के द्वार से अपने पति को वापस छीन लिया। इसका उदाहरण है कि सीता और द्रौपदी जैसी महिलाओं के अपमान करने वाले का पूरा वंश नाश हो गया। इसका उदाहरण है कि महारानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं ने मातृभूमि की रक्षा के लिए तलवार उठाया।
अब तस्लीमा नसरीन जवाब दें। नवरात्री के अवसर पर हिन्दू धर्म में कन्या पूजन का विधान है। इसके तहत कुँवारी लड़कियों को घर में आमंत्रित कर भोजन कराया जाता है और उनके पाँव धोए जाते हैं? जैसे कन्याओं के पाँव धोने में कुक भी बुरा नहीं है, वैसे ही पति की लंबी उम्र की कामना के लिए प्यार से उपवास भी बुरा नहीं। कन्याओं के पाँव धोकर उन्हें ये एहसास दिलाया जाता है कि वो मातृशक्ति हैं, उनका दर्जा सबसे ऊपर है और उनके लिए लोगों के मन में सर्वोच्च सम्मान की भावना होनी चाहिए।
इसी तरह हिन्दू धर्म में ‘सुमंगली पूजा’ भी होती है। दक्षिण भारत के ब्राह्मण परिवारों में ये लोकप्रिय है। घर की विवाहित महिलाओं को ‘सुमंगली’ कहा जाता है, अर्थात घर का मंगल करने वाली। इसके तहत 3, 5, 7 या 9 महिलाओं को बुला कर उन्हें सम्मानित किया जाता है, उनकी पूजा की जाती है। इसके तहत घर की दिवंगत महिलाओं की प्रार्थना की जाती है, ताकि उनका आशीर्वाद मिले। इसमें किन्हें भाग लेना है और किन्हें नहीं, इन्हें लेकर नियम-कानून पर भी उँगली उठाने वाले निशाना साध सकते हैं। लेकिन, हिन्दू धर्म में कई पर्व-त्योहारों में पुरुषों के लिए भी तमाम नियम-कानून हैं।
आध्यात्मिक मामलों पर लिखने वाले युवा लेखक अंशुल पांडेय ने भी तस्लीमा नसरीन को अच्छा जवाब दिया है। उन्होंने याद दिलाया है कि भारत में देवी की पूजा सिर्फ नवरात्रि या दीवाली पर ही नहीं होती है, प्रतिदिन की जाती है। माँ सरस्वती को विद्या की देवी कहा गया है और सारे छात्र-छात्राएँ उनकी पूजा करते हैं, क्या ये पितृसत्ता है? घर में लड़की का जन्म होने पर छठे दिन देवी की पूजा की जाती है। ऐसे अनेकों विधि-विधान हैं।
Patriarchal?
— Anshul Pandey (@Anshulspiritual) October 15, 2022
Sanatan Dharma is the only culture in which Females are Worshipped.
1) Kanya Poojan during Navratri.
2) Sumangali Pooja.
3) Devi Pooja not only during Navratri & Diwali but daily.
4) Devi Shashti Poojan during 6th day of New born Baby.
And the list goes on.. https://t.co/agxpcknmy4
इस्लाम में महिलाओं की क्या इज्जत है, हम जानते हैं। हलाला के नाम पर उन्हें ससुर और देवर के साथ रात गुजारने को मजबूर किया जाता है। ईसाई मजहब में चर्चों में ही पादरियों द्वारा ननों के यौन शोषण की बातें सामने आती रहती हैं। जबकि सनातन में मातृ शक्ति को ही प्रकृति कहा गया है, समस्त शक्तियों का स्रोत बताया गया है। माएँ अपने संतान के लिए छठ करें या पति के लिए करवा चौथ, उनके प्यार के बीच आने वाले हम या तस्लीमा नसरीन कौन होती हैं?
अगर आप दुर्गा सप्तशती पढ़ेंगे तो पाएँगे कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ही आदिशक्ति से हुई है। जिस धर्म में कन्या पूजन होता है, वहाँ करवा चौथ पर उँगली नहीं उठाई जा सकती। यहाँ लड़कियाँ पूजित भी होती हैं, पूजा भी करती हैं। यहाँ Feminism और Patriarchy के लिए जगह नहीं है, अर्धनारीश्वर के लिए है। महिलाओं की सुरक्षा पुरुषों का कर्तव्य बताया गया है। इसीलिए तरह, महिलाएँ भी पुरुषों की सुरक्षा की कामना करती हैं। तभी रक्षा बंधन जैसे त्योहार अस्तित्व में हैं।