फिल्म ‘आदिपुरुष’ की खासी आलोचना हो रही है, जिसका एक बड़ा कारण है इसमें हनुमान जी का चित्रण। फिल्म में लंका दहन से पहले एक डायलॉग है, “बत्ती तेरे बाप की, तेल तेरे बाप का, आग तेरे बाप की, तो जलेगी भी तेरे बाप की।” लोग पूछ रहे हैं कि क्या हनुमान जी इस तरह के संवाद बोल सकते हैं? ये संवाद मनोज मुंतशिर ने लिखे हैं। फिल्म में हनुमान जी के लुक को लेकर भी तरह-तरह की बातें हो रही हैं। उन्हें मुस्लिम वाली वेशभूषा दे दी गई है, सबको ऐसा लग रहा।
ऐसे में आपके मन में ये सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि हनुमान जी कैसे दिखते थे, उनका व्यवहार कैसा था? क्या हनुमान जी इसी तरह तू-तड़ाक में बात करते थे या फिर उनका व्यक्तित्व अलग था? रामकथा का प्रथम मूल स्रोत है वाल्मीकि रामायण, जिसे महाकवि वाल्मीकि ने लिखा है। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड में सीता हरण के बाद श्रीराम और लक्ष्मण की हनुमान जी से भेंट होती है, वहाँ उनके बारे में काफी कुछ पता चल जाता है।
श्रीराम ने पहली भेंट में हनुमान जी को कैसा पाया? ‘वाल्मीकि रामायण’ से समझिए
रामकथा जानने वालों को ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि वानरों के राज्य में बाली और सुग्रीव नामक दो भाइयों के बीच गहरी शत्रुता थी। बाली दुष्ट और बलवान था, अतः सुग्रीव अपने कुछ सहयोगियों के साथ किष्किंधा पर्वत पर निवास करते थे। जब श्रीराम और लक्ष्मण उधर आए तो उसके मन में डर बैठ गया कि कहीं ये बाली के योद्धा तो नहीं। अतः, उसने श्री हनुमानजी को इसका पता लगाने के लिए भेजा। हनुमान जी एक विप्र का रूप धारण कर के दोनों भाइयों के समीप पहुँचे।
यहाँ वाल्मीकि जी लिखते हैं कि हनुमान जी ने मन को प्रिय लगने वाली मधुर वाणी में वार्तालाप आरंभ किया। स्पष्ट है कि हनुमान जी परिस्थितियों के हिसाब से निर्णय लेते थे। उन्हें कहाँ क्या बोलना है और किस तरह, इसकी समझ थी। उन्होंने दोनों भाइयों के रूप और गुण की प्रशंसा करते हुए उनसे वहाँ आने का अभिप्राय पूछा। हनुमान जी ने दोनों भाइयों को बताया कि वो जैसा चाहें वैसा रूप धारण कर सकते हैं। उन्होंने खुद का परिचय सुग्रीव के मंत्री के रूप में दिया।
सोचिए, हनुमान जी ने ऐसी-ऐसी बातें की कि रघुकुल शिरोमणि प्रसन्न हो उठे और उन्होंने फिर लक्ष्मण से चर्चा की। श्रीराम ने हनुमान जी के बारे में जो चर्चा किया, उन्होंने जो पाया, वो आपको बताते हैं। श्रीराम ने हनुमान जी को ‘वाक्यज्ञ’ कहा है, अर्थात वो बातों के मर्म को समझने वाले हैं। सामने वाला क्या बोल रहा है और जवाब में क्या बोलना चाहिए, इसकी उन्हें समझ थी। श्रीराम कहते हैं कि जिसे ऋग्वेद की शिक्षा नहीं मिली, जिसने यजुर्वेद का अभ्यास नहीं किया और जो सामवेद का विद्वान नहीं, वो इस तरह बातें नहीं कर सकता।
अर्थात, श्रीराम ने हनुमान जी की बातों से ही अंदाज़ा लगा लिया कि वो तीनों प्रमुख वेदों के ज्ञाता हैं। हनुमान जी इस प्रसंग में काफी देर तक बोलते हैं। श्रीराम ने पाया कि इसके बावजूद उनके मुँह से एक भी अशुद्धि नहीं निकली। अर्थात, उन्होंने सटीक शब्दों का प्रयोग किया, ऐसा कुछ नहीं कहा जो सामने वाले को बुरा लगे और उनका उच्चारण सटीक था। इतना ही नहीं, बोलने समय हनुमान जी के शरीर के अंगों पर भी श्रीराम की नजर थी।
कोई कुछ बोल रहा है तो उसकी भाव-भंगिमा कैसी होती है, इस पर काफी कुछ निर्भर करता है। हनुमान जी की भौहें, ललाट, मुख और नेत्र के अलावा सभी अंग उनकी बातों के हिसाब से उनका साथ देते थे। यानी, सभी अंगों में और उनकी बातों में तालमेल दिखता था। कोई साधारण मनुष्य भले ही इसका अवलोकन न कर पाए, लेकिन श्रीराम ने इसे समझ लिया। भाषण की एक और कला होती है – कम से कम शब्दों में अपनी बात रखना।
श्रीराम ने लक्ष्मण से इसकी चर्चा भी की है कि कैसे संक्षिप्त शब्दों में हनुमान जी ने अपनी बात कह डाली। अर्थात, अपनी बातों का मर्म सामने वाले के हृदय में पहुँचा दिया। उन्होंने एक भी कड़वा वचन नहीं बोला, बोलने के दौरान वो कहीं इस तरह से नहीं रुके जैसे कुछ भूल गए हैं अथवा उन्होंने कुछ गलत बोल दिया हो। न उनकी आवाज ऊँची थी, न ज्यादा धीमी, मधुर थी। उन्होंने कुछ भी तोड़-मरोड़ कर नहीं कहा, सीधे सपाट शब्दों में अपनी बात रखी।
आदिपुरुष फिल्म का एक संवाद है जहां रावण हनुमान से कहता है- “ये लंका क्या तेरी बुआ का बगीचा है?”
— Wg Cdr Anuma Acharya (Retd) (@AnumaVidisha) June 16, 2023
वहीं हनुमान जी रावण के बेटे इंद्रजीत से कहते हैं- “कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का…Beep Beep भी तेरे बाप की”
क्या हनुमान जी की ऐसी भाषा थी ? क्या धर्म के नाम से बनीं फिल्मों में… pic.twitter.com/09MxRAUGht
सोचिए, भगवान श्रीराम कितने बड़े ज्ञानी थे कि उन्होंने सामने वाले की बातों को सुन कर उसके बारे में इतना कुछ जान लिया। उससे भी ज़्यादा हनुमान जी कितने बड़े चतुर विद्वान थे कि स्वयं श्रीराम उनसे प्रभावित हो गए। नियम के हिसाब से बोली गई शुद्ध वाणी को व्याकरण में ‘संस्कार’ कहा गया है, शब्द उच्चारण की शास्त्रीय परिपाटी ‘क्रम’ कहलाती है और धाराप्रवाह बोलने वालों को ‘अविलम्बित’ कहा जाता है। श्रीराम को हनुमान में ये तीनों ही गुण विद्यमान दिखे।
श्रीराम तो यहाँ तक कहते हैं कि हृदय, कंठ और मूर्धा (मुँह के अंदर का तालु और ऊपर के दाँतों के पीछे सिर की तरफ़ का भाग जिसे जीभ का अगला भाग ट्, ठ्, ड्, ढ्, और ण वर्ण का उच्चारण करते समय उलटकर छूता है) के सटीक प्रयोग से बोली गई इस वाणी से तलवार उठाए हुए शत्रु का भी हृदय परिवर्तित हो जाए। श्रीराम यहाँ सुग्रीव को भाग्यशाली मानते हैं, कि उनके पास हनुमान जैसे दूत हैं। हनुमान जी ने बातचीत के द्वारा वहीं संधि प्रस्ताव रख दिया और वो स्वीकृत भी हो गया।
रावण के दरबार में कटु वचन सुन कर भी हित की बात बोलते रहे हनुमान जी
लंका दहन से पहले हनुमान जी और लंका के योद्धाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ था और ब्रह्मास्त्र का सम्मान करते हुए उन्हें मेघनाद का बंदी बनना पड़ा था, हो सकता है उस समय वो आक्रोशित भी रहे हों। लेकिन, हनुमान जी ने कटु वचन का प्रयोग किया हो, ऐसा नहीं हो सकता। तुलसीदास कृत रामचरितमानस में भी उनके रावण के साथ बहस की चर्चा है, लेकिन वहाँ भी वो रावण को ज्ञान ही दे रहे हैं, उसे समझा रहे हैं।
“उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥” – रावण द्वारा हनुमान जी के लिए बार-बार अपशब्दों का प्रयोग किए जाने के बावजूद भी उन्होंने यही समझाया कि तुम्हारे मन में भ्रम है। रावण के दरबार में उन्होंने श्रीराम की महिमा का बखान किया। उन्होंने उलटी-सीधी बातें नहीं की। “जदपि कही कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥” – उन्होंने शत्रु के सामने बंदी बन कर भी दुश्मन के ही हित की बात की।
हनुमान जी ने भक्ति और बुद्धि भरी बाते की, तुलसीदास स्पष्ट कहते हैं। रावण ने इस दौरान न सिर्फ वानर जाति, बल्कि श्रीराम के लिए भी कड़वे शब्दों का प्रयोग किया लेकिन हनुमान जी उसे समझाते रहे। आश्चर्य नहीं कि श्रीराम ने हनुमान जी को ‘वाक्यज्ञ’ कहा था। अतः, हनुमान जी मधुर वाणी बोलने वाला वेदज्ञ थे। उनका व्याकरण सही था। वो अपनी वाणी से सामने वाले को प्रभावित कर देते थे। धाराप्रवाह बोलते थे, लेकिन कटु नहीं।