Sunday, November 17, 2024
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जो था पूरे भारत का गौरव, उसे ‘हैदर’ ने बना दिया ‘शैतान की गुफा’: कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर, तोड़ने में लगे थे 1 साल

सिकंदर शाह मीरी ने एक साल तक उसने मार्तंड सूर्य मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। इसके बाद उसने इसकी जड़ों को खोदना शुरू किया और उनमें से पत्थर निकाल कर लकड़ियाँ भर देता था। इसके बाद उन लकड़ियों में वो आग लगवा देता था।

आपको ‘मार्तंड सूर्य मंदिर’ के बारे में पता है? अब जब कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ सुपरहिट हो रही है और इसी बहाने कश्मीर के सनातन इतिहास की बातें भी छिड़ रही हैं, तो इसमें मार्तंड सूर्य मंदिर की चर्चा ज़रूरी हो जाती है। पता है आपने इसको कहाँ देखा होगा? विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘हैदर (2014)’ में। नहीं, पूजा-पाठ या कोई अच्छी चीज नहीं, भारतीय इतिहास के इस गौरव का इस्तेमाल ‘Devil Dance (शैतान का नृत्य)’ के लिए किया गया है।

विवेक अग्निहोत्री ने की ‘हैदर’ और मार्तंड सूर्य मंदिर में ‘डेविल डांस’ की चर्चा

नई दिल्ली में ‘The Kashmir Files’ के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस ओर भी इशारा किया। उनसे जब पूछा गया कि पिछले 32 वर्षों में कश्मीर की सच्चाई दिखाने वाली कोई फिल्म क्यों नहीं बनी, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि ‘रोजा (1992)’ उनकी फेवरिट फिल्म है और उन्हें लगता है कि भारत में इतनी अच्छी फिल्म बनी ही नहीं। उन्होंने सवाल उठाया कि उसी पीरियड में सेट होने के बावजूद उसमें कहीं भी हिन्दू नरसंहार का कोई जिक्र तक नहीं है।

इसी तरह उन्होंने ‘फ़िज़ा (2000)’, ‘मिशन कश्मीर (2000)’ और ‘फना (2006)’ की भी बात की। हालाँकि, विधु विनोद चोपड़ा की ‘शिकारा (2020)’ की याद दिलाए जाने पर उन्होंने कहा कि वो ‘फिल्मों’ की बात कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने ‘हैदर’ नाम लेते हुए कहा कि ये अच्छी फिल्म है और लोग इसे पसंद भी करते हैं। लेकिन, नुकसान क्या है, इसके जवाब में उन्होंने बताया कि मार्तंड सूर्य मंदिर पर पूरा कश्मीर और हिंदुस्तान गर्व करता था – उसे आतंकवादी दौर में तोड़े जाने से पहले केरल तक से हिन्दू दर्शन करने जाते थे।

उन्होंने बताया, “हर वहाँ पर आदमी प्रार्थना या पूजा करने नहीं जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय में सब कोई पढ़ने नहीं जाते थे। वो उस अभूतपूर्ण संरचना को देखने जाते थे। मार्तंड सूर्य मंदिर की जितनी शोभा और सम्मान पूरे विश्व में थी। मैं आपको एक पीड़ा भरी बात बताता हूँ। जिस मंदिर की कलाकृतियों और आध्यात्मिकता के लिए इतना सम्मान था, उसे आज कश्मीर में ‘शैतान की गुफा’ के नाम से जाना जाता है। मैं जब कश्मीरी लड़कों को फोन किया कि मुझे वहाँ शूटिंग करनी है, तो वो पूछने लगे कि ये आखिर है कहाँ?”

विवेक अग्निहोत्री ने बताया कि जब उन्होंने उस मंदिर की लोकेशन ‘गूगल मैप’ के माध्यम से स्थानीय लोगों को भेजी और उन्हें इस मंदिर की तस्वीरें भेजी, तब उन्होंने कहा कि अच्छा आप ‘शैतान की गुफा’ के बारे में बात कर रहे हैं। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे ‘ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा (2011)’ के कारण स्पेन का पर्यटन बढ़ गया था। फिल्मों की ताकत समझाते हुए उन्होंने कहा कि कश्मीर पर बनी एक भी फिल्म में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का जिक्र नहीं किया गया।

हालाँकि, अनुपम खेर ने इस दौरान कहा कि वो पीठ पीछे फिल्म इंडस्ट्री के बारे में कोई बात नहीं कर सकते, क्योंकि जैसे आप सब (पत्रकारों की तरफ इशारा करते हुए) एक समूह में हैं और किसी की बुराई नहीं करते, वैसे ही हमलोग भी हैं। लेकिन, उन्होंने माना कि अब बदलाव आया है और इस तरह की फ़िल्में बन रही हैं। उन्होंने इस दौरान ये भी पूछा कि 60 वर्षों में अनुच्छेद-370 क्यों नहीं हट पाया, अब उसे हटाया गया है।

कश्मीरी पंडितों ने 2014 में भी किया था ‘हैदर’ का विरोध, गाने पर जताई थी आपत्ति

बता दें कि शाहिद कपूर के मुख्य किरदार वाली फिल्म ‘हैदर’ के गाने ‘बिस्मिल’ को मार्तंड सूर्य मंदिर में ही फिल्माया गया है। इसमें शाहिद कपूर डरावनी वेशभूषा में डांस करते हैं। फिल्म में उनका किरदार मुस्लिम होता है। साथ ही बैकग्राउंड में मंदिर में ही काले कपड़ों में ‘शैतान’ जैसी आकृति खड़ी दिखाई गई है। इस गाने में के के मेनन, तब्बू और श्रद्धा कपूर भी बैठे दिखाई देते हैं। इसे लेकर तब विरोध बी खूब हुआ था, लेकिन इसे दबा दिया गया था।

एक प्राचीन मंदिर को इस तरह गलत रूप में दिखाने के लिए कश्मीरी पंडितों ने ‘हैदर’ फिल्म को प्रतिबंधित करने की माँग की थी। वैसे किसी भी बॉलीवुड निर्देशक की हिम्मत नहीं है कि वो किसी मस्जिद में इस तरह का डांस दिखाए, वो भी किसी हिन्दू किरदार द्वारा। मार्तंड सूर्य मंदिर को ‘शैतान की गुफा’ के रूप में फिल्म में दिखाया गया था। ‘ऑल पार्टीज मीग्रेंट्स कोऑर्डिनेशन कमिटी (APMCC)’ के अध्यक्ष विनोद पंडित ने कहा था कि इससे न सिर्फ कश्मीरी पंडितों, बल्कि पूरे हिन्दू समाज की भावनाएँ आहत हुई हैं।

तब हुए विरोध प्रदर्शनों में CBFC (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) और ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के अलावा निर्देशक विशाल भारद्वाज के पोस्टर्स भी जलाए गए थे। इस मंदिर को 1700 वर्ष पुराना बताते हुए कश्मीरी पंडितों ने कहा था कि 2 अक्टूबर, 2009 को यहाँ वर्षों बाद हवन हुआ था और इसे अब ‘शैतान की गुफा’ बताना इसका अपमान है। भारत के गिने-चुने सूर्य मंदिरों में से ये एक है। ओडिशा के कोणार्क और गुजरात के मोढेरा दो अन्य बड़े सूर्य मंदिर हैं।

मार्तंड सूर्य मंदिर: सिकंदर शाह मीरी ने इसे कर दिया था ध्वस्त

बताया जाता है कि मार्तंड सूर्य मंदिर की स्थापना कश्मीर के महान राजा ललितादित्य मुक्तिपीड ने की थी। इस मंदिर की संरचना आठवीं शताब्दी की थी, लेकिन इससे कई सौ वर्षों पूर्व से ये यहाँ पर है। इस मंदिर में कुंड भी हैं। अभी इसकी हालत जर्जर है, लेकिन कभी ये पूरे कश्मीर की शान था। इसके आसपास दर्जनों छोटे-छोटे मंदिरों के अवशेष हैं। वर्षों इसमें तोड़फोड़ हुई, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बचा है। सुल्तान सिकंदर शाह मीरी ने इसे ध्वस्त किया था और इसमें उसे महीनों लगे थे।

ये मंदिर अनंतनाग से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ASI ने मंदिर के जीर्णोद्धार के नाम पर कुछ पेड़-पौधे रूप कर इतिश्री कर ली। इस मंदिर की महत्ता मराठी साहित्य ‘मार्तंड महात्मय’ में भी मिलती है। सिकंदर शाह मीरी ने सैफुद्दीन के साथ मिल कर कश्मीर से हिन्दुओं और उनके सभी प्रतीकों को मिटाने की साजिश रची। वहाँ के प्राचीन मुस्लिम इतिहासकारों ने ही लिखा है कि हिन्दू राजाओं द्वारा बनवाए गए कई मंदिर कश्मीर में दुनिया के आश्चर्य हुआ करते थे।

सिकंदर शाह मीरी ने उनमें से कई मंदिरों को ध्वस्त कर के उन्हीं ईंट-पत्थरों का इस्तेमाल कर मस्जिदें बनवाई। कहा जाता है कि पूरे एक साल तक उसने मार्तंड सूर्य मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। इसके बाद उसने इसकी जड़ों को खोदना शुरू किया और उनमें से पत्थर निकाल कर लकड़ियाँ भर देता था। इसके बाद उन लकड़ियों में वो आग लगवा देता था। इस तरह उसने मार्तंड सूर्य मंदिर को ध्वस्त कर डाला। फिर उसने कई अन्य मंदिरों के भी नामोंनिशान मिटा दिए।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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