बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान इलाज के दौरान पत्र के जरिए लम्बे समय से चल रही अपनी बीमारी के इलाज, भय और अपनी आशाओं के बारे में मीडिया से बात करते रहते थे। इरफ़ान ने इनमें से कुछ पत्र में अपने और इस बीमारी के बीच के संघर्ष तो कभी अपनी बेहतर होती स्थितियों के बारे में लिखा था। इरफान का लम्बी बीमारी के बाद आज 54 साल की उम्र में निधन हो गया।
लंदन से आया इरफान खान का वो पत्र
2018 में जब वो लन्दन में अपना उपचार करवा रहे थे तब इरफान ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को एक बेहद भावुक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने अपनी बीमारी और इससे जूझते हुए तनाव और सारी परेशानी को बताया। पत्र का एक हिस्सा कुछ इस तरह से है –
“काफ़ी समय बीत चुका जब मुझे हाई-ग्रेड न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर बताया गया था। यह मेरे शब्दकोश में एक नया नाम है। मैं अब एक प्रयोग का हिस्सा बन चुका था। मैं एक अलग गेम में फँस चुका था। तब मैं एक तेज ट्रेन राइड का लुत्फ उठा रहा था, जहाँ मेरे सपने थे, प्लान थे, महत्वकांक्षाएँ थीं, उद्देश्य था और इन सब में मैं पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था… और अचानक किसी ने मेरे कंधे को थपथपाया और मैंने मुड़कर देखा, वह टीसी था, जिसने कहा, ‘आपकी मंजिल आ गई है, कृपया उतर जाइए।’ मैं हक्का-बक्का सा था और सोच रहा था, ‘नहीं नहीं, मेरी मंजिल अभी नहीं आई है।’ उसने कहा, ‘नहीं, यही है।”
“अब मुझे दर्द की असली फितरत का पता चला”
“…जिंदगी कभी-कभी ऐसी ही होती है। इस आकस्मिकता ने मुझे एहसास कराया कि कैसे आप समंदर के तेज तरंगों में तैरते हुए एक छोटे से कॉर्क की तरह हो! और आप इसे कंट्रोल करने के लिए बेचैन होते हैं। तभी मुझे बहुत तेज दर्द हुआ, ऐसा लगा मानो अब तक तो मैं सिर्फ दर्द को जानने की कोशिश कर रहा था और अब मुझे उसकी असली फितरत और तीव्रता का पता चला। उस वक्त कुछ काम नहीं कर रहा था, न किसी तरह की सांत्वना, न कोई प्रेरणा… कुछ भी नहीं। पूरी कायनात उस वक्त आपको एक सी नजर आती है – सिर्फ दर्द और दर्द का एहसास जो ईश्वर से भी ज्यादा बड़ा लगने लगता है।”
“…जैसे ही मैं हॉस्पिटल के अंदर जा रहा था मैं खत्म हो रहा था, कमजोर पड़ रहा था, उदासीन हो चुका था और मुझे इस चीज तक का एहसास नहीं था कि मेरा हॉस्पिटल लॉर्ड्स स्टेडियम के ठीक दूसरी ओर था। क्रिकेट का मक्का जो मेरे बचपन का ख्वाब था। इस दर्द के बीच मैंने विवियन रिचर्डस का पोस्टर देखा। कुछ भी महसूस नहीं हुआ, क्योंकि अब इस दुनिया से मैं साफ अलग था….”
“..हॉस्पिटल में मेरे ठीक ऊपर कोमा वाला वार्ड था। एक बार हॉस्पिटल रूम की बालकनी में खड़ा इस अजीब सी स्थिति ने मुझे झकझोर दिया। जिंदगी और मौत के खेल के बीच बस एक सड़क है, जिसके एक तरफ हॉस्पिटल है और दूसरी तरफ स्टेडियम।”
“….न तो हॉस्पिटल किसी निश्चित नतीजे का दावा कर सकता है न स्टेडियम। इससे मुझे बहुत कष्ट होता है। दुनिया में केवल एक ही चीज निश्चित है और वह है अनिश्चितता… मैं केवल इतना कर सकता हूँ कि अपनी पूरी ताकत को महसूस करूँ और अपनी लड़ाई पूरी ताकत से लड़ूँ।”
इरफान पिछले कुछ समय से कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे थे। साल 2018 में इस बीमारी का पता चलते ही इरफ़ान काम बीच में ही छोड़कर विदेश में अपना इलाज करा रहे थे। इरफान खान हाई ग्रेड न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। अचानक तबीयत खराब होने के कारण उन्हें मंगलवार को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था, जहाँ उन्होंने आखिरी साँस ली।