Sunday, December 22, 2024
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मोगैम्बो, डॉक्टर डैंग या गेंडास्वामी नहीं, ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्लाने वाला ‘सर कलम’ है भारत का दुश्मन: कंगना रनौत ने ‘तेजस’ में दिखाया नारी शक्ति पर कैसे बनाते हैं फिल्म

'तेजस' सिर्फ एक युद्ध को दिखाने वाली फिल्म नहीं है, बल्कि इसमें पिता-पुत्री की बॉन्डिंग भी दिखती है, एक पारिवारिक माहौल भी दिखता है और रेस्टॉरेंट में भोजन करता प्रेमी जोड़ा भी दिखता है। इस्लामी आतंकवाद के कारण कैसे परिवार और प्यार मातम में बदल जाता है - ये भी दिखाया गया है।

2 महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए – ‘एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA)’ और एक ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), जो मिल कर भारतीय वायुसेना और नौसेना के लिए लड़ाकू विमानों का निर्माण करती रही है। जहाँ ADA भारत के रक्षा मंत्रालय के ‘डिफेंस रिसर्च एन्ड डेवलपमेंट (DR&D)’ के अंतर्गत आती है, वहीं HAL का एक भाग है – ‘एयरक्राफ्ट डिजाइन एन्ड रिसर्च सेंटर (ADRC)’। DR&D और ADRC ने मिल कर ही ‘तेजस’ फाइटर एयरक्राफ्ट का निर्माण किया है।

ये हलके वजन वाले लड़ाकू विमानों में गिना जाता है, जिनमें हवा में रहते हुए ही ईंधन भरा जा सकता है। बड़ी बात कि ये एक स्वदेशी लड़ाकू विमान है। जिन हथियारों को बड़े-बड़े विमान ढोते हैं, उन्हें ‘तेजस’ भी आसानी से अपने साथ लेकर जा सकता है। ये न सिर्फ एयर टू एयर, बल्कि एयर टू ग्राउंड मार करने में भी सक्षम है। ये एक सुरक्षित दूरी से दुश्मन के विमानों को मार गिरा सकता है। यहाँ हम ‘तेजस’ विमान की बात इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि ये शब्द बहुत चर्चा में है। कंगना रनौत इसी नाम की एक फिल्म लेकर आई हैं।

‘तेजस की समीक्षा’: कैसी है कंगना रनौत की फिल्म की कहानी?

इसमें कंगना रनौत ने भारतीय वायुसेना की अधिकारी ‘तेजस गिल’ का किरदार निभाया है। एक सिख महिला अधिकारी, जो एक खतरनाक रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देती है और आतंकवादियों का काम तमाम करती है। इसमें उनका साथ देती है ‘आफिया’ नाम की एक मुस्लिम अधिकारी। फिल्म की शुरुआत में ही बता दिया गया है कि न सिर्फ इसके मुख्य किरदार का नाम ‘तेजस’ है, बल्कि ये फिल्म ‘तेजस’ फाइटर एयरक्राफ्ट के इर्दगिर्द भी घूमने वाली है। ‘तेजस गिल’ के ट्रेनिंग वाले दिन, परिवार के साथ गुजारे गए समय और फिर वायुसेना में सेवा को अच्छी तरह उकेरा गया है।

सबसे पहले बात करते हैं फिल्म की कहानी की। ‘तेजस’ की कहानी क्या है ये तो आपको फिल्म देख कर ही पता चलेगा, यहाँ हम सिर्फ ये बता रहे हैं कि कहानी कैसी है। ‘तेजस’ की कहानी में एक्शन है, इमोशन है, थ्रिल है और टुकड़ों में सस्पेंस भी है। इसमें 26/11 का मुंबई हमला है, पाकिस्तान के आतंकवादी हैं, राम मंदिर है और एक छोटी सी प्रेम कहानी भी है। लेकिन, ‘तेजस’ में कुछ भी जबरदस्त ठूँसा हुआ नहीं लगता। इसमें महिला शक्ति का महत्व दिखाने के लिए डायलॉग्स हैं, देशसेवा का जोश भर देने वाले भी संवाद हैं।

लेकिन, ‘तेजस’ की सबसे बड़ी हाइलाइट है – हवाई युद्ध। आप सिनेमाघर में इस दृश्य का इंतज़ार करेंगे क्योंकि आपको पता होगा कि ये आने वाला है, जब ये दृश्य आएगा तो आपकी नज़रें एक सेकेण्ड के लिए भी स्क्रीन से हटीं तो आपको ऐसा लगेगा कि बहुत कुछ छूट गया। बॉलीवुड में शायद ही किसी फिल्म में इससे पहले एयर वॉरफेयर को इस तरह से दर्शाया गया हो। ‘तेजस’ एयरक्राफ्ट के साथ हवाई कलाबाजियाँ, महिला पायलट्स, पाकिस्तानी वायुसेना से हवा में ही युद्ध और कंगना रनौत का इन दृश्यों में अभिनय – सब प्रभावशाली है।

इस मामले में फिल्म कुछ नया दिखाती है, एक शुरुआत करती है जो आगे कई अन्य फिल्मों की कहानी का आधार बनेगी। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में घुस कर आतंकियों का सफाया करते हुए इससे पहले किसी सैनिक को नहीं दिखाया गया है फिल्मों में, लेकिन ‘तेजस’ में 2 चीजें नई हैं, खास हैं – महिलाओं द्वारा ऑपरेशन को लीड करना और हवाई युद्ध को बारीकी से दिखाना। अब जब देश स्वदेशी हथियारों और फाइटर जेट्स से लैस हो रहा है, रूस-यूक्रेन व इजरायल-हमास युद्ध से जूझती दुनिया में भारत के लोग अपनी रक्षा क्षमताओं को पर्दे पर देखना ज़रूर पसंद करेंगे।

जहाँ तक कंगना रनौत के अभिनय की बात है तो एक्शन दृश्य उनके लिए कोई नई बात नहीं है। कई फिल्मों में वो ये कर चुकी हैं और यही कारण है कि वो काफी सहजता से एक वायुसेना अधिकारी के किरदार को निभाती हैं। उनकी कड़ी ट्रेनिंग और तगड़ी रिसर्च का ही कमाल है कि आपको पर्दे पर तो कंगना रनौत दिखती हैं, लेकिन हाव-भाव किरदार के होते हैं। फिर धीरे-धीरे वो किरदार कंगना पर हावी होता चला जाता है और फिल्म खत्म होने-होने तक आप किरदार को देखने लगते हैं। ये कंगना रनौत के अभिनय का कमाल है, लेकिन हाँ, ये उनके लिए या दर्शकों के लिए कोई नई बात नहीं है।

कंगना रनौत के अलावा इस फिल्म में अंशुल चौहान का भी अच्छा किरदार है, जो उनकी साथी पायलट की भूमिका में हैं। असल में ये कहानी ‘तेजस गिल’ और ‘आफिया’ की ही है – एक मुस्लिम और एक सिख सैनिक की। इस किरदार का इस्तेमाल फिल्म में एक हल्का-फुल्का क्षण लाने के लिए भी किया गया है। फिल्म की शुरुआत में भी एक कॉमिक दृश्य डाला गया है, जो कि इस तरह की थ्रिलर और देशभक्ति फिल्म में ज़रूरी है ताकि दर्शकों का मनोरंजन भी होता रहे। यहाँ ‘तेजस’ के बैकग्राउंड संगीत का जिक्र करना आवश्यक है।

खासकर कंगना रनौत वाले दृश्यों में जिस तरह से पार्श्व संगीत का इस्तेमाल किया गया है, वो काबिले तारीफ़ है। BGM आपको कभी-कभी सीट से उछलने के लिए भी मजबूर कर देता है, अंतर ये है कि पुरुष सुपरस्टार्स को देखते समय तो ये आम है लेकिन कंगना रनौत महिला प्रधान फिल्मों को एक नया मोड़ देने जानी जाती रही हैं। ‘दिल है राँझना’ एक वीर रस वाला गाना है। ‘दंगल-दंगल’, ‘जियो रे बाहुबली’, ‘हुड़-हुड़ दबंग’ या ‘चक दे इंडिया’ आपने सुना है, सभी पुरुष अभिनेता और पुरुष गायकों के हैं – इस बार कुछ नया है, रिफ्रेशिंग है।

‘तेजस’ सिर्फ एक युद्ध को दिखाने वाली फिल्म नहीं है, बल्कि इसमें पिता-पुत्री की बॉन्डिंग भी दिखती है, एक पारिवारिक माहौल भी दिखता है और रेस्टॉरेंट में भोजन करता प्रेमी जोड़ा भी दिखता है। इस्लामी आतंकवाद के कारण कैसे परिवार और प्यार मातम में बदल जाता है – ये भी दिखाया गया है। फिल्म का एक डायलॉग है कि आतंकवाद सबके लिए पर्सनल होना चाहिए। यानी, सभी को इसे व्यक्तिगत समस्या के रूप में लेना चाहिए। खासकर के इस्लामी आतंकवाद, जिसे पाकिस्तान में पोषण और प्रश्रय मिलता है।

कंगना रनौत की ‘तेजस’ वास्तविकता दिखाने में नहीं बरतती कोताही

सबसे प्रशंसा योग्य चीज ये है कि कौन लोग इन आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं, इसे छिपाया नहीं गया है। क्या आपने कभी किसी ‘डॉक्टर डैंग’, ‘मोगैम्बो’ या ‘प्रलयनाथ गेंडास्वामी’ को भारत का दुश्मन देखा है वास्तविकता में? किसी अख़बार में पढ़ा? इसीलिए, ‘तेजस’ का विलेन ‘ख़ातूनी’ या फिर ‘सर कलम’ वास्तविक है। कोई ‘ख़ातूनी’ कहीं बैठ कर भारत में किसी बड़े हमले की स्क्रिप्ट लिख रहा होता है तो कोई ‘सर कलम’ भारतीय नागरिकों का गला रेतता है – ये तो आप अक्सर खबरों में देखते होंगे न? जो वास्तविकता है, उसे न ढँकना ही तो साहित्य और सिनेमा का काम है।

कंगना रनौत इस मामलों में वास्तविक रूप से बहादुर हैं। वो ट्रेंड बदलने का काम करती हैं, नए ट्रेंड को स्थापित करने का काम करती हैं – अच्छे के लिए। ‘अल्लाहु अकबर’ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ जैसे नारों को वो अपनी फिल्मों में छिपाती नहीं हैं। जब कोई आतंकी सरगना ये बोलता है कि वो हिन्दू महिलाओं को दबोचना चाहता है, तो हमें कश्मीर की याद आ जाती है जहाँ ये नारा लगता था कि सभी हिन्दू पुरुष घाटी से चले जाएँ, लेकिन अपनी महिलाओं को यहीं छोड़ कर। इस सोच को भला क्यों छिपाना? नहीं छिपाएँगे, तभी तो लोग जागरूक होंगे, तभी तो इस पर वार होगा।

कोई आतंकी सरगना कहता है कि वो पुजारी को मरते हुए देखना चाहता है। ये भी वास्तविक है। अगस्त 2001 के अंत में 2 हिन्दू पुजारियों का अपहरण कर के आतंकियों ने उनका सिर कलम कर दिया था। ये घटना कश्मीर के सूरनकोट-पुँछ रोड स्थित धुन्धक पुल के पास हुई थी। वहाँ स्थित काली मंदिर के पुजारी नरोत्तम दास और बाबा देवी दास का ‘सर तन से जुदा’ कर दिया गया था। इस सोच को आप इस फिल्म में भी देखेंगे, इसके पीछे कौन हैं ये भी। वही सब, जो बॉलीवुड आज तक छिपाता रहा है।

कुल मिला कर कहें तो घर में घुस कर मारने वाले ‘नया हिंदुस्तान’ को दिखाने वाली फिल्मों के क्रम में ‘तेजस’ एक नया अध्याय जोड़ने वाली है। एक ऐसा हिंदुस्तान, जहाँ की सरकार दुश्मन वार करने से हिचकती नहीं और जहाँ की सुरक्षा एजेंसियों के हाथ बँधे हुए नहीं हैं। जहाँ डोजियर पर डोजियर नहीं सौंपे जाते, बल्कि सीधा एक्शन होता है। ‘तेजस’ में हल्का-फुल्का सेक्युलरिज्म भी है, लेकिन ये बॉलीवुड से जाते-जाते जाएगा। ‘तेजस’ बड़े पर्दे पर अनुभव करने वाली फिल्म है। उद्घाटन से पहले आपको राम मंदिर को देखने का मौका मिल रहा है, ‘तेजस’ के क्लाइमैक्स का ये एक रोचक हिस्सा है।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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