प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बुधवार (मार्च 26, 2019) को भारत के अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारत ने आज एक अभूतपूर्व सिद्धि हासिल की है। भारत में आज अपना नाम ‘स्पेस पावर’ के रूप में दर्ज करा दिया है। अब तक रूस, अमेरिका और चीन को ये दर्जा प्राप्त था, अब भारत ने भी यह उपलब्धि हासिल की है। हमारे वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर LEO (Low Earth Orbit) में एक सक्रिय सैटेलाइट को मार गिराया है। ये लाइव सैटेसाइट जो कि एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था, उसे एंटी सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) द्वारा मार गिराया गया है। यह मिशन सिर्फ़ 3 मिनट में पूरा कर लिया गया।
लेकिन, क्या आपको पता है कि 2007 में चीन ने भी कुछ इसी तरह के ऑपरेशन को अंजाम दिया था, जिसने दुनिया में हलचल मचा दी थी। सभी देशों ने इसपर चिंता जताई थी और अंतरिक्ष में युद्ध छिड़ने की आशंकाओं के कारण उनकी चिंता बहुत हद तक सही भी थी। आइए एक नज़र डालकर देखते हैं कि चीन ने क्या किया था और उसके बाद का घटनाक्रम क्या था? चीन ने ने जनवरी 2007 की शुरुआत ही इसी से की थी। उस महीने में चीन ने अपने एंटी-सैटेलाइट वेपन का पहली बार सफलतापूर्वक प्रयोग किया था। इसके बाद ही अंतरिक्ष मिलिट्री स्पेस में उसने प्रमुख भूमिका निभाने की अप्रत्यक्ष रूप से घोषणा कर दी थी। इस टेस्ट के कुछ दिनों बाद अमेरिका ने अंतरिक्ष में सैटेलाइट के कचरे को ट्रैक कर लिया था।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चीन द्वारा ऐसा किए जाने के 27 वर्ष पहले तक किसी भी देश ने ऐसा कुछ नहीं किया था। 1980 के दशक के मध्य वाले दौर में जब रूस और अमेरिका ने ऐसा ही कुछ किया था, तब किसी को शायद ही लगा था कि आने वाले समय में कोई भी देश ऐसा करने की हिमाकत कर पाएगा या फिर इस तरह की तकनीक या क्षमता विकसित कर पाएगा। दोनों देशों ने एंटी-सैटेलाइट तकनीक विकसित कर अंतरिक्ष में स्पेसक्राफ्ट को मार गिराया था। लेकिन, चीन ने 3 दशक बाद ही सही लेकिन यह कर दिखाया। चीन के इस शक्ति प्रदर्शन को अंजाम दिए अभी एक दशक से कुछ ही अधिक हुआ और भारत ने अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में दमदार एंट्री ली है।
China started space program way earlier than India. They have already sent a manned mission to space and achieve ASAT capacity in 2007. By 2020 it will have a station in space and send crew to moon.
— Monica (@TrulyMonica) March 27, 2019
How come they left India behind without hvng Nehru by their side?
You got it pic.twitter.com/9ZoZ4hzzyl
चीन ने एक उम्रदराज मौसम सैटेलाइट को मार गिरा कर ये उपलब्धि हासिल की थी। उस समय विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि एंटी-सैटेलाइट आर्म्स की दौर में ये एक गलत ट्रेंड की शुरुआत करेगा। आज भारत के लिए ये तकनीत विकसित करने का सही समय था क्योंकि चीन द्वारा सीमा पर उत्पन्न किए जा रहे संकटों के दौर में ये प्रतिद्वंद्विता शक्ति प्रदर्शन की है, तकनीक की है, तैयारी की है, और नेतृत्व की है। उस समय चीन पर अमेरिका ने कुछ तरह के हथियार प्रतिबन्ध भी लगा रखे थे, इसीलिए कुछ विश्लेषकों ने इसे तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर चीन द्वारा एक दबाव के रूप में देखा था।
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में राकेट लॉन्चिंग और अंतरिक्ष क्रियाकलापों पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञ जोनाथन मैकडोवेल ने इसे पिछले दो दशकों में ‘Space Weaponization’ की दिशा में किया गया पहला प्रयास बताया था। उन्होंने दावा किया था कि चीन की इस हरकत के साथ ही 20 वर्षों से इस क्षेत्र में जो शांति और संयम का दौर चल रहा था, वो अब ख़त्म हो चुका है। व्हाइट हाउस ने चीन के इस कार्य के लिए चिंता जताई थी और कहा था कि न सिर्फ़ अमेरिका बल्कि अन्य देश भी इससे चिंतित हैं। अमेरिका ने भले ही चीन का उस समय विरोध किया हो, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की ग्लोबल संधि के प्रयासों का अमेरिका ही विरोध करता रहा है। अमेरिका इस क्षेत्र में किसी ‘Global Treaty’ के ख़िलाफ़ रहा है।
चीन ने इस चीज को बहुत ही गुप्त रखा था। यहाँ तक कि टेस्ट हो जाने के एक सप्ताह बाद भी अमरीका को पूरी तरह नहीं पता था कि ये सब कैसे हुआ? अगस्त 2006 में जॉर्ज बुश द्वारा एक नई राष्ट्रीय नीति अधिकृत की थी जिसमें इस तरह के परीक्षणों पर वैश्विक प्रतिबन्ध की बात को नकार दिया गया था। उस नीति में कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका अंतरिक्ष में अपने अधिकारों, कष्टों और कार्रवाई की स्वतन्त्रता को संरक्षित रखेगा। विडंबना देखिए कि उसी नीति में अमेरिका ने यह भी कहा था कि अगर कोई अन्य देश उन अधिकारों को बाधित करने का प्रयास करता है या फिर ऐसा करने की क्षमता विकसित करने की कोशिश करता है, तो अमेरिका उसे ऐसा करने से मना करेगा, रोकेगा।
Though China tested ASAT technology in 2007, Russia in 2015 & USA tested in 1985. China was against militarisation of space and publicly advocated a ban on space weapons. So, wait for Chinese reaction
— Sanjay Bragta (@SanjayBragta) March 27, 2019
सालों से चीन और रूस इस मामले में एक वैश्विक संधि की वकालत करते रहे हैं, जो इस तरह के परीक्षणों पर प्रतिबन्ध लगाए। कई विश्लेषकों ने माना था कि चीन द्वारा ये हरकत दूसरे महाशक्तियों को इस संधि के पक्ष में करने के लिए की गई थी। ये पुराना हथकंडा रहा है जिससे ऐसे शक्ति-प्रदर्शनों कर के दूसरे देशों को ‘Negotiation Table’ पर लाया जाता है। कोल्ड वॉर के समय से ये हथकंडा अपनाया जाता रहा है। चीन ने भी कुछ ऐसा ही किया ताकि अंतरिक्ष के Weaponization पर अमेरिका को बातचीत के टेबल पर लाया जा सके। आइए अब एक नज़र डालते हैं कि चीन ने क्या और कैसे इस टेस्ट को किया था।
दरअसल, चीन ने जिस सैटेलाइट को ध्वस्त किया था, उसे 1999 में रिलीज किया गया था और वो उस सीरीज का तीसरा सैटेलाइट था। वो एक घन (Cube) के आकार का था, जिसके हर एक साइड का माप 4.6 फ़ीट था। इसके सोलर पैनल की लम्बाई 28 फीट के क़रीब थी। बता दें कि सूर्य से ऊर्जा लेने के लिए सैटेलाइट्स में सोनल पैनल (Photovoltaic Solar Panel) का प्रयोग किया जाता रहा है। बाहरी सौरमंडल (Outer Solar System) में, जहाँ सूर्य का प्रकाश काफ़ी कम होता है, वहाँ ‘Radioisotope Thermoelectric Generators (RTGs)’ को उपयोग में लाया जाता है। ये सोलर पैनल प्रकाश (Sunlight) को Electricity में कन्वर्ट करता है।
उस टेस्ट में चीन ने एक ज़मीन आधारित (Ground Based) इंटरसेप्टर का प्रयोग किया था। इसने Warhead में विस्फोट करने की बजाय ‘Sheer Force Of Impact’ का प्रयोग कर सैटेलाइट के परखच्चे उड़ा दिए थे। उक्त सैटेलाइट रिटायरमेंट की उम्र में पहुँच चुका था लेकिन मार गिराए जाने के समय वह इलेक्ट्रॉनिक रूप से ज़िंदा था, जिस से इसे एक ‘Ideal Target’ माना गया होगा। कैम्ब्रिज के वैज्ञानिक डेविड सी राइट ने अनुमान लगाया था कि ये सैटेलाइट 800 फ़्रैगमेन्ट्स में टूटा था, जो कि 4 इंच के आसपास के माप वाले थे। चौंकाने वाली बात अब सुनिए। डेविड के मुताबिक़, कचरे के रूप में उस सैटेलाइट के करोड़ों टुकड़े हुए थे जो कि अंतरिक्ष में बिखर गए। इसे ‘Space Debris’ कहा जाता है।
A lot of comparisons are going to be made with China’s 2007 ASAT test. That was at a higher orbit (800-900 km), and created a huge amount of debris.
— Dhruva Jaishankar (@d_jaishankar) March 27, 2019
It is possible (we’ll know soon), that the debris from India’s ASAT test will have mostly burned up in the atmosphere. pic.twitter.com/ppQYjtcoA7
अब थोड़ी सी बात रूस और अमेरिका के परीक्षणों के बारे में कर लेते हैं। सोवियत यूनियन ने 1968 और 1982 के बीचे ऐसे दर्जनों एंटी-सैटेलाइट परीक्षण किए थे। कहा नहीं जा सकता कि इनमें से कितने सफल रहे और कितने असफल। राष्ट्रपति रीगन के शासनकाल में अमेरिका ने 1985-86 में ऐसे परीक्षण किए थे। अमेरिका में लेजर हथियार बनाने के लिए सालों से रिसर्च चल रहा है और लेजर हथियारों को भविष्य में अंतरिक्ष युद्ध की स्थिति में सबसे प्रभावी माना जाता रहा है। भारत शांतिप्रिय देश रहा है और इसीलिए भारत ने ईमानदारी से सारी चीजों को सार्वजनिक रूप से वैश्विक पटल पर रख दिया है। लेकिन चीन के विषय में ऐसा कुछ नहीं हुआ था। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने तो इसे मीडिया की चर्चा बताते हुए कहा था कि उन्हें इन सब चीजों पर बयान देने के लिए समय नहीं है।
जापान ने चीन के परीक्षण के बाद कहा था कि सभी देशों को अंतरिक्ष का शांतिपूर्वक उपयोग करना चाहिए। रूस ने कहा था कि वो हमेशा से अंतरिक्ष का सैन्यीकरण के विरुद्ध रहा है। ब्रिटिश शासन ने तो चीन से अपना विरोध तक दर्ज कराया। उन्होंने अंतरिक्ष में कचरे के दुष्प्रभाव को लेकर चिंता जताई थी। ये चिंता जायज थी क्योंकि उस कचरे ने पिछले 50 वर्षों में सबसे ख़तरनाक Fragmentation को अंजाम दिया था। उस कचरे के अधिकतम 3850 किलोमीटर तक की दूरी तक फ़ैल जाने का अंदेशा जताया गया था, जो कि धरती के पूरे लो ऑर्बिट को कवर करता है।