भारत ने म्यांमार में अब तक दो सर्जिकल स्ट्राइक की हैं। एक जून 2015 में की गई थी और दूसरी हाल ही में फरवरी-मार्च (2019) के बीच चले ऑपरेशन में की गई जिसकी जानकारी कुछ दिन पहले ही मीडिया में आई। इस लेख में इन दोनों ऑपरेशन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है।
मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार फरवरी 17 से मार्च 2, 2019 के बीच भारतीय सेना की स्पेशल फ़ोर्स के जवानों ने म्यांमार में फिर से आतंकी ठिकानों पर हमला कर उन्हें ध्वस्त कर दिया। इस बार अराकान आर्मी को निशाना बनाया गया जो भारत के सहयोग से म्यांमार में निर्मित सित्वे पोर्ट के लिए खतरा बन चुके थे। ईरान में चाबहार के बाद अब म्यांमार में भी भारत के सहयोग से निर्मित सित्वे पोर्ट चालू हो चुका है जिसके बाद दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक एवं व्यापारिक साख़ मज़बूत होनी निश्चित है। इसे चीन के बेल्ट एन्ड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
सित्वे पोर्ट का निर्माण कालादान मल्टी मोडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के अंतर्गत हुआ है जिसके बहुआयामी उद्देश्य हैं। कालादान प्रोजेक्ट भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों और कलकत्ता को म्यांमार के रखाइन और चिन राज्यों से जल तथा भूमि मार्ग से जोड़ने के लिए 2008 में प्रारंभ किया गया था। भारत ने इस पूरे प्रोजेक्ट पर लगभग ₹3170 करोड़ का निवेश किया है जिसमें से सित्वे पोर्ट और पालेत्वा में अंतर्देशीय जलमार्ग पर लगभग ₹517 करोड़ व्यय हुए हैं।
BREAKING @IndiaToday: Big infra project vital for North East connecting Kolkata to Mizoram via Sitwe port in Myanmar under threat. How Indian Army thwarted the danger to #KaladanProject in a 2 week operation when focus was on responding to Pak post Pulwama More updates coming up pic.twitter.com/UgEzxCoHIw
— Abhishek Bhalla (@AbhishekBhalla7) March 15, 2019
चीन ने कालादान परियोजना को बाधित करने के भरसक प्रयास किए थे। यदि चीन म्यांमार स्थित सित्वे पोर्ट पर अपना अधिकार स्थापित कर लेता तो बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना को अपनी प्रभावी क्षमता पुनः प्राप्त करना अत्यंत कठिन होता। चीन ने म्यांमार के आतंकी गुटों से भी सम्पर्क स्थापित किए थे ताकि उन्हें बांग्लादेश और म्यांमार के मार्ग से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में घुसपैठ कराई जा सके।
अराकान आर्मी म्यांमार सरकार द्वारा घोषित आतंकवादी संगठन है जो लगातार म्यांमार की सेना ‘तत्मादॉ’ से लड़ता रहता है। दिसंबर 2015 में इस संगठन ने रखाइन प्रान्त में सित्वे के पास कई दिनों तक हिंसक संघर्ष किया था। उसके बाद भी म्यांमार की सेना के विरुद्ध कई बार लड़ाई हुई। सित्वे को सुरक्षित रखना भारत के हित में जरूरी था इसलिए भारतीय सेना ने म्यांमार सेना के साथ मिलकर अराकान आर्मी को सबक सिखाया।
इस ऑपरेशन में करीब एक दर्जन आतंकी कैम्पों को ध्वस्त कर दिया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया में रजत पंडित की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने पहले से ही म्यांमार की 1600 किमी लंबी सीमा पर ऑपरेशन सनराईज़ के अंतर्गत इन्फैंट्री, असम राइफल्स, स्पेशल फ़ोर्स और ड्रोन के अतिरिक्त बल तैनात किए हैं। म्यांमार और भारतीय सेना ने चिन स्टेट और साउथ मिज़ोरम स्थित बॉर्डर पिलर 1-9 पर मिलिट्री ऑपरेशन कर अराकान आर्मी के 10-12 कैंप तबाह कर दिए जो कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी के साथ मिलकर काम कर रहे थे। कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी चीन के प्रभाव में काम करने वाला संगठन है। पूरे ऑपरेशन में NSCN (K), NDFB (S), ULFA (I) के उग्रवादियों को भी मार गिराया गया।
इससे पहले 2015 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक में डोगरा रेजिमेंट के 18 सैनिकों की हत्या का बदला लिया गया था। 4 जून 2015 को NSCN के आतंकवादियों ने मणिपुर के चंदेल ज़िले में भारतीय सेना के 18 जवानों की हत्या कर दी थी। इसका प्रतिशोध लेने के लिए भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा के 10 किमी भीतर तक स्पेशल फ़ोर्स भेजी थी। उस समय तत्कालीन COAS जनरल दलबीर सिंह को ब्रिटिश आर्मी की गोरखा रेजिमेंट की 200वीं वर्षगाँठ पर ब्रिटेन जाने का न्योता मिला था जो उन्होंने स्थगित कर दिया था।
स्पेशल फ़ोर्स की जिस यूनिट (21 PARA SF) को म्यांमार भेजा गया था उसे ‘वाघनख’ नाम दिया गया था। यह नाम छत्रपति शिवाजी के उस वाघनख पर रखा गया था जिससे उन्होंने अफजल खान का वध किया था। स्पेशल फ़ोर्स की 21 PARA यूनिट पहले 21 मराठा लाइट इन्फैंट्री बटालियन थी। बाद में उसे स्पेशल फ़ोर्स यूनिट बनाया गया था। म्यांमार जाने से पहले स्पेशल फ़ोर्स की यूनिट संयुक्त राष्ट्र के मिशन पर साउथ सूडान जाने वाली थी। तभी उन्हें दिल्ली से नॉर्थ ईस्ट आने के आदेश मिले। इस पर एक जवान ने मजाक में कहा, “कहाँ तो हम प्लेन से विदेश जाने वाले थे लेकिन अब पैदल जाना पड़ेगा।”
स्पेशल फ़ोर्स को दो ठिकानों पर हमले करने थे- एक जिसमें करीब 150-200 आतंकी थे और दूसरा छोटा था जिसमें 50-60 आतंकी थे। हमले की पूरी प्लानिंग 57 डिविज़नल हेडक्वार्टर इंफाल में बनाई गई। निर्धारित रणनीति के तहत तत्कालीन कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत ने पूरी गोपनीयता के साथ स्पेशल फ़ोर्स की टुकड़ी को ऑपरेशन को अंजाम देने के आदेश दिए। 9 जून को 50 सैनिकों की टुकड़ी म्यांमार के घने जंगलों में घुसी जहाँ बड़े कैंप पर अचानक हमला किया गया। उस कैंप में लगभग 150 आतंकी थे। स्पेशल फ़ोर्स को स्पष्ट निर्देश थे कि मारे गए आतंकियों की लाशें गिनने या फोटो लेने के लिए रुकना नहीं है। उन्हें काम खत्म कर लौटने का आदेश था।
स्पेशल फ़ोर्स के सर्जिकल स्ट्राइक कर लौटने के बाद अजित डोभाल और विदेश सचिव जयशंकर ने म्यांमार जाकर राजनयिक संबंध मजबूत किए जिसके कारण हमें म्यांमार से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी और आतंकी संगठनों को समाप्त करने में म्यांमार आर्मी की सहायता मिली।
भारत के लिए सित्वे पोर्ट के महत्व को जानने के लिए यहाँ पढ़ें।