शाहजहाँपुर में जन्मे अशफाकुल्ला ख़ान अपने सभी 6 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। जब महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लिया, तब देश में कई युवा उनसे नाराज़ हो गए थे। अशफाकुल्लाह ख़ान उन्हीं युवाओं में से थे, जो देश को किसी तरह आज़ाद कराना चाहते थे और गाँधीजी के फ़ैसले से उन्हें भी निराशा हुई थी। अशफाकुल्ला ख़ान अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए हिंदी और उर्दू में कविताएँ लिखा करते थे। ये कविताएँ वो वारसी और हज़रत के नाम से लिखते थे। 22 अक्टूबर को अशफाकुल्ला ख़ान की जयंती है। इसी दिन सन 1900 में उनका जन्म हुआ था।
अशफाकुल्ला ख़ान को अगस्त 1925 के काकोरी कांड के लिए याद किया जाता है। आज़ादी की लड़ाई लड़ने के लिए हथियारों की ज़रूरत थी और हथियार प्राप्त करना इतना आसान नहीं था। तभी अशफाकुल्लाह ख़ान और रामप्रसाद बिस्मिल ने मिल कर काकोरी से लखनऊ जा रही एक ट्रेन को लूट कर रुपए जमा करने की योजना बनाई। हथियार ख़रीदने के लिए रुपए की ज़रूरत थी और ब्रिटिश के ट्रेन को लूट कर प्राप्त हुए रुपयों से आज़ादी की लड़ाई के लिए वो हथियार ख़रीदे जा सकते थे। उन्होंने ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सदस्य के रूप में इस घटना को अंजाम दिया था।
जानकारी के लिए बता दें कि चंद्रशेखर आज़ाद भी उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने काकोरी कांड में भाग लिया था। ख़ान और बिस्मिल की दोस्ती की आज भी कसम खाई जाती है। दोनों ही कविताओं के शौक़ीन थे और दोनों के ही मन में भारत को आज़ाद कराने का जज्बा था। दिसंबर 19, 1927 को क्रूर ब्रिटिश सरकार ने दोनों को अलग-अलग जेलों में फाँसी पर लटका दिया। अपने अंतिम दिनों में अशफाकुल्ला ख़ान ने एक कविता लिखी थी, जो इस प्रकार है:
जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;
जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा।
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा;
ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा
जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ;
मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ।
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा;
औ’ जन्नत के बदले उससे, एक नया जन्म ही माँगूँगा।।
अशफाकुल्ला ख़ान को जब फाँसी दी गई, तब उनकी उम्र महज 27 साल ही थी लेकिन उन्होंने भरी जवानी में ख़ुद को भारत माँ की स्वतंत्रता की बलिवेदी पर क़ुर्बान कर दिया। इसी तरह बिस्मिल भी उस समय सिर्फ़ 30 वर्ष के ही थे। आमिर ख़ान की ‘रंग दे बसंती’ में कुणाल कपूर का किरदार अशफाकुल्ला ख़ान पर आधारित था। बिस्मिल और ख़ान की फाँसी के बाद पूरे देश में सजा-ए-मौत के ख़िलाफ़ जनाक्रोश फ़ैल गया था और भारी विरोध प्रदर्शन हुआ था।
जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा,
— Abhishek Singhvi (@DrAMSinghvi) December 19, 2018
जाने किस दिन हिन्दोस्तान आजाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा,
ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा, (1/2)#AshfaqullaKhan pic.twitter.com/ZCR1irM3qP
काकोरी काण्ड के बाद ब्रिटिश सरकार ने इसमें शामिल सभी क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए बृहद अभियान चलाया था। अंग्रेजों ने इसे ‘काकोरी ट्रेन डकैती’ नाम दिया और ठाकुर रौशन सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद और अशफाकुल्ला ख़ान सहित कई क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ छापेमारी शुरू की। चंद्रशेखर आज़ाद को छोड़ कर बाकी सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश ने पकड़ लिया। अपने अंतिम दिनों में भी बिस्मिल और ख़ान ब्रिटिश सरकार से भारत की आज़ादी की बात करते रहे।