तुर्किश मूल के इस्लामी आक्रांता बाबर ने पहले फरगना और काबुल का सुल्तान हुआ करता था, लेकिन उसके बाद सन् 1525-26 में उसने भारत पर आक्रमण किया और फिर मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की। मुग़ल शासन में भारतीय हिन्दुओं को अत्याचार का सामना करना पड़ा। बाबर के नाम पर बनी बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर, 1992 को रामभक्त कारसेवकों ने ध्वस्त कर दिया, जिसे आज भी हम ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाते हैं। क्या आपको पता है कि ‘बाबरनामा’ से पता चलता है कि पहला मुग़ल बादशाह समलैंगिक भी था?
आगे बढ़ने से पहले सन् 1483 में जन्मे बाबर का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया दें कि वो खुद को तैमूर के वंश का सबसे श्रेष्ठ शासक साबित करना चाहता था। समरकंद में लगातार 3 बार हार के बाद उसने भारत का रुख किया था। सूफी फकीर ख्वाजा अहरार ने उसके ये नाम चुना था। चागताई तुर्की उसकी मातृभाषा थी। माँ की तरफ से वो मंगोल शासक चंगेज खान का वंशज था। 1494 ईस्वी में मात्र 11 वर्ष की उम्र में वो फ़रगना का शासक बन गया था।
आज भले ही वेब सीरीज बना कर बाबर का महिमामंडन किया जाता हो और लिबरल गिरोह उसे ‘उदार मुस्लिम’ बना कर पेश करता हो, लेकिन बाबर ने खुद स्वीकार किया है कि वो बाइसेक्सुअल था। ‘बाबरनामा’ बाबर की व्यक्तिगर आत्मकथा है, जिसमें उसने अपने जीवन के बारे में कई चीजें लिख रखी हैं। इसमें उसने लिखा है कि कैसे जब वो 17 साल का था तो वो ‘उर्दू बाजार’ में बाबरी नाम के एक अन्य लड़के के प्यार में पड़ गया था। हालाँकि, उसके उम्र को लेकर संदेह है।
जहाँ कुछ लोगों का मानना है कि वो एक किशोर ही रहा होगा, वहीं कुछ मानते हैं कि उसकी उम्र इससे कम ही थी। बाबर उसके प्रति सम्मोहित था और उसने ‘बाबरनामा’ में इसका खुलासा किया है। कहा जाता है कि बाबर अपनी पत्नियों को लेकर सशंकित था और 8 अगस्त, 1499 से लेकर 28 जुलाई, 1500 ईस्वी के बीच में उक्त लड़के के साथ उसका प्रेम सम्बन्ध चला था। आइए, बाबर की नजर में ही हम इस ‘आकर्षक और युवा लड़के’ के साथ उसके संबंधों को समझते हैं।
‘बाबरनामा’ में उसने लिखा है, “उस समय उर्दू बाजार में बाबरी नाम का एक लड़का था। हमनामी नाम का एक लगाव भी क्या लगाव निकला! उससे एक अजीब सा लगाव पैदा हो गया है। उन खाली दिनों में मैंने एक अजीब सा झुकाव महसूस किया। उसके लिए मैं पागल सा हो रखा था। इससे पहले मुझे किसी से इस प्रकार का आकर्षण या प्यार नहीं हुआ था। वो कई बार मेरी उपस्थिति में आता था, लेकिन मैं शर्म और लज्जा के कारण उसकी तरफ सीधा देख भी नहीं पाता था।”
बाबर ने लिखा है, “फिर मैं उससे बातचीत कैसे कर पाता? एक बार मैं कुछ साथियों के साथ जा रहा था तो उससे मिला।” बाबर ने इस क्षण को काफी आश्चर्यजनक बताया है और उसे याद करते हुए एक शेर भी लिखा, जिसका अर्थ कुछ यूँ होगा, “उस परी-चेहरे पर हुआ शैदा/बल्कि अपनी खुदी भी खो बैठा।” बाबर खुद कह रहा है कि उससे पहले उसने ‘दिल्लगी’ का नाम तक न सुना था, लेकिन अब वो फ़ारसी में शेर लिखने लगा। उस समय उसकी मानसिक स्थिति ‘कुछ और’ ही हो गई थी।
आइए, उस लड़के के लिए बाबर के एक शेर पर नजर डालें, “कोई आशिक, नंगे-खुद, बर्बाद मुझ जैसे न हो/और तुझ सा कोई बुत बेपरवाह बेरहम न हो।” एक अन्य शेर में उसने अपनी हालत बयाँ की है, जिसका अनुवाद है – “न था मालूम, यह गत आशिकी में बना बैठा/परी चेहरों का आशिक बखुदो दीवाना होता है।” बाबर लिखता है कि जब बाबरी उसके सामने आता था तो वो सकुचाहट में उसे शुक्रिया तक नहीं कह पाता था, उसकी घबराहट का आलम कुछ ऐसा रहता था।
बाबर लिखता है, “अपने-आप पर मेरा इतना बस भी नहीं था कि मैं उससे चार बातें भी कर सकूँ। मोहब्बत के जोर, जवानी और जोश का ऐसा आलम मुझ पर सवार था कि कभी-कभी नंगे पाँव गली-मुहल्लों और बाग़-बगीचों में टहलता रह जाता था। न अपने-पराए के लिए कोई शिष्टता रह गई थी, न दूसरों की कोई परवाह। न चलने में चैन मिलता था और न ठहरने में।” बाबर ने इस प्रकरण का समापन भी एक शेर के साथ किया है, “जाऊँ, यह न कूवत रही, ठहरूँ नहीं और ताब/क्या और तू ऐ दिल मुझे बेहाल करेगा।”
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हेरम्बा चतुर्वेदी ने ‘बाबरनामा’ का अध्ययन कर अपनी पुस्तक ‘दो सुल्तान, दो बादशाह और उनका प्रणय परिवेश‘ में बताया है कि कैसे बाबर अपनी पत्नियों को ‘कर्कश, जिद्दी और लड़ाकू कैफियत वाली’ बताता था। साथ ही वो अल्लाह से दुआ करता था कि वो ‘सच्चे मुस्लिमों को चिड़चिड़ी, असंतुष्ट और ग़ुस्सैल पत्नियों से बचाए।’ वो लिखते हैं कि उस दौरान बाबर पत्नी-विमुख हो गया था और आइशा बेगम से निकाह के बाद उसके रिश्ते ठीक नहीं थे।