Sunday, November 17, 2024
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गद्दार को खदेड़ कर गोली मारने वाले कन्हाई: वो जो भगत सिंह से भी कम उम्र में फाँसी पर चढ़े, जिनका खुदीराम से है संबंध

वार्डन ने कनाईलाल दत्त से कहा - "आज तुम हँस रहे हो, कल जब फाँसी पर चढ़ने जाओगे तब होंठों से मुस्कुराहट गायब हो जाएगी।" फाँसी पर जाते हुए कनाईलाल ने मुसकुराते हुए वार्डन से पूछा - "मैं कैसा दिख रहा हूँ?" वार्डन के पास कोई जवाब नहीं था।

मथुरा उत्तर प्रदेश में है और हुगली पश्चिम बंगाल में। जहाँ मथुरा में कन्हैया का जन्म हुआ था, हुगली के चंदननगर में कनाईलाल दत्त (कन्हाई लाल दत्त) जन्मे थे। दोनों का जन्म भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था। दोनों के सिर्फ नाम व जन्मदिन ही समान नहीं हैं बल्कि कृष्ण की तरह कनाईलाल ने भी अपने लोगों को गुलामी के साम्राज्य से मुक्ति दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी थी। कनाईलाल दत्त ने अँग्रेजों के साथ संघर्ष में सर्वोच्च बलिदान दिया।

अगस्त 30, 1888 को जन्माष्टमी के दिन जन्मे कनाईलाल दत्त अपनी ज़िंदगी के 21 साल भी पूरे नहीं कर सके थे। 20 साल की उम्र में ही क्रूर अँग्रेजों ने उन्हें फाँसी और चढ़ा दिया था। वो 20वीं शताब्दी की शुरुआत के उन क्रांतिकारियों में शामिल थे, जिन्हें अँग्रेजों ने आँख मूँद कर फाँसी पर चढ़ाया। कनाईलाल दत्त को तो अपनी सजा के खिलाफ अपील करने तक का मौका नहीं दिया गया था। उन्होंने भारत माँ के लिए फाँसी को भी गले लगाया।

उनके पिता बॉम्बे में अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत थे। उनकी शुरूआती शिक्षा-दीक्षा बॉम्बे के आर्यन सोसाइटी स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हुगली मोहसिन कॉलेज से बीए की परीक्षा दी। कॉलेज के दिनों में ही वो प्रोफेसर चारु चंद्र रॉय के प्रभाव में आकर स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकर्षित हो गए थे। 1908 में उन्होंने कोलकाता का क्रान्तिकारी समूह ‘युगांतर’ ज्वाइन कर लिया था।

भारतवर्ष समय-समय पर विदेशी आक्रांताओं का गुलाम बना, उसमें हमारे अपने ही देश के गद्दारों का अहम रोल था। अँग्रेजों के समय भी ऐसे कई गद्दार थे, जिनमें से एक था नरेन्द्रनाथ गोस्वामी। कनाईलाल दत्त की कहानी भी उसी के इर्दगिर्द घूमती है क्योंकि यही वो व्यक्ति था, जिसने 33 क्रांतिकारियों को फाँसी के फंदे पर झुलवाने के लिए सरकारी गवाह बनने का फैसला लिया था। इसे समझने के लिए पूरे घटनाक्रम को जानते हैं।

उस समय कोलकाता का चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट था डगलस किंग्सफोर्ड, जो क्रांतिकारियों से अपनी नफरत के लिए जाना जाता था। वो युवा स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति काफी क्रूर रवैया अपनाता था। स्वदेशी आंदोलनकारियों को वो अमानवीय तरीके से प्रताड़ित करता था। बदले की भावना लिए उनके साथ पेश आता था। उसे पसंद थे तो सिर्फ वही लोग, जो ब्रिटिश साम्राज्य के वफादार थे, उनका कहा मानते थे।

वो ये दौर भी था, जब क्रन्तिकारी न सिर्फ अँग्रेजों को धूल चटाते थे बल्कि कई पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जनता को अँग्रेजों की क्रूरता और भारत के लोगों के शोषण के बारे में अवगत करा कर उनमें क्रांति की ज्वाला भरते रहते थे। उस समय बंगाल में ‘युगांतर’, ‘वन्दे मातरम्’, ‘संध्या’ और ‘शक्ति’ जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन होता था, जिनसे किंग्सफोर्ड को ख़ासी खुन्नस थी। उसने क्रांतिकारियों से बदला लेने की ठान ली।

मुजफ्फरपुर में किंग्सफोर्ड को मार डालने की योजना बनाई गई, जिसके लिए श्री अरविन्द से भी आशीर्वाद लिया गया। इसके लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को वहाँ भेजा गया। लेकिन, ब्रिटिश सरकार को उनके प्लान की भनक लग गई और इन दोनों के पीछे सीआईडी लगा दी गई। बावजूद इसके ब्रिटिश जासूसों को चकमा देकर ये दोनों मुजफ्फरपुर पहुँच गए और वहाँ कई दिनों तक योजना बनाने के बाद किंग्सफोर्ड पर हमला बोला।

क्रान्तिकारी चाहते थे कि उनके हमलों में किसी निर्दोष की जान न जाए, इसीलिए वो क्रूर ब्रिटिश अधिकारियों पर हमले के समय भी इस बात का ख्याल रखते थे कि कहीं किसी किसी निर्दोष को नुकसान न पहुँच जाए। अप्रैल 30, 1908 को हमला किया गया लेकिन किंग्सफोर्ड बच गया। खुदीराम बोस पकड़ लिए गए। इसके बाद गुस्साए किंग्सफोर्ड ने बंगाल में क्रांतिकारियों का क्रूर दमन प्रारम्भ किया।

33 क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। उनमें से एक कनाईलाल दत्त भी थे, जिन्हें मई 2, 1908 को गिरफ्तार कर लिया गया। क्रांतिकारियों के प्रेस पर छापा मारा गया। उनकी बम फैक्ट्री को जब्त कर लिया गया। बंगाल और बिहार में हाहाकार मच गया। खुद श्री अरविन्द घोष भी गिरफ्तार कर लिए गए। बंगाल और बिहार में हुई कई छापेमारियों में क्रांतिकारियों के साहित्यों को भी जब्त कर लिया गया।

उन्हीं में से एक था नरेंद्र नाथ गोस्वामी, जिसे क्रांतिकारियों की पूरी योजनाओं और उनके कार्यों की जानकारियाँ थीं। चंदरनगर के श्रीरामपुर के रहने वाले गोस्वामी ने कोर्ट में अपने ही साथियों के बारे में अंग्रेजों को सब कुछ सच-सच बता दिया। एक ट्रेन हमले के मामले में उसने बरिन घोष, शांति घोष उलास्कर दत्त का नाम लिया। ऐसा कर के उसने सारे क्रांतिकरियों के बारे में अंग्रेजों के सामने सब कुछ उगल दिया।

बरिन घोष चिंतित हो गए। उन्होंने जेल से निकलने की योजना बनानी शुरू कर दी। इसी बीच एक पिस्टल जेल में ही किसी तरह मँगाया गया। बरिन ने ये पिस्टल सत्येन्द्रनाथ बोस को दिया लेकिन जेल के हॉस्पिटल में भर्ती होने के कारण उन्होंने इतने बड़े पिस्टल का प्रयोग करने में असमर्थता जताई। इसके बाद एक छोटा पिस्टल आया। बस यहीं कनाईलाल दत्त की एंट्री होती है, जिन्होंने अपने हाथ में वो पिस्टल लिया।

इसके बाद वो जेल में एडमिट हो गए। नरेन्द्रनाथ को पहले अलग जेल में रखा गया था, फिर उसे अलीपुर के जेल में लाया गया, जिसके बाद वो हॉस्पिटल में भर्ती हुआ था। बस यहीं क्रांतिकारियों को मौक़ा मिल गया। सत्येंद्र नाथ और कनाईलाल दत्त ने नरेन्द्रनाथ गोस्वामी पर गोली चलाई। इसके बावजूद वो भागने की कोशिश करता रहा। कनाईलाल दत्त ने उसे खदेड़ा और उसकी पीठ पर गोली मारी। वो मारा गया।

यूँ तो उस पूरे घटनाक्रम में 9 गोलियाँ चलाई गई थीं लेकिन मजिस्ट्रेट के आदेश की कॉपी देखें तो अँग्रेजों ने पाया था कि जो गोली अंत में पीठ से जाते हुए छाती के पास अटक गई थी, जिसने गोस्वामी के स्पाइनल कॉर्ड को चीर दिया था, उसी गोली से उसकी मौत हुई। ये शॉट बड़े वाले पिस्टल से फायर किया गया था। डीएम के सामने खड़े होकर दत्त ने खम ठोक कर कहा कि उन्होंने देश के एक गद्दार को मारा है।

नवंबर 10, 1908 को अलीपुर जेल में ही कनाईलाल दत्त को सुबह के 7 बजे फाँसी पर चढ़ा दिया गया। चारु चंद्र रॉय ने इसे लेकर एक किस्सा सुनाया था। उन्होंने बताया था कि कनाईलाल फाँसी की सजा से 1 दिन पहले मुस्कुरा रहे थे, जिस पर ब्रिटीश जेल के वार्डन ने उनसे कहा कि आज तुम हँस रहे हो लेकिन कल देखना, तुम जब फाँसी पर चढ़ने जाओगे तब तुम्हारे होंठों से मुस्कुराहट गायब हो जाएगी। कनाईलाल ने कुछ जवाब नहीं दिया।

अगले दिन जब कनाईलाल को फाँसी के फंदे तक ले जाया जा रहा था, तब वो वार्डन भी वहीं पर था। भारत माँ के लिए बलिदान होने से पहले कनाईलाल ने मुसकुराते हुए वार्डन से पूछा – “मैं कैसा दिख रहा हूँ?” वार्डन के पास कोई जवाब नहीं था। बाद में उस वार्डन ने चारु से कहा कि उसने कनाईलाल को फाँसी देकर एक बहुत बड़ा पाप किया है, अगर देश भर में ऐसे 100 लोग हो जाएँ तो क्रांतिकारियों का उद्देश्य पूरा हो जाए।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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