Sunday, November 17, 2024
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जब सिंध में हिन्दुओं-सिखों का हो रहा था कत्लेआम, 10000 स्वयंसेवकों के साथ पहुँचे थे ‘गुरुजी’: भारत-Pak विभाजन के समय कहाँ थे कॉन्ग्रेस नेता?

जिस कराची को पाकिस्तान की स्थायी राजधानी कहा जा रहा था, ऐसे शहर में हिंदुओं का पथ-संचलन निकालना और गुरु जी की आमसभा आयोजित करने की सोचना भी एक साहसी कदम था।

आज़ाद भारत के इतिहास में आज़ादी का दिन 15 अगस्त जितना महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक है, उतना ही महत्व रखने वाले 15 अगस्त के पहले के कुछ दिन भी है। वे 15 दिन और उनमें होने वाली घटनाएँ आने वाले भविष्य के लिए निर्णायक होने वाली थीं। 1 से 15 अगस्त की कुछ विशेष घटनाओं और इन दिनों के दौरान प्रमुख नेताओं ने क्या गतिविधियाँ की, इस पर प्रशांत पौल द्वारा लिखी पुस्तक “वे पन्द्रह दिन” कुछ रोचक तथ्य सामने लाती है।

यह पुस्तक कुछ नवीन चर्चाओं को जन्म भी देती है जो चिंता करने योग्य है। भारत अपनी आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है, लेकिन हमें इस उत्साह के वातावरण में विभाजन के कारणों को नहीं भूलना चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए की आज़ादी हमें मिली नहीं थी, बल्कि अनेक वीरों के वर्षों के संघर्ष के बाद हमने पाई थी। 15 अगस्त, 1947 के कुछ दिनों पहले आज़ादी मिलने की जितनी ज्यादा खुशी और उत्साह था, उतना ही विभाजन के प्रति भय और आक्रोश भी था।

जैसे-जैसे आजादी का दिन निकट आ रहा था, एक नया वातावरण तैयार हो रहा था। यह वातावरण आज़ाद भारत की खुशी का भी था और विभाजन के दुख का भी। विभाजन, जिसकी नींव मजहब पर रखी गई, उसने अपने ही घरों और मकानों में रहने वाले लोगो को शरणार्थी बना दिया था। जल्द ही पाकिस्तान बनने वाले भारत के उस हिस्से में भय पूर्ण वातावरण बना चुका था। लाहौर और कराची इस आग में जल रहे थे और जल रहे थे वो लोग, जो बचपन से वहाँ पैदा हुए और बड़े हुए।

हिंदुओं और सिखों के लिए अब कई पाकिस्तान बनने वाले भारत में रहना जैसे एक जुर्म बन गया था, जिसकी सज़ा थी केवल मौत। हिंदू और सिख व्यापारियों को भगाना, मारना और उनकी बहन-बेटियों को उठा ले जाना अब आम बात बनती जा रही थी। ‘मुस्लिम नेशनल गार्ड’ जैसे संगठन आक्रमकता बढ़ा रहे थे और दंगे भड़का रहे थे। दंगों, आगजनी, लूटपाट और बलात्कार के इस अशांत वातावरण के बीच हिंदू और सिखों की रक्षा और मदद के लिए कौन था? उन लोगों की दुःख एवं पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर आगे नहीं आई कोई राजनीतिक पार्टियाँ और ना ही आए वह नेता, जो उस समय इतिहास में खुद को दर्ज कराना चाहते थे।

उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ही था, जिसने कराची और लाहौर जैसे प्रांतों में रहने वाले हजारों लाखों सिखों को यह अहसास दिलाया की उनके साथ भी कोई है और वे एकजुट रहें। दंगों और आगजनी के बीच संघ के प्रमुख गुरु गोलवलकर 5 अगस्त से चार दिन के सिंध प्रांत के प्रवास पर जाने वाले थे। अपनी जान की चिंता न करते हुए, गुरु जी ही थे जो जमीनी स्तर पर जा कर, उस अशांत और भयपूर्ण वातावरण में भी हिंदुओं और सिखों के लिए डट कर खड़े थे।

5 अगस्त के दिन बंबई के जुहू से गुरू जी टाटा एयर सर्विसेज के विमान से कराची के लिए रवाना हुए। गुरु जी की सुरक्षा का जिम्मा स्वयंसेवकों ने अपने हाथों में लिया हुआ था। शांत रहने वाले कराची एयरपोर्ट पर उस दिन काफी चहल पहल थी और क्योंकि की आज गुरु जी यहाँ आने वाले थे। स्वयंसेवकों के मन में एक चिंता भी थी, क्योंकि गुरु उस सिंध प्रांत के प्रवास पर थे जो दस दिनों के भीतर ही पाकिस्तान में जाने वाला था।

जिस कराची को पाकिस्तान की स्थायी राजधानी कहा जा रहा था, ऐसे शहर में हिंदुओं का पथ-संचलन निकालना और गुरु जी की आमसभा आयोजित करने की सोचना भी एक साहसी कदम था। और ऐसा ही हुआ। संघ ने दस हज़ार स्वयंसेवकों का यह शानदार संचलन निकाला। सुरक्षा ऐसी थी कि किसी भी मुस्लिम की हिम्मत नहीं हुई कि इस पर हमला कर दे। कराची के प्रमुख चौराहे के पास स्थित खाली मैदान में गुरू जी की आमसभा हुई।

इसमें उन्होंने कहा, “हमारी मातृभूमि पर एक बड़ी विपत्ति आन पड़ी है। मातृभूमि का विभाजन अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति का ही परिणाम है। मुस्लिम लीग ने जो पाकिस्तान हासिल किया है, वह हिंसात्मक पद्धति से, अत्याचार का तांडव मचाते हुए हासिल किया है। हमारा दुर्भाग्य है कि कॉन्ग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए। मुस्लिमों और उनके नेताओं को गलत दिशा में मोड़ा गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि वे इसलाम पंथ का पालन करते हैं, इसलिए उन्हें अलग राष्ट्र चाहिए। जबकि देखा जाए तो उनके रीति-रिवाज, उनकी संस्कृति पूर्णतः भारतीय है अरबी मूल की नहीं।”

उन्होंने आगे कहा था, “यह कल्पना करना भी कठिन है कि हमारी खंडित मातृभूमि, सिंधु नदी के बिना हमें मिलेगी। यह प्रदेश सप्त सिंधु का प्रदेश है। राजा दाहिर के तेजस्वी शौर्य का यह प्रदेश है। हिंगलाज देवी के अस्तित्व से पावन हुआ, ये सिंध प्रदेश हमें छोड़ना पड़ रहा है। इस दुर्भाग्यशाली और संकट की घड़ी में सभी हिंदुओं को आपस में मिल-जुलकर, एक-दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। संकट के यह दिन भी खत्म हो जाएँगे, ऐसा मुझे विश्वास है।”

5 अगस्त को जब दिल्ली में बड़े नेता सोए हुए थे और लाहौर, बंगाल व पंजाब में भीषण दंगों का दौर चल रहा था, उस समय भी गुरु जी जैसा तपस्वी मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर था। 6 अगस्त को गुरुजी स्वयंसेवकों की भारी सुरक्षा के साथ हैदराबाद जो की कराची से 94 मील दूर है, वहाँ के लिए रवाना हुए। गुरु जी हैदराबाद में हिंदुओं को भारत कैसे सुरक्षित पहुँचाया जाए, इस बात का चिंतन कर रहे थे। इसी को लेकर लगभग दो हजार स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण वहाँ हुआ।

आज़ाद भारत की होने वाली सरकार को यह होश ही नहीं था कि सिंध में क्या हो रहा है। हजारों लाखों हिंदू सिखों को सुरक्षित भारत लाना – यह सोचने और करने वाला सिर्फ RSS ही था। ऐसे अनेकों महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जो हमें आसानी से इतिहास की पुस्तकों में नहीं मिलते। यह प्रसंग हमें इतिहास को एक अलग दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित भी करता है और विभाजन के कारणों से अवगत भी। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमने अपने दो हाथ, जो आज पाकिस्तान और बांग्लादेश हैं, उनको अपने से अलग करके आज़ादी प्राप्त की थी।

देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था। आज पाकिस्तान में जहाँ हिन्दू समाज लगभग समाप्त ही हो गया है, वही बांग्लादेश में भी हिन्दू जनसंख्या में भरी गिरावट आई है। हिन्दू या अन्य अल्पसंख्यक धर्मों के लोगों पर निरंतर हमले होते रहते है, उनका जबरन धर्मांतरण किया जाता है। भारतीयों को इन विषयों से अवगत रहना चाहिए, ताकि हमारे देश कि एकता, अखंडता एवं संप्रभुता अखंडता पर फिर से कोई प्रश्न ना उठा सके।

(लेखक सतीश कुमार और निखिल यादव विवेकानंद केंद्र, उत्तर प्रांत के क्रमशः विभाग एवं प्रांत युवा प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं)

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Nikhil Yadav is Presently Prant Yuva Pramukh, Vivekananda Kendra, Uttar Prant. He had obtained Graduation in History (Hons ) from Delhi College Of Arts and Commerce, University of Delhi and Maters in History from Department of History, University of Delhi. He had also obtained COP in Vedic Culture and Heritage from Jawaharlal Nehru University New Delhi.Presently he is a research scholar in School of Social Science JNU ,New Delhi . He coordinates a youth program Young India: Know Thyself which is organized across educational institutions of Delhi, especially Delhi University, Jawaharlal Nehru University (JNU ), and Ambedkar University. He had delivered lectures and given presentations at South Asian University, New Delhi, Various colleges of Delhi University, and Jawaharlal Nehru University among others.

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