देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अक्सर आलोचना होती रही है कि उन्होंने जम्मू कश्मीर के मुद्दे को अटका दिया, पाकिस्तान व चीन पर ढुलमुल रवैया अपनाया, सावरकर-राजर्षि-बोस जैसे बड़े स्वतंत्रता सेनानियों से उनकी नहीं पटी और सत्ता के लिए उन्होंने हर तिकड़म आजमाई। हालाँकि, नेहरू ख़ुद कई बार सही बात बोल जाते थे, जिन्हें आज न सिर्फ़ उनके अनुयायियों बल्कि कॉन्ग्रेस के लोगों को भी जानना चाहिए। ये जवाहरलाल नेहरू का अंतिम इंटरव्यू था। हो सकता है उस समय तक उन्हें चीजें समझ आ गई हों लेकिन उनके पास उन्हें ठीक करने का समय न रहा हो।
ये इंटरव्यू मई 1964 का है। इसी महीने की 27 तारीख को वो चल बसे थे। ऐसे में उनकी कुछ अंतिम वाक्यों की ओर आपका ध्यान दिलाना आवश्यक है। उन इंटरव्यू में हिन्दुओं के बारे में तत्कालीन पीएम नेहरू ने स्वीकार किया था कि ये एक धर्मान्तरण करने वाली प्रजाति नहीं है। नेहरू ने कहा था कि हिन्दू समाज में धर्मान्तरण का कॉन्सेप्ट नहीं रहा है। उन्होंने माना था कि हिन्दुओं को धर्मान्तरण से कोई मतलब नहीं था लेकिन ‘दूसरे पक्ष’ को था। मुस्लिमों के बारे में हमारे प्रथम प्रधानमंत्री ने कहा था कि वो धर्मान्तरण कराने या किसी का धर्म बदलवाने के हमेशा से इच्छुक रहे थे।
एक और बात की चर्चा होती रही है कि क्या भारत में जितने भी मुस्लिम हैं, वो सब बाहर अरब से आए हैं? अधिकांश ऐसा ही दावा करते हैं। जबकि सच्चाई ये है कि इस्लामी आक्रांताओं ने सैकड़ों सालों तक भारत में धर्मान्तरण का कार्य जारी रखा। इसके लिए प्रलोभन दिए गए या फिर क्रूरता अपनाई गई। हिन्दुओं को काफिर समझ कर काटा गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू एक इतिहासकार भी थे। ऐसे में इन कथनों पर भी उनकी राय इसी इंटरव्यू में सामने आई थी। नेहरू ने इस बात से साफ़ इनकार कर दिया था कि भारत में जितने भी मुस्लिम रहते हैं, वो सभी बाहर से ही आए हुए हैं।
जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि, वो सभी हिन्दुओं के ही वंशज हैं। इन मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू ही थे। उन्होंने स्वीकार किया था कि बाहर से तो काफ़ी कम संख्या में मुस्लिम आकर यहाँ बसे थे। नेहरू की मानें तो मुट्ठी भर विदेशी मुस्लिम ही यहाँ आकर बसे थे। इस इंटरव्यू में भारत विभाजन को लेकर भी नेहरू ने अपने विचार रखे थे। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम लीग की स्थापना ही भारत में विभाजन पैदा करने के लिए हुई थी। हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा था कि महात्मा गाँधी या वो भारत-पाकिस्तान विभाजन के पक्ष में नहीं थे लेकिन अंत में उन्होंने निर्णय लिया कि लगातार परेशानी झेलने से अच्छा है कि विभाजन का फ़ैसला स्वीकार कर लिया जाए।
दरअसल, नेहरू से सवाल पूछा गया था कि भारत में तो सालों से आपसी भाईचारे और सद्भाव का माहौल रहा है, ऐसे में वो इस इतिहास को कैसे देखते हैं? इसके जवाब में ही उन्होंने ये बातें कही थीं। उन्होंने पाकिस्तान पर भी गंभीर आरोप लगाए थे। जम्मू कश्मीर को लेकर उन्होंने पाकिस्तान पर वहाँ नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।