Monday, December 23, 2024
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100 साल पहले से ही हिन्दुओं के खून के प्यासे थे मोपला, इन 50 घटनाओं से समझिए: 1921 के हिन्दू नरसंहार से पहले की बर्बरता

यह केवल कट्टरता नहीं थी, यह कृषि की परेशानी भी नहीं थी, यह गरीबी नहीं थी, जिसने अली मुसलैर और उसके अनुयायियों के दिमाग में काम किया। यह खिलाफत और असहयोग आंदोलनों का प्रभाव था, जिसने उन्हें इस अपराध के लिए प्रेरित किया।

साल 1921 का मालाबार हिंदू नरसंहार तो याद ही होगा, जिसे सामान्यतः जमींदारों के खिलाफ ‘किसान विद्रोह’ के तौर पर याद किया जाता है। इसी को लेकर कॉन्ग्रेस सांसद शशि थरूर ने हाल ही में टिप्पणी करते हुए उसे ‘इतिहास का संस्करण’ करार दिया था, जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम किसानों ने हिंदू जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया था। इसको लेकर दावा किया गया था कि 1921 में हुई घटना मुस्लिमों द्वारा किया गया नरसंहार नहीं, बल्कि वह जमींदारों के खिलाफ हुआ विद्रोह था। अगर कोई उन घटनाओं के बारे में पढ़ने की कोशिश भी करे तो उसे प्राथमिक स्रोतों में से खारिज कर दिया गया है।

दीवान बहादुर सी. गोपालन नायर ने अपनी पुस्तक ‘द मोपला रिबेलियन’ में खुलासा किया है कि कैसे मोपला नरसंहार से पहले भी रह-रहकर उन्मादी मुस्लिमों ने हिंदुओं का नरसंहार किया। वह लिखते हैं कि मुस्लिम कभी-कभी अपने ‘हाल इलकम’ (धार्मिक उन्माद) में चले जाते हैं। वह न केवल हिंदुओं का नरसंहार करते हैं, बल्कि उनके मंदिरों को भी अपवित्र कर देते हैं।

उस वक्त मालाबार में विशेष आयुक्त एमआर टीएल स्ट्रेंज को वहाँ के उन्मादी कारणों को समझने के लिए भेजा गया गया। साल 1852 की एक रिपोर्ट में स्ट्रेंज ने लिखा:

“किसी भी खतरे को जमींदारों द्वारा किसानों के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। बावजूद इसके दक्षिणी तहसील में मोपला आबादी इन प्रकोपों का दोष जमींदारों पर मढ़ने की कोशिश कर रही है। वे इसके लिए खूब कोलाहल कर रहे थे। मैंने इस मामले में पूरा ध्यान दिया है और मुझे विश्वास है कि हालाँकि किसानों की व्यक्तिगत कठिनाई के उदाहरण हो सकते हैं, लेकिन हिंदू जमींदार अपने किसानों के प्रति सामान्य चरित्र, चाहे मोपला या हिंदू, नरम, न्यायसंगत और सहनशील हैं। मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूँ कि मोपला के काश्तकारों का आचरण ठीक नहीं है। वो सामान्यतः अपने दायित्वों से बचने के लिए झूठी और कानूनी दलीलों का सहारा लेते हैं। ऐसे में इसको लेकर कड़े उपाय किए जाते हैं।”

उन्होंने आगे कहा:

“इन सभी मामलों में एक विशेषता सामान्य रही है कि उन्हें सबसे निश्चित कट्टरता द्वारा सभी को चिह्नित किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता था। इस तरह की घटनाएँ जिन हिस्सों में है, वहाँ हिंदू मोपलाओं के डर में जी रहे हैं। अधिकतर अपने अधिकारों के लिए वहाँ के हिंदू मोपलाओं के इस तरह के डर में खड़े हैं कि ज्यादातर उनके खिलाफ अपने अधिकारों के लिए दबाव बनाने की हिम्मत नहीं करते हैं। कई मोपला यहाँ किराएदार हैं, लेकिन वे अपना किराया नहीं देते हैं। इसके अपने रिस्क भी हैं और इसीलिए अच्छा है कि वहाँ से बेदखल हो जाएँ।”

जबकि कई ऐसे वसीयतनामा और रिपोर्ट हैं, जिनसे यह साबित होता है कि मालाबार में हिंदुओं का नरसंहार शायद ही जमींदारों के खिलाफ किसान विद्रोह था। वामपंथी हमेशा से इस कहानी को प्रबल तरीके से हिंदू इतिहास के एक जघन्य हिस्से को व्हाइटवॉश करने की कोशिश करते रहे हैं।

‘किसान विद्रोह’ के सिद्धांत का खंडन करने वाले प्रत्यक्ष प्रमाणों के अलावा उसी सामान्य क्षेत्र में हिंदुओं के खिलाफ मोपला ‘आक्रोश’ को लेकर कम से कम 50 डॉक्युमेंट ऐसे हैं जो इस तथ्य को बल देते हैं कि 1921 का नरसंहार किसी भी तरह से अलग घटना नहीं थी, जिसमें काफिरों की हत्या करने के लिए मुस्लिम गए थे।

मोपला नरसंहार की पहली घटना सबसे पहले 1836 से शुरू हुई, जब कट्टरवादी मुस्लिमों ने हिंदुओं का नरसंहार किया था। यह क्रूर हत्या, लूट और बलात्कार की प्रक्रिया रुक-रुक कर 1919 तक जारी रही। मालाबार नरसंहार 1921 में शुरू हुआ और खिलाफत आंदोलन साल 1920 में आधिकारिक तौर पर शुरू किया गया था।

कालीकट के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर दीवान बहादुर सी गोपालन नायर ने अपनी पुस्तक में ऐसी 50 घटनाओं का जिक्र किया है।

1. 26 नवंबर 1836 में पंडालुर एर्नाड में कलिंगल कुन्होलन ने पन्निकर को चाकू मार दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके साथ ही उसने तीन अन्य लोगों को भी घायल कर दिया। हालाँकि, इसके बाद 28 नवंबर को तहसीलदार ने उसे गोली मार दी।

2. इसी तरह से 15 अप्रैल 1837 को एर्नाड के कलपट्टा में चेंगारा अम्सोम के एक अली कुट्टी ने नारायण मूसाद पर हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया और उसकी दुकान पर कब्जा कर लिया है। तहसीलदार और तालुक के चपरासी ने उसे कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन बाद में अगले दिन पुलिस ने उसे गोली मार दी।

3. 5 अप्रैल 1839 में वलुवनाद के पल्लीपुरम में एक थोरयम पुलकल अथान और कई अन्य लोगों ने एक हिंदू मंदिर में आग लगा दी। इसके बाद वे एक दूसरे हिंदू मंदिर में छिप गए जहाँ उन्हें तहसीलदार के चपरासी ने गोली मार दी थी।

4. 6 अप्रैल 18 39: मम्बट्टोडी कुट्टीथन ने एक हिंदू व्यक्ति पारु तारगन और एक तालुक चपरासी को घायल कर दिया। इस मामले में उसे सजा सुनाई गई।

5. 19 अप्रैल 1940: इरिंबल्ली एर्नाड में परथोडियिल अली कुट्टी ने ओडयाथ कुन्हुन्नी नायर समेत एक अन्य व्यक्ति को घायल कर दिया। और मुस्लिम आरोपित ने किदंगिल मंदिर में आग लगा दी। हालाँकि, बाद में तालुक के चपरासी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।

6. 5 अप्रैल 1941 में वलुवनाद के पल्लीपुरम में तुम्बा मणि कुन्युनियन और आठ अन्य लोगों ने एक पेरुम्बल्ली नंबूदिरी समेत एक अन्य व्यक्ति की बेरहमी से हत्या कर दी। कट्टरपंथियों ने उनके घर और 4 अन्य घरों को भी जला दिया था। मोपला के मुस्लिमों को 9 अप्रैल को 36 वीं रेजिमेंट नेटिव इन्फैंट्री और पुलिस चपरासी ने निष्क्रिय कर दिया था।

7. 13 नवंबर 1841 के दिन कैदोट्टी पडिल मोइदिन कुट्टी समेत 7 अन्य लोगों ने हिंदू व्यक्ति तोतास्सेरी ताचू पन्निकर और एक चपरासी को मार डाला। इस वारदात को अंजाम देने के बाद वे तीन दिनों तक एक मस्जिद में छिपे रहे। बाद में 17 नवंबर की सुबह वे तीन अन्य मुस्लिम कट्टरपंथियों से जुड़ गए। हालाँकि, बाद में उन्हें 40 सिपाहियों ने मार डाला।

8. 17 नवंबर 1841 को करीब 2,000 कट्टरपंथी मोपला मुस्लिमों ने उस जगह की रखवाली कर रहे जहाँ 13 कट्टरपंथी मुस्लिमों को दफनाया गया था। बाद में वहाँ से उन्होंने शवों को ले जाकर एक मस्जिद में दफन कर दिया। इनमें से 12 लोगों को दोषी ठहराया गया और दंडित किया गया।

9. 27 दिसंबर 1841 में मेलेमन्ना कुन्यात्तन ने 7 अन्य लोगों के साथ मिलकर तलप्पिल चक्कू नाइक और एक अन्य व्यक्ति की हत्या कर दी औऱ अधिकारी घर में जाकर छिप गए। इसके बाद उन्हें पुलिस और ग्रामीणों ने घेर लिया। फिर उन्हें मार दिया गया और उनकी लाश को कालीकट में फांसी के फंदे के नीचे दबा दिया गया।

10. 19 अक्टूबर 1843 को तिरुरंगाड़ी में कुन्ननचेरी अली आत्मान समेत 5 अन्य लोगों ने हिंदू व्यक्ति कपरात कृष्ण पन्निकर की हत्या कर दी। मोपला के ही एक और मुस्लिम कट्टरपंथी के शामिल होने के बाद वे और अधिक प्रताड़ना देने के लिए वे नायर के घर गए। वे घर में छिप गए। 24 अक्टूबर की सुबह सेना की टुकड़ी को उन्हें मारना था। लेकिन जब मोपला के मुस्लिम उन पर टूट पड़े तो सिपाही वहाँ से भाग गए। बाद में तालुक के चपरासी और ग्रामीणों ने मुस्लिम कट्टरपंथियों को मार डाला। वहीं, मौके से भागे सिपाहियों का कोर्ट-मार्शल किया गया।

11. 4 दिसंबर 1843 नायर नाम के एक मजदूर का शव मिला। उसके शरीर पर 10 गहरे घाव थे। बताया जाता है कि मोपला के मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उसकी हत्या कर दी थी।

12. 11 दिसंबर 1843 में पांडिकड में अनावतत सोलिमन और 9 अन्य लोगों ने हिंदू व्यक्ति करुकम्मन गोविंद और उसके एक नौकर को मार डाला। हमलावर मंदिरों को अपवित्र कर एक घर में छुप गए। घटना के बाद क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती की गई थी, लेकिन जब मोपला मुस्लिमों ने सैनिकों पर हमला किया तो वे मारे गए।

13. इसके बाद 19 दिसंबर 1843 के दिन एक चपरासी का हाथ और धड़ से सिर अलग मिला। इस घटना को अंजाम देने वाले अपराधी मोपला मुस्लिम कट्टरपंथी ही थे।

14. 26 मई 1849 एर्नाड में चकलाक्कल कम्माड ने कन्ननचेरी चेरू नाम के व्यक्ति और एक अन्य व्यक्ति को घायल कर दिया। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपित मस्जिद में छिप गए। उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए राजी करने के लिए तहसीलदार मस्जिद गए। लेकिन बाद में वो मोपला चाकू लेकर उनकी ओर बढ़ा, हालाँकि बाद में वो मारा गया।

15. 25 अगस्त 1849 को तोरंगल उन्नियान ने पदितोदी तेयुन्नी की हत्या कर दी और उसके बाद अत्तन गुरुक्कल और अन्य ने तीन और लोगों को मार डाला। उसके बाद उन्होंने एक मंदिर में शरण ली और मंजेरी में मंदिर को आंशिक रूप से जलाने के साथ ही उसे अपवित्र कर दिया। किताब के मुताबिक, एनसाइन वायस की मौत हो गई थी जब 4 पुरुषों को छोड़कर मोपला के खिलाफ आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और वहाँ से भाग गए। उस रात मोपला के मुस्लिम अंगदीपुरम मंदिर गए और उनके पीछे एक पैदल सेना की टुकड़ी थी। इसके बाद मुसलमानों ने हमला किया और मारे गए। उस रात 64 से अधिक मोपला मुस्लिम मारे गए थे।

16. 2 अक्टूबर 1850 में पेरियाम्बथ अट्टन का बेटा और मोपला अधिकारी ने दूसरों के साथ मिलकर मुंगमदम्बलट्ट नारायण मूसाद को मारने के लिए और उन्हें भी खुद को मारने के लिए इकट्ठा किया था।

17. 5 जनवरी 1851 को पय्यानाड एर्नाड में चूंड्यामूचिकल अट्टान नाम के हमलावर ने रमन मेनन नामक क्लर्क पर हमला कर उसे घायल कर दिया। इसके बाद पुलिस को धता बताते हुए खुद को इंस्पेक्टर के घर में बंद कर लिया। तहसीलदार ने पहले मोपला को सरेंडर कराने की कोशिश की, लेकिन उसने गोली चला दी। जिसके बाद उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।

18. 17 जनवरी 1851 में पुस्तक के अनुसार, 3 मोपला ‘हमले पर विचार’ की योजना बना रहे थे, जिसके बाद उनके टार्गेट को बचाने के लिए सुरक्षा प्रदान की गई थी।

19. 15 अप्रैल 1851 को इलिकोट कुनुन्नी और 5 अन्य लोगों को कोटुपरामबत कोमू और अन्य को तोड़ने और मारने के लिए डिजाइनिंग के रूप में सूचित किया गया था। किताब के मुताबिक, इसकी जानकारी सही थी, लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया।

20. 22 अगस्त 1851 को उपर्युक्त मामले में कुलथुर वलुवनाड में जहाँ कोमू मेनन और उसके नौकर और 3 अन्य के साथ ही मोपला 6 मुस्लिमों ने कदकोटिल नंबूदिरी और कोमू मेनन के भाई रमन मेनन की भी हत्या कर दी। मुस्लिमों ने उन्होंने मुंडनगारा रारिचन नायर पर हमला कर उन्हें बुरी तरह से घायल कर दिया था, जिनकी बाद में मौत हो गई। इसके बाद उन्होंने रामा मेनन के घर में लगाने के बाद वो कुलथुर चले गए और कुलुथुर वरियार नामक एक बूढ़े व्यक्ति और दो नौकरों की हत्या कर दी। हालाँकि, बाद में हुई पुलिस कार्रवाई में एक सूबेदार और 4 यूरोपीय लोगों के साथ 17 मोपला मुसलमान मारे गए।

21. 5 अक्टूबर 1851 को तोत्तिंगल मम्मद और 3 अन्य मोपला मुस्लिमों ने एक ‘आक्रोश’ करने की योजना बनाई थी। जिसके बाद टारगेट को सुरक्षा मुहैया कराई गई थी।

22. 27 अक्टूबर 1851 को इरिंबुली एर्नाड में कलाथुर के विरोध में शामिल होने की कोशिश करने वाले दो मोपलाओं से सुरक्षा वापस ले ली गई है।

23. 4 जनवरी 1852 को 200 मोपला मुस्लिमों की भीड़ द्वारा समर्थित चोरियोट मय और 14 अन्य लोगों ने कलात्तिल केशवन तंगल के घर के सभी 18 लोगों का नरसंहार कर डाला और परिवार को नष्ट कर दिया, मंदिरों को जला दिया, घरों को जला दिया और अंत कल्लियाड नांबियार के घर पर जानलेवा हमला कर दिया। इसके बाद 8 जनवरी को आखिरकार गिर खत्म हो गया।

24. 5 जनवरी 1852 को 5 मोपला मुस्लिमों से सुरक्षा ली गई।

25. 28 फरवरी 1852 को मेलमुरी और किल्मुरी अम्सोम्स के त्रियाकलटिल चेक्कू और १५ अन्य मोपला मुस्लिम ‘मरने और कड़ा प्रतिरोध’ पैदा करने के लिए निकल पड़े। इसके बाद उनसे सुरक्षा छीन ली गई।

26. साल 1852 मई का महीना था, एर्नाड में दो चेरुमा इस्लाम में शामिल होने के बाद घर वापसी कर मूल धर्म (हिंदू धर्म) में लौट आए। ये चेरुमा तब कुदिलिल कन्नू कुट्टी नायर के लिए काम कर रहे थे। चपरासी होने के कारण पहले एर्नाड तालुक से पोन्नानी और बाद में कालीकट में स्थानांतरित कर दिया गया था ताकि उनकी जान बचाई जा सके। किसी भी गड़बड़ी से बचने के लिए हिंदू धर्म में घर वापसी करने वाले लोगों को दूसरीा जगहों पर भेज दिया गया।

27. 9 अगस्त 1852 कुरुम्ब्रानड में 3 मोपला मुस्लिमों गाँव के एक घर में लेखाकार (पुत्तूर) का पद संभाला और ‘बलिदानी’ के रूप में मरने का संकल्प लिया था। उन्होंने हमला करके एक ब्राह्मण को घायल कर दिया और 12 अगस्त को पुलिस ने उन्हें मार डाला।

28. इसी तरह 16 सितंबर 1853 को अंगदीपुरम में कुन्नुमल मोइदिन और चेरुकाविल मोइदिन ने हिंदू व्यक्ति चेंगलरी वासुदेवन नंबूदिरी की हत्या कर दी। मोपला मुस्लिमों को किसी तरह की कोई ‘भर्ती’ नहीं मिल रही थी इसलिए अंगदीपुरम के पास एक पहाड़ी की चोटी की ओर आगे बढ़े। तहसीलदार अपने चपरासी के साथ वहाँ गया था लेकिन कट्टरपंथियों की उन पर हमला कर दिया। उस दौरान 18 गोलियाँ चलाई गईं और बूढ़े को घायल अवस्था में नीचे लाया गया। इसके बाद एक छोटा व्यक्ति घायल होकर चपरासी और उन ग्रामीणों पर गिर गया, जिनके द्वारा उसे भेजा गया था।

29. 12 सितंबर 1855 को कालीकट में 3 मोपला – वलस्सेरी एमालु, पुलियाकुनत तेनु, चेम्बन मोइदिन कुट्टी और वल्लट्टदय्यत्ता परम्बिल मोइदीन कालीकट में जेल के कैदियों के कार्यदल के साथ वलुवनाद जाने के लिए भाग निकले। देश भर में घूमते हुए आखिर में 10 सितंबर को वे कालीकट पहुँचे और 12 सितंबर को उन्होंने कलेक्टर मिस्टर कोनोली की उनके बंगले में हत्या कर दी। हत्यारों को 17 सितंबर को मेजर हेली की पुलिस टीम और एचएम के 74वें हाई लैंडर्स की पार्ट नंबर 5 कंपनी ने गोली मार दी। आक्रोश में फंसे गाँवों से 38,331.80 रुपए का जुर्माना लिया गया और श्रीमती कोनोली को 30,936 रुपए का भुगतान किया गया।

30. नवंबर 1855 को मालाबार पुलिस के कोर ने कोलोनी के हत्यारों का साथ देने के आरोप में गिरफ्तार 2 मोपलाओं को अच्छे व्यवहार के लिए प्रतिभूतियों को देने की जरूरत थी, लेकिन वो 3 साल के सिक्योरिटी देने में सफल नहीं हुए। बाद में उन्हें देश छोड़ने की इजाजत दे दी गई।

31. अगस्त 1857 को पोनमाला में पूवदान कुन्हप्पा हाजी और 7 अन्य मोपला मुस्लिमों पर नायर के घर वापसी करने से अपने धर्म के लिए कथित अपमान का बदला लेने व देश से छुटकारा पाने व काफिरों द्वारा चलाई जा रही सरकार के खिलाफ साजिश रचने का संदह उत्पन्न हुई। बाद में उत्तर भारत में विद्रोह से सरकार कमजोर हो गई थी। षड्यंत्रकारियों को आश्चर्य हुआ और उन्हें बंदी बना लिया गया और उनमें से सात को मोपला आक्रोश अधिनियम के तहत निर्वासित कर दिया गया था।

32. फरवरी 1858 का दिन था और तिरुरंगाड़ी एर्नाड में एक मोपला ने जमीन का एक टुकड़ा खरीदा था, जो 19 अक्टूबर 1943 के विद्रोह के दौरान मारे गए मोपलाओं के मृत्यु संघर्ष की जगह थी। उसने उस जगह एक मस्जिद बनाई। इसके बाद उसने एक दिन का उत्सव आयोजित किया। वहाँ काफी लोग आए और वहाँ संख्या बढ़ने से दावत की स्थिति खराब हो गई। मोपला के खरीददार और दो मुल्लाओं को निर्वासित कर दिया गया।

33. साल 1860 में उत्तरी मालाबार में दो मोपलाओं को एक अधिकारी की जान को खतरे में डालने के कुछ समय के लिए निर्वासित किया गया था।

34. 4 फरवरी 1864 को मेलमुरी में रमज़ान की दावत के दौरान धार्मिक कट्टरता के कारण अत्तन कुट्टी नाम के मोपला ने चाकू से वार कर नोटा पन्निक्कर की हत्या कर दी, जिसे उसने अपने टार्गेट तियान के घर में पाया था। अत्तन को एक साधारण अपराधी के रूप में फाँसी की सजा सुनाई गई थी और उसके साथी को निर्वासित कर दिया गया था। इसके साथ ही गाँव पर भी 2037 रुपए का जुर्माना लगाया गया था।

35. 17 सितंबर 1865 को 3 मोपलाओं को नेन्मिनी अम्सम के शांगू नायर की हत्या का दोषी ठहराया गया था। उस दौरान यह माना गया था कि यह हत्या व्यक्तिगत और निजी उद्देश्यों के कारण की गई थी। हालाँकि, मुवलद समारोह में हत्या से तीन दिन पहले प्रदर्शन के द्वारा एक धार्मिक आवरण फैला दिया गया था। उसमें कई लोग भी मौजूद थे जो कि हत्या के बारे में जानते थे। इनमें से 6 को बाहर कर दिया गया था।

36. 8 सितंबर 1973 को पराल में कुन्हप्पा मुसलियार ने तुथेकिल मंदिर के वेलीचापद या ओरेकल का दौरा किया और वहाँ उसने तलवार से कई बार हमले कर उन्हें वहीं मरने के लिए छोड़ दिया। इसके बाद वो कोलाथुर गया औक कोलाथुर वेरियर के परिवार के एक सदस्य पर जानलेवा हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया। मलप्पुरम के सैनिकों ने घर को घेर लिया, जिसके बाद कट्टरपंथियों ने उनपर हमले कर दिए। इस दौरान जबावी कार्रवाई में 9 में से 8 चरमपंथी मारे गए। इस दौरान एक बच्चा भी घायल हो गया था जो बाद में ठीक हो गया। इस मामले में संबंधित गाँवों पर 42,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया था।

37. 27 मार्च 1877: इरिंबुली में अविंजीपुरथ कुन्ही मोइदीन और 4 अन्य मोपला मुस्लिमों के साथ मिलकर कट्टरता भरा आक्रोश फैलाने की कोशिश की थी। ऐसा इसलिए क्योंकि नायर ने उनमें से एक की बीवी का अपमान कर दिया था। बहरहाल मालाबार से मक्का जाने के लिए चुने गए दो षड्यंत्रकारियों को उन्हें किस स्थान पर भेजा गया था और कुन्ही मोइदीन अच्छे व्यवहार के लिए ‘बाध्य’ कर दिया गया था।

38. जून 1879: पराल में कुन्नानाथ कुन्ही मोइदु ने 6 युवकों लोगों को आक्रोशित करने के इरादे से उकसाया था, लेकिन उससे पहले ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद रिंग लीडर को वहाँ से बाहर कर दिया गया।

40. 9 सितंबर 1880 के दिन मेलत्तूर में इस्लाम अपनाने के बाद फिर से घर वापसी करने वाले एक चेरुमा लड़के एम अली ने गला काट दिया। वारदात के अगले ही दिन उसने एक कुम्हार को भी घायल कर दिया। इसके बाद जब वह इच्छित पीड़ितों के घर गया तो एक चौकीदार ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। इसके लिए 7 मोपलाओं को बाहर कर दिया गया और कुछ पर जुर्माने भी लगाए गए थे।

41. 4 मार्च 1884 के दिन अधिकारियों को एक याचिका मिली थी कि 2 मोपला एक हिंदू की हत्या करने की योजना पर काम कर रहे थे। इसके बाद दो सरगनाओं को भी डिपोर्ट कर दिया गया।

42. 18 जून 1884: किताब के मुताबिक, इस्लाम अपनाने के बाद पुन: हिंदू धर्म अपनाने वाले कन्नाचेरी रमन पर सबसे बर्बर तरीके से हमला किया गया। इस हमले को 2 मोपला मुस्लिमों ने ही अंजाम दिया था। 3 मोपलाओं को आजीवन के लिए ले जाया गया, जबकि 3 अन्य को निर्वासित कर दिया गया।

43. 28 दिसंबर 1884: निर्वासन और जुर्माने के कारण मोपला मुस्लिम नाराज थे। एक कोलाकादम कुय्यासम और 11 अन्य रमन के भाई चोयिकुट्टी के घर के लिए रवाना जाने के लिए निकले, लेकिन मोपला के मुस्लिमों ने उनका हाथों में हथियारों की एक वॉली के जरिए वार किया। इसके बाद उन्होंने हिंदू के घर में आग लगा दी। मलप्पुरम छोड़ने के दौरान रास्ते में भी उन्होंने एक ब्राह्मण व्यक्ति पर हमला कर उसे घातक तरीके से घायल कर दिया और त्रिकालूर मंदिर चले गए। मोपला के मुस्लिम मंदिर में छिपे हुए थे और उसे सैनिकों ने मंदिर को घेर लिया, जिसके बाद मुस्लिमों ने गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। मंदिर के अंदर जाने के लिए उन लोगों ने डायनामाइट ब्लास्ट कर दरवाजे को तोड़ दिया। 12 मुस्लिमों में से 3 अभी भी जीवित थे और 2 की तुरंत मृत्यु हो गई थी।

44. 1 मई 1885: कट्टरपंथी मोपला मुस्लिमों के एक समूह में कुट्टी करियानंद नाम के हिंदू के घर पर हमला कर दिया और उसकी, उसकी पत्नी और उसके 4 बच्चों की हत्या कर दी। उन्होंने उसके घर में आग लगाने के बाद पास के एक मंदिर को भी जला दिया। पीड़िता ने बाद में इस्लाम अपना लिया था, लेकिन 14 साल पहले उसने हिंदू धर्म में वापसी कर ली थी। मौत का तांडव मचाने के बाद मोपला मुस्लिम अपने-अपने क्षेत्रों में चले गए और 2 मई को एक ब्राह्मण व्यक्ति के घर पर कब्जा कर लिया। उसी दिन दोपहर को उन्होंने मलप्पुरम से साउथ वेल्स बॉर्डर्स की एक पार्टी पर हमला किया। उन्होंने सेना पर उस घर की ऊपरी मंजिल की एक खिड़की से गोलियाँ चलाईं और 4 लोग घायल हो गए। बाद में सेना की जवाबी कार्रवाई में सभी 12 मोपला मुस्लिम मारे गए।

45. 11 अगस्त 1885: उन्नी मम्मद नाम का मोपला मुस्लिम धान खरीदने के बहाने एक हिंदू कृष्ण पिशारोदी के घर में घुस गया। जिस वक्त वह हिंदू के घर में घुसा उस दौरान वो स्नान कर रहा था। मम्मद उन्नी (मोपला मुस्लिम) ने चाकू से हिंदू व्यक्ति पर हमला कर दिया। बाद में ट्रायल के बाद उसे फांसी दे दी गई।

​​46. 1894: पांडिकड़ में मोपला मुस्लिमों का एक गिरोह युद्धपथ चल पड़ा। इस दौरान वो घूम-घूमकर रास्ते में नायरों और ब्राह्मणों पर हमला करने और उनकी हत्या करने के अलावा जहाँ मौका मिलता था तो मंदिरों को जलाते और अपवित्र कर रहे थे। इसी तरह की वारदात को अंजाम देने के बाद जैसे ही वे मंदिर से बाहर निकले तो पुलिस ने उन्हें गोली मार दी।

47. 1896: नायर ने किताब में लिखा है कि हिंदुओं पर किए गए इस अत्याचार के लिए किसी भी ट्रिगर को खोजने के लिए दबाव डाला गया था। यह सब बेलगाम मोहम्मदन कट्टरता का परिणाम था। 25 फरवरी 1896 को 20 मोपला मुस्लिमों के गिरोह ने चेम्ब्रसेरी अम्सोम से हत्याएँ शुरू की। उन्होंने 5 दिन तक गाँवों को आतंकित किया। पुस्तक के में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान, हिंदुओं की हत्या कर दी गई और उनकी कुडुमियों को काट दिया गया। उनसे जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया। इस भीषण नरंसहार के दौरान मंदिरों को बड़े पैमाने पर उजाड़ दिया गया और उन्हें जलाकर राख कर दिया गया। इसी क्रम में 1 मार्च को कट्टरपंथी मुस्लिमों ने अपना अंतिम स्टैंड बनाने के दृढ़ संकल्प के साथ करनमुलपाड मंदिर में घुस गए। करीब 20 सैनिकों के साथ गोलीबारी शुरू हुई। सुबह नौ बजे जिलाधिकारी ने जवानों की मुख्य टुकड़ी के साथ करीब 750 गज की दूरी पर मंदिर के सामने वाली पहाड़ी पर कब्जा कर लिया। पुलिस की फायरिंग के दौरान छिपने के बजाय मुस्लिम कट्टरपंथियों ने धार्मिक नारे लगाते और फायरिंग करते हुए जान-बूझकर मौत को गले लगा लिया। टूटी हुई जमीन पर लगातार आगे बढ़ते हुए पुलिस मोपला के कट्टरपंथी मुस्लिमों से सरेंडर करने के लिए कहने के लिए मंदिर के पास आई। मुस्लिम उद्दंड थे, लेकिन सैनिकों ने बिना किसी प्रतिरोध के मंदिर में प्रवेश किया। लेकिन 92 मुस्लिमों के कटे हुए गले को देख रुक गए। इन मुस्लिमों की हत्या भी मुस्लिमों ने ही की थी।

48. अप्रैल 1898: पय्यनाड में मोपलाओं ने विद्रोह किया था, लेकिन बाद में उन्हें सरेंडर करना पड़ा।

49. 1915 में जिला मजिस्ट्रेट इन्स की जान लेने की कोशिश की गई। उस दौरान कट्टरपंथी मोपला के मुस्लिमों ने आगजनी और हत्याएँ की थी। हालाँकि, बाद में उन्हें मार गिराया गया।

50. फरवरी 1919: बर्खास्त किए गए मोपला हेड कॉन्स्टेबल के नेतृत्व में कट्टरपंथियों के एक गिरोह ने हंगामा करना शुरू कर दिया। उन्होंने कई मंदिरों को तोड़ दिया और उन्हें अपवित्र कर दिया। उनके सामने आने वाले हर ब्राम्हण और नायर की उन्होंने हत्या कर दी थी। हालाँकि, बाद में वो पुलिस के हाथों मारे गए। इस घटना में 4 ब्राह्मण और 2 नायर मारे गए थे।

1919 की घटना के बाद 1921 में मालाबार हिंदू नरसंहार छिड़ गया जहाँ 10,000 से अधिक हिंदुओं को बेरहमी से मार दिया गया। मोपला मुस्लिमों द्वारा की जा रही इन नासमझ कट्टर हत्याओं के दौरान टीएल स्ट्रेंज को एक विशेष आयुक्त के रूप में यह पूछने के लिए भेजा गया था कि मुस्लिम रुक-रुक कर हिंदुओं को क्यों मार रहे थे। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, अपनी रिपोर्ट में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि इसका कारण मुसलमानों की नासमझ कट्टरता थी, न कि किसान विद्रोह।

हिंदुओं के मालाबार नरसंहार के बाद कालीकट में एक विशेष न्यायाधिकरण की अध्यक्षता करने वाले तीन न्यायाधीशों ने कहा था:

जिला गजेटियर से प्रतीत होता है कि मोपला मुस्लिम युद्ध के रास्ते पर थे और हिंदुओं की हत्याएँ करते थे, फिर सामने चाहे कोई भी हो। ये दूसरे कट्टरपंथियों से जुड़ जाते थे। अन्य कट्टरपंथियों से जुड़ जाते थे और फिर सैनिकों के साथ खूनी संघर्ष करते थे। कुछ मामलों में वे किसी विशेष जमींदार से घृणा से प्रेरित हो सकते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी हिंसक हरकतों को शुरू करने के लिए किसी शिकायत जरूरी नहीं है।

मोपलाओं को बर्बर जाति के तौर पर देखा गया है और वर्तमान में वो बिल्कुल उपयुक्त लगता है। लेकिन यह केवल कट्टरता नहीं थी, यह कृषि की परेशानी भी नहीं थी, यह गरीबी नहीं थी, जिसने अली मुसलैर और उसके अनुयायियों के दिमाग में काम किया। निर्णायक रूप से सबूतों से पता चलता है कि यह खिलाफत और असहयोग आंदोलनों का प्रभाव था, जिसने उन्हें इस अपराध के लिए प्रेरित किया। यह ऐसा है जो वर्तमान को पिछले सभी प्रकोपों ​​​​से अलग करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनका इरादा यह सब ब्रिटिश सरकार को नष्ट करने और हथियारों के बल पर खिलाफत सरकार को प्रतिस्थापित करने का था।

इस फैसले से ही साफ पता चलता है कि 1921 से 100 साल पहले तक मोपला मुसलमान जंग के रास्ते पर चले गए थे और हिंदुओं का कत्लेआम किया था। उन्होंने अपनी इस्लामी कट्टरता के कारण ऐसा किया। 1921 के हिंदुओं के नरसंहार के बारे में जो बात अलग थी वह यह नहीं था कि वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करने के लिए ऐसा कर रहे थे, बल्कि अंग्रेजों की खिलाफत सरकार स्थापित करने के लिए कर रहे थे। यहाँ खिलाफत सरकार का मतलब इस्लामिक खिलाफत के अलावा और कुछ नहीं है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यह आंदोलन मोहनदास करमचंद गाँधी द्वारा संक्षेप में और पूरे दिल से समर्थित था। आज तक, मालाबार हिंदू नरसंहार की घटनाओं को मालाबार के हिंदुओं द्वारा सामना की जाने वाली भयावहता को दूर करने के लिए विकृत किया गया है, यह बताने के लिए कि हिंदुओं की हत्याएँ मुस्लिम किसानों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले हिंदू जमींदारों के लिए प्रतिशोध थीं। हालाँकि हकीकत इससे कोसों दूर है।

नोट: यह आर्टिकल ऑपइंडिया से नुपुर शर्मा द्वारा लिखा गया है, जिसे कुलदीप सिंह ने हिंदी में संपादित किया है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

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