भारत ने 1998 में 11-13 मई को एक के बाद एक 5 न्यूक्लियर ब्लास्ट (परमाणु परीक्षण) कर के पूरी दुनिया को चौंका दिया। अमेरिका के सीआईए से लेकर पाकिस्तान तक हतप्रभ रह गए। कुल 5 परमाणु उपकरणों की जबरदस्त टेस्टिंग की गई। इसी आलोक में देश हर साल 11 मई को ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ के रूप में मनाता आया है।
दुनिया में जो 8 परमाणु शक्ति-सम्पन्न (सार्वजनिक) देश हैं, आज भारत भी उनमें से एक है। इस बार भी ‘नेशनल टेक्नोलॉजी डे’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक सबने देश को बधाई दी और ‘ऑपेरशन शक्ति’ को याद किया।
ये वही भारत है, जहाँ नेहरू काल में सैन्य क्षमता और तकनीक को जम कर नज़रअंदाज किया जाता था। स्वतंत्रता के बाद तो नेताओं में इस बात को लेकर भी एकमत नहीं था कि भारत को पूर्णरूपेण परमाणु शक्ति मिशन की ओर बढ़ना चाहिए या फिर नहीं।
भारत की आज़ादी के 2 साल पहले ही जापान स्थित हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका ने परमाणु बम गिरा कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। महात्मा गाँधी ने परमाणु के प्रयोग को नैतिक रूप से अस्वीकार्य करार दिया था।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी इन चीजों में यकीन नहीं रखते थे लेकिन उनके समय भी भविष्य को ध्यान में रख कर इस क्षेत्र में छोटे-बड़े डेवलपमेंट्स होते रहे। नेहरू को तब तक अक्ल नहीं आई जब तक भारत को 1962 में चीन के हाथों बुरी पराजय नहीं मिली लेकिन तब तक बहुत देर भी हो चुकी थी।
1962 के बाद जवाहरलाल नेहरू को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। तब संसाधन-विहीन भारतीय सेना ने अदम्य साहस और पराक्रम के साथ मजबूत दुश्मन का मुकाबला किया था। हाँ, इन मामलों में इंदिरा गाँधी की सोच ज़रूर अपने पिता से अलग थी।
इंदिरा गाँधी के समय ही 1974 में ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नामक प्रोजेक्ट के अंतर्गत भारत ने परमाणु परीक्षण किया और तत्कालीन पीएम गाँधी ने इसे शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण करार दिया था। हालाँकि, उस समय न्यूक्लियर हथियारों को भविष्य के लिए टाल दिया गया था। तब भी भारत ने ये दिखा दिया था कि वो अपनी रक्षा करने में सक्षम है।
1971 में पाकिस्तान की बुरी हार और बांग्लादेश के गठन के साथ भारत पहले ही जता चुका था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेहरू युग से अलग राह पकड़ ली गई है। लेकिन असली धमाका हुआ अटल बिहारी वाजपेयी के काल में।
On this day in 1998, we proudly celebrated the success of Operation Shakti when India successfully conducted three nuclear tests in Pokhran under the firm leadership of Sh Vajpayee Ji & began the process for the world to acknowledge India as a responsible nuclear power. pic.twitter.com/0jPPqhZiEh
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) May 11, 2020
पाकिस्तान भी चुप नहीं बैठा हुआ था। 80 के दशक के बाद से ही उसने अपना परमाणु मिशन शुरू कर दिया था। इसीलिए, तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दुनिया से कुछ भी नहीं छिपाया और सार्वजनिक घोषणा करते हुए बताया कि भारत ने परमाणु परीक्षण किया है।
5 टेस्टिंग में से 1 फ्यूज़न बम था और बाकी फिजन बम थे। इनमें से 3 का परीक्षण 11 मई को किया गया और बाकी 2 का 13 मई को। हालाँकि, इसके बाद अमेरिका और जापान ने भारत पर ज़रूर आर्थिक प्रतिबंध लगाए लेकिन प्रधानमंत्री वाजपेयी झुकने वालों में से न थे। भारत उस वक़्त छठा देश था, जो परमाणु शक्ति-सम्पन्न बना।
परमाणु परीक्षण के कुछ ही दिनों बाद सोनिया गाँधी ने बयान दिया था कि असली ताकत संयम दिखाने में होती है, शक्ति के प्रदर्शन में नहीं। वो बुरी तरह ग़लत थीं।
उधर पाकिस्तान और चीन अमेरिका की ही मदद से अपनी रक्षात्मक तकनीक में लगातार वृद्धि कर रहे थे, बैलिस्टिक मिसाइल्स की खेप बढ़ाते जा रहे थे और ये स्पष्ट था कि भारत के संयम को इसकी कमजोरी बना दिया गया था। भारत की आर्थिक वृद्धि को प्रतिबंधों के बावजूद रोका नहीं जा सका। आज भारत इस परीक्षण के 22 साल बाद एक बड़ी ताकत बन कर उभरा है।
ग्लोबल ताकतें जाम छलकाते बुद्धिजीवियों की चर्चाओं से नहीं चलती। अगर भारत नहीं दिखाता कि वो समय आने पर किसी भी प्रकार से अपनी रक्षा करने और फिर जवाबी वार करने में सक्षम है, तो शायद आज पाकिस्तान और चीन के अड़ंगों के कारण न तो हम आर्थिक विकास पर ध्यान दे पाते और न ही दुनिया में एक सुपर पॉवर के रूप में उभर पाते।
साम्राज्यवादी चीन और अवैध परमाणु परीक्षण करने वाले उत्तर कोरिया के विपरीत भारतीय वामपंथियों ने उल्टा भारत के परमाणु शक्ति-सम्पन्न बनने पर आपत्ति जताई थी। यही लोग चीन की तारीफ करते नहीं थकते।
आखिर भारत क्यों न करता परमाणु परीक्षण? पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान 80 के दशक के मध्य से ही लगातार दावा करते आ रहे थे कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम है। वो यहाँ तक कहते थे कि अगर युद्ध होता है तो पाकिस्तान इसका पहले इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटेगा। यही कारण था कि भारत को इस दिशा में आगे बढ़ना पड़ा।
कारगिल युद्ध का नाम लेकर वाजपेयी सरकार को कोसा जाता है कि वहाँ परमाणु क्यों नहीं काम आया। ये बेहूदा लॉजिक है। निम्न स्तर पर होने वाले छद्म युद्धों में सेना और रक्षात्मक रणनीति ही काम आती है। ऐसा नहीं है कि सीमा पर हुई झड़प में कोई परमाणु बम फोड़ दे।
20 years ago India conducted Pokhran Tests & became a nuclear power !! But it is shocking to note that Mrs Sonia Gandhi opposed this – here is an @IndiaToday report confirming her opposition to Operation Shakti despite differing voices within INC on this https://t.co/HKJyWvohBm pic.twitter.com/CzOFuShWlY
— Shehzad Jai Hind (@Shehzad_Ind) May 11, 2018
क्या आपको पता है कि भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका की क्या प्रतिक्रिया थी? अमेरिकी सीनेटर रिचर्ड शेल्बे ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि ये पिछले 10 वर्षों में खुफिया एजेंसियों की सबसे बड़ी विफलता है। DRDO के तत्कालीन चीफ एपीजे अब्दुल कलाम ने स्पष्ट कह दिया था कि ये परीक्षण आत्मरक्षा के लिए है, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए है।
कलाम ने अपने बयान को पुष्ट करने के लिए इतिहास का उदाहरण दिया था। उन्होंने गिनाया था कि पिछले 2500 सालों में भारत ने किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया लेकिन अलग-अलग साम्राज्यों ने ज़रूर भारतीय उपमहाद्वीप पर न जाने कितनी बार हमले किए।
पोखरण के ऊपर अमेरिका के 4 सैटेलाइटों की नज़र रहती थी। वो तकनीकी रूप से इतने सक्षम थे कि भारतीय सैनिकों की वर्दी पर लगे निशानों को भी गिन लें। उन्हें ‘बिलियन डॉलर स्पाइज’ कहा जाता था। और नीचे कौन थे? नीचे थे भारतीय सेना के ‘रेजिमेंट 18 इंजीनियर्स’।
भारतीय खेमे को पता था कि क्या करना है। उन्होंने डेढ़ साल केवल रिसर्च करने में लगाया था कि कैसे और क्या कुछ किया जाएगा। वैज्ञानिक रात को काम करते क्योंकि उस समय सैटेलाइट्स को प्रकाश की कमी की वजह से नीचे की चीजों का उन्हें स्पष्ट विवरण नहीं मिल पाता था। सुबह होते ही सारी चीजों को यथावत रख दिया जाता था।
वैज्ञानिकों को नकली नाम तक दिए गए थे। वो पोखरण में सेना की वेशभूषा में काम किया करते थे। एपीजे अब्दुल कलाम का नाम मेजर जनरल पृथ्वीराज रखा गया था। राजगोपाला चिदंबरम का नाम नटराज रखा गया था। वो वैज्ञानिक अक्सर मजाक में कहा करते थे कि ये कोड वाले नाम तो उनके फिजिकल कैल्कुलशन्स से भी ज्यादा कॉम्प्लेक्स हैं।
मिशन की गोपनीयता का इतना ध्यान रखा गया था कि वाजपेयी, कलाम और चिदंबरम के बीच हुई बैठक के बारे में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस तक को नहीं पता था। गोपनीयता का परिणाम ही था कि भारत ने इतिहास रच दिया।
अमेरिका के CIA को तो तब तक इसकी भनक नहीं लगी, जब तक पीएम वाजपेयी ने ख़ुद टीवी पर सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा नहीं की। 3 दिनों में तत्कालीन वाजपेयी सरकार और वैज्ञानिकों ने जो किया, वो आज भी भारत को बेखौफ बनाता है जबकि पाकिस्तान कोरी धमकियों तक ही सीमित है।