Thursday, November 21, 2024
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‘टुकड़े-टुकड़े होते देख ख़ुशी मिलती है’: बच्चों से प्रतिमाओं पर थुकवाता और लात मरवाता था जेवियर, जहाँ PM मोदी कर रहे साधना वहाँ से विवेकानंद का नाम मिटाने की थी साजिश

त्रावणकोर के तत्कालीन राजा, जो कि पुर्तगाल का दोस्त था, उससे अनुमति लेकर फ्रांसिस जेवियर ने तेज़ी से ईसाई धर्मांतरण का कार्य शुरू किया और गाँव-गाँव घूमने लगा। मंदिरों को गिरा दिया जाता था, प्रतिमाओं के टुकड़े-टुकड़े कर कर दिए जाते थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव 2024 का 7वाँ और अंतिम चरण का प्रचार-प्रसार खत्म होने के बाद तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ में 45 घंटे की तपस्या की। इस दौरान वो निराहार और मौन रहे। आपको बता दें कि ये वही जगह है जहाँ कभी माँ कन्याकुमारी ने तपस्या की थी, आज भी उनके चरण-चिह्न यहाँ हैं। विवेकानंद तैर कर समुद्र में स्थित इस शिला पर पहुँचे थे और यहाँ ध्यान किया था। यहीं उन्हें ज्ञान प्राप्त हुए और ‘भारत माता’ का विचार उनके मन में आया।

क्या आपको पता है जब सन् 1962 में विवेकानंद के नाम पर यहाँ स्मारक बनवाने का विचार RSS ने शुरू किया, तब उसका ईसाइयों ने खासा विरोध किया। कारण – ईसाई इसे ‘सेंट जेवियर’ के नाम पर पहचान देना चाहते थे। यही कारण है कि उन्होंने यहाँ एक बड़ा क्रॉस लगा दिया था, शिलालेख फेंक दिया था और ईसाई नाविकों ने निर्माण कार्य का बहिष्कार कर दिया था। इस कारण केरल से नाविक बुलाने पड़े थे। ईसाईयों के आतंक के कारण यहाँ धारा-144 लगानी पड़ी थी।

लेकिन, संघ के सरकार्यवाह एकनाथ रानडे ने काम अपने हाथ में लिया और इसे संपन्न कराया। 1964 में इसका निर्माण शुरू हुआ और 1970 में इसका उद्घाटन हुआ। जवाहरलाल नेहरू सरकार में संस्कृति मंत्री हुमायूँ कबीर को लगता था कि इस स्मारक के बनने से इस जगह की प्राकृतिक सुंदरता कम हो जाएगी। लेकिन, उन्हें भी किसी तरह मनाया गया। इस प्रकार, भारत सेंट फ्रांसिस जेवियर के नाम पर एक हिन्दू स्थली के अतिक्रमण से बच गया और इसका नाम देश भर में गूँज रहा है।

भारत पहुँच कर हिन्दुओं पर अत्याचार कर के और उन्हें फँसा कर उनका धर्मांतरण कराने वाला फ्रांसिस जेवियर कौन था, आइए बताते हैं। यहाँ हम हिन्दुओं और भारत को लेकर उसकी सोच की बात करेंगे। वो 16वीं शताब्दी में भारत आया था। उसने भारत से जो पत्र भेजे थे, उससे उसके विचारों और उसकी सोच के बारे में पता चलता है। एक पत्र में उसने लिखा था कि अगर ईसाई मजहब में कुछ ऐसे लोग होते जो अपने फायदे की सिर्फ नहीं सोचते, तो ‘काफिरों’ की एक बड़ी संख्या को हिन्दू बनाया जा सकता था।

भारत को गोवा को इसे धर्मांतरण का अड्डा बनाने वाले फ्रांसिस जेवियर ने ये प्रार्थना करने के लिए कहा था कि यूरोप से और भी ईसाइयों को यहाँ अपना मजहब फैलाने के लिए भेजा जाना चाहिए। उसने गोवा में एक कॉलेज खोला, उसमें ‘मूर्तिपूजक’ युवकों को भर्ती कर के उन्हें लैटिन सिखाया जाता था, फिर ईसाई मजहब की शिक्षा दी जाती थी। ‘Santa Fe’ नामक इस कॉलेज में 500 छात्रों के बैठने की व्यवस्था की, इसके संचालन के लिए धन की कोई कमी नहीं थी।

फ्रांसिस जेवियर हिन्दुओं को ‘मूर्तिपूजक’, ‘काफिर’ या ‘विधर्मी’ कह कर संबोधित करता था। उसने उस पत्र में अपने इस कॉलेज का जिक्र करते हुए आशा जताई थी कि इससे निकले छात्र पूरे भारत में ईसाई महाब को फैलाएँगे। इसी पत्र में उसने बताया है कि ‘मूर्तिपूजक’ समुदाय का एक वर्ग है जिसे ब्राह्मण कहते हैं – वो देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, धर्म के अंधविश्वासी अनुष्ठान करते हैं, मंदिरों व प्रतिमाओं की देखभाल करते हैं। उसने ब्राह्मणों के लिए ‘दुनिया का सबसे विकृत और दुष्ट समाज’ जैसी आपत्तिजनक शब्दावली का प्रयोग किया है।

फ्रांसिस जेवियर ब्राह्मणों से इतना क्षुब्ध था कि उन्हें उसने ‘झूठा और धोखेबाज’ तक करार दिया। इसका कारण ये था कि उसका मानना था कि अगर ब्राह्मणों का विरोध होता तो वो पूरे क्षेत्र को ईसा मसीह का अनुयायी बना देता। इसीलिए, उसने एक सदाचारी ब्राह्मण का धर्म-परिवर्तन करा के बच्चों को ईसाई मजहब की शिक्षा देने का काम सौंप दिया। एक बार एक पत्र में उसने एक घटना का जिक्र किया था। वो एक मंदिर में घुस गया था जहाँ 200 श्रद्धालु जमा थे और वहाँ जाकर ईसाई मजहब के बारे में उन्हें बताने लगा।

सन् 1542 में जेवियर लिखता है कि उसके तर्कों से लोग खुश हुए और उससे कई सवालों के जवाब पूछा। इस दौरान उसने हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए लिखा है कि भारतीय स्वयं काले हैं इसीलिए उनके देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी काली होती हैं, और उनमें इतना तेल लगाया जाता है कि वो दुर्गन्ध देती है। उसने इन प्रतिमाओं के लिए ‘घृणित, बदसूरत और भयानक’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। उसका जोर खासतौर पर विद्वान ब्राह्मणों को मित्र बना कर हिन्दू धर्म को नीचा दिखाना और ईसाई मजहब को श्रेष्ठ दिखाने पर था।

फ्रांसिस जेवियर के इन पत्रों को पढ़ने से ये भी मालूम होता है कि उसने मछुआरों के बच्चों का गलत इस्तेमाल किया। उन्हें क्रॉस पहना कर ईसाई मजहब की शिक्षा दी, फिर माता-पिता द्वारा आपत्ति जताने की स्थिति में इन बच्चों को अपने अभिभावकों से ही लड़ाई-झगड़ा करने के लिए सिखाया जाता था, मंदिरों को ध्वस्त करने के लिए इन बच्चों का इस्तेमाल किया जाता था। बताया जाता है कि सन् 1545 के मई-जून में उसने मात्र एक महीने में 10,000 लोगों का त्रावणकोर में ईसाई धर्मांतरण कराया था।

त्रावणकोर के तत्कालीन राजा, जो कि पुर्तगाल का दोस्त था, उससे अनुमति लेकर फ्रांसिस जेवियर ने तेज़ी से ईसाई धर्मांतरण का कार्य शुरू किया और गाँव-गाँव घूमने लगा। मंदिरों को गिरा दिया जाता था, प्रतिमाओं के टुकड़े-टुकड़े कर कर दिए जाते थे। त्रावणकोर में उसने एक साल में 45 चर्च स्थापित किए। राजा से उसे धन भी प्राप्त होता था। जनवरी 1545 में उसने कोचीन से जो पत्र लिखा था, उससे भारतीयों को लेकर उसकी सोच के बारे में और स्पष्ट पता चलता है।

उसने लिखा है, “जब सभी बपतिस्मा ले लेते हैं, तो मैं उनके झूठे देवताओं के सभी मंदिरों को नष्ट करने और सभी मूर्तियों को टुकड़े-टुकड़े करने का आदेश देता हूँ। मैं आपको यह नहीं बता सकता कि यह सब होते हुए देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है, उन लोगों द्वारा मूर्तियों को नष्ट होते हुए देखना जो हाल ही में उनकी पूजा करते थे। मैं सभी शहरों और गाँवों में ईसाई धर्म के सिद्धांतों को स्थानीय भाषा में लिखकर छोड़ता हूँ और साथ ही यह भी बताता हूँ कि सुबह और शाम के स्कूलों में इसे किस तरह पढ़ाया जाना चाहिए।”

Baptism कराते-कराते फ्रांसिस जेवियर कई बार थक जाता था, क्योंकि वो पूरे के पूरे गाँव को ईसाई बना देता था। वो बच्चों का धर्मांतरण करा के उन्हें मंदिरों में ले जाता था और उनसे गाली बकवाता था। इन बच्चों का इस्तेमाल वो मूर्तियों को गिराने, उन्हें तोड़ने, उन पर थूकने और उन्हें रौंदने के लिए करता था। मूर्तियों पर बच्चों से लात मरवाता था। कलाकारों के पास जा-जा कर उन्हें मूर्तियाँ गढ़ने से मना किया जाता था। सोचिए, इस जेवियर का नाम अगर कन्याकुमारी में गूँज रहा होता तो हम भारतीय संस्कृति से कितनी दूर खड़े होते।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कन्याकुमारी जाना देश की संस्कृति एकता को बनाए रखने, हमें अपने विरासतों को पहचानने और धार्मिक पर्यटन को बढ़ाने में भी मदद करेगा। लोग स्वामी विवेकानंद के बारे में अधिकाधिक पढ़ेंगे, माँ कन्याकुमारी की कथा के बारे में जानेंगे और साथ ही ये भी जानेंगे कि कैसे तमिलनाडु की कन्याकुमारी हो या असम की कामाख्या, गुजरात की अंबा देवी हो या फिर बंगाल की काली – सनातन धर्म एक है और भारत की एकता को एक सूत्र में बाँधता है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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