Sunday, November 17, 2024
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स्वामी विवेकानंद से मिलने जब पैदल ही चल पड़े थे महात्मा गाँधी… देशभक्ति में हजार गुणा वृद्धि का दिया था श्रेय

महात्मा गाँधी अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में लिखते हैं कि अपने कलकत्ता प्रवास के दौरान वो एक दिन स्वामी विवेकानंद से मिलने के लिए बहुत उत्साह के साथ पैदल ही बेलुड़ मठ की ओर चल पड़े थे।

स्वामी विवेकानंद को अनेकों लोग एक आध्यात्मिक नेता के तौर पर देखते हैं। लेकिन उनका भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में योगदान अभी भी आम जनमानस से अनभिज्ञ है। 12 जनवरी 1863 को बंगाल के कलकत्ता में माता भुवनेश्वरी देवी और पिता विश्वनाथ दत्त के घर जन्में नरेंद्रनाथ दत्त जो बाद में स्वामी विवेकानंद के नाम से जाने गए, मात्र 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन के जीवन में अगर उन्हीं के शब्दों में कहूँ तो 1500 वर्ष का कार्य कर गए।

स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में ही परिव्राजक संन्यासी के रूप में भारत भ्रमण पर निकल गए थे। भारत उस समय पराधीन था। हम पर अंग्रेज़ों का शासन था। अपने लगभग साढ़े चार वर्ष के भ्रमण के दौरान उन्होंने देखा कि वर्षों की गुलामी के कारण हर एक भारतीय के अंदर आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान, आत्म-गौरव और स्वावलम्बन पूर्णतः समाप्त हो गया है।

स्वामी विवेकानंद को अपना कार्य स्पष्ट हो गया था। वो राजनीती से दूर रह कर हर भारतवासी में आत्मविश्वास जगाने का कार्य करने वाले थे। उन्होंने यह आत्मविश्वास जगाने का, चरित्र-निर्माण का और मनुष्य-निर्माण का कार्य पूरे जीवन भर अनेकों कष्ट, कठिनाइयों को सहते हुए भी किया… क्योंकि इसके बिना आत्मविश्वास जागृत नहीं होता और बिना आत्मविश्वास के आत्मनिर्भर बनना संभव नहीं है, जो स्वाधीनता के लिए अत्यावश्यक है।

असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अपने शस्त्र के रूप में अंग्रेजों के खिलाफ़ उपयोग करने वाले और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनेता हुए मोहनदास करमचन्द गाँधी। वो महात्मा गाँधी के नाम से मात्र भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। गाँधी भी स्वामी विवेकानंद के साहित्य से प्रेरणा लेते हैं। महात्मा गाँधी स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखते हैं:

”स्वामी विवेकानंद के कार्यों को पढ़ने के बाद, देश के लिए मेरी देशभक्ति में हजार गुणा वृद्धि हुई।”

कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गाँधी में वह अनेकों बार स्वामी विवेकानंद की चर्चा करते हैं। महात्मा खुद स्वामी विवेकानंद से मिलना चाहते थे लेकिन वो मनोकामना ही रह गई, पूरी नहीं हुई।

महात्मा गाँधी अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में लिखते हैं कि अपने कलकत्ता प्रवास के दौरान वो एक दिन स्वामी विवेकानंद से मिलने के लिए बहुत उत्साह के साथ पैदल ही बेलुड़ मठ की ओर चल पड़े थे, लेकिन उनको यह जानकर बहुत निराशा हुई कि वो अस्वस्थ हैं और उनकी मुलाकत उनसे नहीं हो पाई। हालाँकि स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता से महात्मा गाँधी 2 बार मिले थे और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा भी की थी जो अधिक सफल नहीं रही थी, लेकिन उन्होंने भगिनी निवेदिता के हिन्दू धर्म के प्रति अत्यंत स्नेह की प्रसंशा की थी और उनके द्वारा रचित पुस्तकों का अध्ययन भी किया था।

स्वामी विवेकानंद के निधन के काफी बाद एक बार पुनः 30 जनवरी 1921 को उनकी जयंती कार्यक्रम में भाग लेते हुए महात्मा गाँधी ने बेलुड़मठ में भाषण देते हुए कहा था,

“मेरे हृदय में दिवंगत स्वामी विवेकानंद के लिए बहुत सम्मान है। मैंने उनकी कई पुस्तकें पढ़ी हैं। कई मामलों में मेरे आदर्श इस महान विभूति के आदर्शों के समान ही हैं। यदि विवेकानंद आज जीवित होते तो राष्ट्र जागरण में बहुत सहायता मिलती। किंतु उनकी आत्मा हमारे बीच है और उन्हें स्वराज स्थापना के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए।”

इन शब्दों से हमें स्पष्ट होता है की महात्मा गाँधी स्वामी विवेकानंद से कितने प्रभावित थे। उनके द्वारा गरीब, वंचित, शोषितों के लिए किए गए काम और उनके प्रति आत्मीय विचारों को महात्मा गाँधी अपने केरल प्रान्त के शहर कोल्लम (Kollam), जिसे पहले क्विलोन (Quilon) कहा जाता था, में 12 मार्च 1925 को दिए अपने एक भाषण में याद करते हैं। भाषण में वह कहते हैं कि जैसी सहानुभूति स्वामी विवेकानंद को अपने ही समृद्ध भाइयों के हाथों “दबाए गए” दरिद्रों के साथ थी, उन्हें भी वैसी ही सहानुभूति है।

स्वामी विवेकांनद का प्रभाव अनेकों ऐसे नेताओं पर रहा, जिनकी स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय सहभागिता रही… भले वह उनके जीवन काल के दौरान हो या बाद में।

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nikhilyadav
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Nikhil Yadav is Presently Prant Yuva Pramukh, Vivekananda Kendra, Uttar Prant. He had obtained Graduation in History (Hons ) from Delhi College Of Arts and Commerce, University of Delhi and Maters in History from Department of History, University of Delhi. He had also obtained COP in Vedic Culture and Heritage from Jawaharlal Nehru University New Delhi.Presently he is a research scholar in School of Social Science JNU ,New Delhi . He coordinates a youth program Young India: Know Thyself which is organized across educational institutions of Delhi, especially Delhi University, Jawaharlal Nehru University (JNU ), and Ambedkar University. He had delivered lectures and given presentations at South Asian University, New Delhi, Various colleges of Delhi University, and Jawaharlal Nehru University among others.

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