केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरूवार (13 जून) को दिल्ली में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थानों के प्रमुखों की बैठक में कहा कि केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के समीप कम से कम दो गाँवों को संस्कृत भाषा बोलने वाले गाँव बनाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं को सशक्त बनाना उनका लक्ष्य है। इस अवसर पर केंद्रीय राज्यमंत्री संजय धोत्रे भी मौजूद थे।
ख़बर के अनुसार, केंद्रीय मंत्री निशंक ने कहा कि मानव संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों के साथ केंद्रीय भाषा से जुड़े संस्थानों के प्रमुखों की लगातार समीक्षा बैठक आयोजित होती रहनी चाहिए। इससे भारतीय भाषाओं के विकास को दिशा मिल सकेगी।
उन्होंने कहा कि संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अधिक से अधिक शिक्षकों की भर्तियों को बढ़ाने की भी बात कही, जिससे संस्कृत भाषा सीखने वालों की संख्या बढ़ सके। ऐसा करके संस्कृत भाषा को विश्व स्तर पर प्रचारित-प्रसारित करने में सफलता मिलेगी। केंद्रीय मंत्री निशंक ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि देश में केंद्रीय संस्कृत शिक्षण संस्थानों के आसपास कम से कम दो ऐसे गाँव बनाने का लक्ष्य रखा जाए, जहाँ के लोग आम बोलचाल की भाषा के लिए संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हों।
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थानों के प्रमुखों की बैठक में निशंक ने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए और भी कई महत्वपूर्ण बातें कही। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के विकास के लिए नए तरीके खोजने की ज़रूरत है। भारतीय भाषाओं में नए शोध और उन्हें वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान करने की भी आवश्यकता है। इससे संस्कृत भाषा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकेगी।
इसी तरह के एक प्रयास में, फरवरी 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य का बजट पेश करते हुए संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने पर विशेष ज़ोर दिया था। इसके तहत राज्य में संस्कृत पाठशालाओं को अनुदान के लिए 242 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। अनुदानित संस्कृत स्कूलों और डिग्री कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के लिए 30 करोड़ रुपए और आवंटित किए गए थे।
संस्कृत में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काशी विद्यापीठ को 21 करोड़ रुपए दिए गए। वहींं, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को 21.51 करोड़ रुपए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वैदिक विज्ञान केंद्र को 16 करोड़ रुपए दिए गए। पिछले एक दशक में राज्य सरकार द्वारा किसी भी अनुसंधान केंद्र को दिया गया यह सबसे बड़ा आवंटन था।
इसके अलावा उन्होंने अनुवाद पर भी ज़ोर दिया और कहा कि भारतीय भाषाओं के साहित्य का दूसरी भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए, जिससे सभी लोग साहित्य जगत में अधिक से अधिक अपनी पहुँच बना सकें और उसका लाभ उठा सकें। इससे भाषा के प्रचार-प्रसार का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने बताया कि जल्द ही भाषा भवन की स्थापना की जाएगी, जहाँ भारतीय भाषाओं से संबंधित सभी संस्थान एक साथ भाषाओं के विकास के लिए काम करेंगे।
दरअसल, भारतीय भाषा संस्थान भारतीय भाषाओं के विकास के लिए काम करता है। भारतीय भाषा संस्थान भारत सरकार की भाषा नीति को तैयार करने और उसके कार्यान्वयन के अलावा भाषा विश्लेषण, भाषा शिक्षा शास्त्र, भाषा प्रौद्योगिकी और समाज में भाषा के इस्तेमाल पर रिसर्च करता है। वर्ष 1969 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषा केंद्र भुवनेश्वर, पुणे, मैसूर, पटियाला, गुवाहाटी, सोलन और लखनऊ में हैं।