गुलालाई इस्माइल पाकिस्तानी फौज की प्रताड़ना को झेल रहे लोगों की नई उम्मीद हैं। जिस वक्त संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर राग अलाप रहे थे, उसी वक्त 32 साल की गुलालाई दुनिया को पाकिस्तानी सेना के बर्बर चेहरे से रूबरू करा रहीं थी।
कुछ समय पहले तक महिला अधिकार कार्यकर्ता गुलालाई के पीछे पाकिस्तानी सेना और पूरा प्रशासन पड़ा था। किसी तरह जान बचाकर वह न्यूयॉर्क पहुॅंचने में कामयाब हुईं। न्यूयॉर्क आए उन्हें महज़ एक महीने हुआ है और वे दोबारा पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने न्यूयॉर्क की सड़कों पर हैं।
शुक्रवार सुबह (भारतीय समयानुसार शुक्रवार शाम, 27 सितंबर) से वे अमेरिका के लोगों को पाकिस्तान की करतूतों और पश्तूनों पर उसके ज़ुल्म की कहानियाँ घूम-घूम कर सुना रहीं हैं। उन्होंने शहर के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर भी महासभा में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के भाषण के समय विरोध प्रदर्शन किया।
#WATCH Gulalai Ismail, activist who was forced to flee Pakistan after being accused of treason: Our demand was to end human rights violations&release of people who are in torture cells but instead we were accused of terrorism…There’s dictatorship in Khyber Pakhtunkhwa province. pic.twitter.com/26pDmp7gRr
— ANI (@ANI) September 27, 2019
गुलालाई इस्माइल पर पाकिस्तान देशद्रोह का मुकदमा चलाने की तैयारी कर रहा था। वह भी इसलिए कि वे पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा देश के अंदर किए जा रहे बलात्कार की खबरें उजागर कर रहीं थीं। इस साल मई में उन्होंने फेसबुक और ट्विटर पर पाकिस्तानी सेना पर पाकिस्तानी महिलाओं के बलात्कार का आरोप लगाया।
32-वर्षीया गुलालाई फ़िलहाल न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में अपनी बहन के साथ रह रहीं हैं और आधिकारिक राजनीतिक शरण के लिए अमेरिकी विदेश विभाग के पास अर्ज़ी दाखिल कर दी है। उन्होंने ANI से बात करते हुए अपने परिवार और पाकिस्तान छोड़ने में सहायता करने वाले “अंडरग्राउंड नेटवर्क” के लोगों की सुरक्षा के लिए भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “मेरी आवाज़ दबाने और मुझे टॉर्चर करने के लिए पाकिस्तानी सरकार ने हर हथकंडा अपनाया। मेरे परिवार को भी मेरा विरोध करने के लिए धमकाया, लेकिन वे नहीं माने। अंत में उन्होंने मेरे माता-पिता पर झूठे आरोप मढ़ दिए।”
कुछ दिन पहले मशाल रेडियो के अफगान पत्रकार बशीर अहमद ग्वाख को बताया कि वे 6 महीने तक पाकिस्तान के अंदर ही छिपते-छिपाते रहीं और उसके बाद अमेरिका आने के लिए उन्हें पहले श्रीलंका जाना पड़ा।
‘जिहाद मिटा रहे थे या पश्तून?’
मीडिया से बाते करते हुए गुलालाई इस्माइल ने बताया कि जिहादी आतंकवाद से निबटने, उसे मिटाने के नाम पर पाकिस्तान (यानी पाकिस्तानी पंजाबी मुस्लिम) अल्पसंख्यक पश्तूनों की सामूहिक हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं। उनके साथ UN के बाहर इस विरोध-प्रदर्शन में पाकिस्तान के अन्य अल्पसंख्यक समुदाय जैसे सिंधी, बलूची, अन्य पश्तून, मुहाजिर (मध्य भारत से विभाजन के समय पाकिस्तान गए मुख्यतः हिन्दीभाषी प्रवासी) भी शामिल थे। प्रदर्शनकारी “पाकिस्तान को ब्लैंक चेक (यानी बिना शर्त आर्थिक सहायता) अब और नहीं”, “पाकिस्तानी सेना, राजनीति में हस्तक्षेप बंद करो” आदि नारे लगा रहे थे।
गुलालाई इस्माइल का कहना है कि आतंकवाद मिटाने के नाम पर पाकिस्तानी सेना बेगुनाह पश्तूनियों का क़त्ल कर रही है। पाकिस्तानी सेना के टॉर्चर सेलों और नज़रबंदी कैम्पों में हज़ारों लोग बंदी हैं। उन्होंने पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकारों (“इंसानी हुकूक”) का हनन तुरंत बंद करने और बंदियों को रिहा करने की माँग की। साथ आरोप लगाया कि पाकिस्तानी सेना और अन्य उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ उठने वाली आवाज़ों को ही दहशतगर्दी का ख़िताब दे दिया जाता है। पाकिस्तानी सेना की खैबर पख्तूनख्वा में तानाशाही चलती है।
ISI के इशारे पर पासपोर्ट जब्त
16 साल की उम्र से पाकिस्तानी महिलाओं के मानवाधिकारों के लिए लड़ रहीं इस्माइल के लिए ISI ने पिछले नवंबर में गृह मंत्रालय से अनुशंसा की थी कि उनका नाम Exit Control List (ECL) में डाल दिया जाए, ताकि वे देश छोड़कर न जा सकें। हालाँकि अदालत में चुनौती दिए जाने पर अदालत ने ECL से तो इस्माइल का नाम हटवा दिया, लेकिन उनका पासपोर्ट गृह मंत्रालय ने जब्त कर लिया।
गुलालाई इस्माइल पश्तून नेता मंज़ूर पश्तीन द्वारा चलाए जा रहे पश्तून आंदोलन का भी हिस्सा हैं। पाकिस्तानी सेना ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं, लेकिन असफ़ल रही। इस्माइल का कहना है कि अमेरिका में पश्तूनों के बारे में बहुत सी भ्रांतियाँ फैली हुईं हैं। उन्हें दूर करते हुए वे दुनिया को बताएँगी कि कैसे पश्तून खुद एक युद्ध के पीड़ित हैं।