सन् 1971 में भारतीय सेना के पराक्रम का ही नतीजा था कि दुनिया में नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ। स्वराज्य के लिए वहाँ के लोगों ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम छेड़ा। इस आंदोलन को दबाने के लिए पाकिस्तान की क्रूर सेना ने जुल्म और ज्यादती की हदें पार कर दीं। इस मुक्ति संग्राम में स्थानीय हिंदू बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। इसके चलते उन्हें पाकिस्तानी सेना के जुल्मों का शिकार होना पड़ा।
कट्टर इस्लामवादी पाकिस्तानी सैनिक चुन-चुन कर हिंदुओं की हत्या कर रहे थे। पाकिस्तानी सैनिकों ने लाखों महिलाओं की आबरू लूट ली। कई हिंदू नरसंहारों को अंजाम दिया। उन्हीं नरसंहारों में एक था बुरुंगा नरसंहार। 26 मई 1971 के दिन पाकिस्तानी सेना ने बुरुंगा हाईस्कूल में 94 हिंदुओं की नृशंस हत्या कर दी थी। यह नरसंहार बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ दिए गए कई भयानक नरसंहारों में से एक है।
बांग्लादेश के सिलहट जिले के बालागंज उपजिला स्थित बुरुंगा गाँव में हिंदुओं और मुस्लिमों की मिश्रित आबादी थी। मई 1971 के तीसरे हफ्ते के शुरू होते ही गाँव के लोगों को पाकिस्तानी फौजियों के हमले का डर सताने लगा था। एक तरफ बांग्लादेश में आजादी की लड़ाई चरम पर थी तो दूसरी तरफ बुरुंगा के लोग खौफ के साये में जी रहे थे। उन्हें डर था कि किसी भी वक्त पाकिस्तानी फौज उनके गाँव पर धावा बोल सकते हैं।
बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बुरुंगा के डरे हुए ग्रामीणों ने बुरुंगा यूनियन के चेयरमैन इंजद अली (Injad Ali) से मुलाकात की। 25 मई 1971 की दोपहर को इंजद अली और शांति समिति (Union Peace Committee) के चीफ सोयफ उद्दीन मास्टर (Soyef Uddin Master) ने बुरुंगा और आसपास के गाँवों में घोषणा करवा दी कि अगले दिन (26 मई) को बुरुंगा हाईस्कूल में एक शांति समिति का गठन किया जाएगा। पीस कमेटी की तरफ से ग्रामीणों को पहचान पत्र दिया जाएगा। जिन लोगों के पास यह पहचान पत्र उपलब्ध होगा, उन्हें पाकिस्तानी फौज नुकसान नहीं पहुँचाएगी। पहचान पत्र धारकों को कहीं भी आने जाने की स्वतंत्रता होगी।
यूनियन के चेयरमैन इंजद अली और पीस कमेटी के सदस्यों के आश्वासन पर 26 मई की सुबह गाँव के हिंदू और मुस्लिम बुरुंगा हाईस्कूल पहुँचे। वहाँ ग्रामीणों ने समिति की बैठक में भाग लिया। सुबह के 8 बजने वाले थे और स्कूल पर करीब एक हजार लोग जमा हो चुके थे। पीस कमेटी के लोग ग्रामीणों की सूची तैयार करने लगे। सुबह के 9 बजे के करीब पास के करंसी गाँव के रजाकार के कमांडर अब्दुल अहद चौधरी और गाँव के ही डॉक्टर अब्दुल खलेक के साथ पाकिस्तानी फौज के बुरुंगा हाईस्कूल पहुँची।
पाकिस्तनी आर्मी ने पीस कमेटी के लोगों से सूची ले ली। उन्होंने गाँव के हर घर को छान मारा और जो लोग हाईस्कूल पर पीस कमेटी की मीटिंग में नहीं पहुँचे थे, उन्हें घरों से निकाल कर स्कूल के मैदान में ले जाया गया। रिपोर्ट के अनुसार, लोगों के चेहरे पर डर के भाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते थे। स्थानीय रजाकारों, पाकिस्तानी सेना और शांति समिति के सदस्यों ने सूची के अनुसार हिंदुओं और मुस्लिमों को अलग कर दिया।
हिंदुओं को स्कूल के ऑफिस में ले जाया गया और मुस्लिमों को एक क्लास रूम में बंद कर दिया गया। हिंदू और मुस्लिमों को कलमा पढ़ाया गया और उन्हें पाकिस्तान का राष्ट्रगान (National anthem) गाने को कहा गया। अब घड़ी में सुबह के 9.30 बज चुके थे। अब्दुल अहद चौधरी के साथ एक पाकिस्तानी फौजी ने लोगों से उनके पास मौजूद रुपए और आभूषण जमा कराने को कहा। इसके बाद ज्यादातर मुस्लिमों को छोड़ दिया गया। पाकिस्तानी सैनिकों ने गाँव के मुस्लिमों से ही नायलॉन की रस्सी मँगवाई और सभी हिंदुओं को एक साथ कसकर बाँधने को कहा। पाकिस्तानी सैनिकों के इस आदेश से घबराए निहत्थे और लाचार हिंदू चिल्लाने लगे।
रिपोर्टों के मुताबिक, स्कूल के शिक्षक प्रीति रंजन चौधरी भी बुरुंगा हाईस्कूल पर पीस कमेटी की मीटिंग में शामिल होने वाले थे, लेकिन स्कूल पहुँचने में उन्हें देर हो गई। प्रीति रंजन के अनुसार, जब वे स्कूल पहुँचे तो सभी हिंदुओं को एक ऑफिस में बंद देखा। पाकिस्तानी फौजियों ने प्रीति रंजन को देखते ही पकड़ लिया और ऑफिस रूम में ले गए। प्रीति रंजन बचने का रास्ता तलाश रहे थे। उन्हें रूम की एक टूटी खिड़की नजर आई। स्कूल शिक्षक ने किसी तरह खिड़की को थोड़ा और तोड़ा और बाहर कूद गया। उनके साथ रानू मालाकार समेत कुछ अन्य लोग भी भाग निकलने में कामयाब रहे।
जो भाग नहीं सके, उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने स्कूल के मैदान में खड़ा कर दिया। सभी के हाथ बँधे हुए थे। इसके बाद अचानक फायरिंग शुरू हो गई और लाशों का ढेर लग गया। इस नरसंहार में जिंदा बचे दूसरे शख्स श्रीनिवास चक्रवर्ती ने उस खौफनाक मंजर को याद करते हुए बताया कि बंधे हुए हिंदुओं पर पीछे से मशीनगन की गोलियाँ दागी गईं। कोई हिंदू बचा न रह जाए, इसके लिए सभी पर मिट्टी का तेल डालकर आग के हवाले कर दिया गया। चक्रवर्ती बताते हैं कि उनके बाएँ हाथ पर गोली लगी थी। गोली लगने के बाद वे जमीन पर गिर गए और मरने का नाटक करने लगे।
चक्रवर्ती बताते हैं कि पाकिस्तानी फौजियों को जाता देख कुछ घायल उठने लगे। कुछ देर बाद पाकिस्तानी सैनिक लौटे और घायलों पर दोबारा गोली चलाने लगे। इस दौरान प्रीति रंजन को भी पीठ में गोली लगी। हालाँकि, इसके बावजूद वे बच गए। नरसंहार में जिंदा बचे प्रीति रंजन कहते हैं कि कुछ देर बाद रोती-बिलखती आवाजें सुनी जाने लगीं।
कुछ घायल पानी के लिए तड़प रहे थे। प्रीति रंजन के पिता निकुंज बिहारी और कुछ लोगों ने मिलकर घायलों की मदद की और उन तक पानी पहुँचाया। इस घटना में निकुंज बिहारी खुद भी घायल हो गए थे। प्रीति रंजन ने इस नरसंहार में अपने पिता और भाई नीता रंजन चक्रवर्ती को भी खो दिया।
पाकिस्तानी सेना और रजाकारों ने सिलहट कोर्ट के बीमार वकील राम रंजन भट्टाचार्य को जान बचाने के लिए भागने को कहा। बीमार राम रंजन जैसे ही अपनी कुर्सी से उठे उन्हें गोली मार दी गई। अब्दुल अहद चौधरी और गाँव के ही डॉक्टर अब्दुल खलेक के नेतृत्व में स्थानीय रजाकारों ने पूरे गाँव में लूटपाट की और हिंदुओं के घरों को आग लगा दी। बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ी गई पूरी जंग में पाकिस्तान ने 30 लाख लोगों की हत्या की। इनमें कई सामूहिक नरसंहार शामिल थे।