दिल्ली की टाटा CSIR लैब ने भारत की सबसे सस्ती कोरोना टेस्ट किट विकसित की है। इसका नाम ‘फेलूदा’ रखा गया है। इससे मात्र 30 मिनट के भीतर संक्रमण का पता चल सकेगा।
CSIR और टाटा ग्रुप ने यह किट डॉ. देबोज्योति चक्रवर्ती और सौविक मैत्री के नेतृत्व में तैयार की है। इस टेस्ट की कीमत मात्र 500 रुपए बताई गई है। इतने कम दाम वाले इस टेस्ट किट के कर्मिशयल इस्तेमाल की अनुमति ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने दे दी है।
India’s first CRISPR Covid-19 test FELUDA, developed by @IGIBSocial and @TataGroup has been approved for use in India by @DCGI. Congratulations to the entire team! @PMOIndia @drharshvardhan @PrinSciAdvGoI @shekhar_mande @ICMRDELHI @AnuragAgrawalMD @Debojyo04532898
— CSIR (@CSIR_IND) September 19, 2020
कंपनी ने कहा कि यह जाँच सटीक परिणाम देने में पारंपरिक RT-PCR टेस्ट के बराबर है। इसके अलावा यह सस्ता और कम समय में परिणाम देता है। इस प्रणाली का प्रयोग भविष्य में अन्य महामारियों के परीक्षण में भी किया जा सकेगा।
कंपनी ने बताया कि TATA CRISPR (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats ) टेस्ट CAS9 प्रोटीन का इस्तेमाल करने वाला विश्व का पहला ऐसा टेस्ट है, जो सफलतापूर्वक कोरोना महामारी फैलाने वाले वायरस की पहचान कर लेता है।
बता दें, इस किट के बारे में जानकारी CSIR के डीजी एस मांडे ने रविवार को दी। उन्होंने बताया कि दिल्ली स्थित CSIR लैब में CRISPR-Cas इम्युनिटी पर शोध किया जा रहा है। मांडे ने बताया कि रिसर्चर्स की टीम इस खास क्षेत्र में पहले से शोध कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि CSIR लैब ने ‘फेलूदा’ नाम से पेपर आधारित टेस्टिंग किट विकसित किया है। उन्हें इसके लिए डीजीसीए से औपचारिक स्वीकृति भी मिल चुकी है। मांडे ने बताया कि यह RT-PCR से काफी अलग है और सस्ता भी है।
उनके अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय के दावे में इस किट के लिए कहा गया है कि टाटा समूह ने CSIR-IGIB और ICMR के साथ मिलकर ‘मेड इन इंडिया’ उत्पाद विकसित किया है, जो सुरक्षित, विश्वसनीय, सस्ती और सुलभ है।
टाटा मेडिकल एंड डायग्नॉस्टिक लिमिटिड के सीईओ गिरीश कृष्णमूर्ति, ने इस संबंध में कहा, “COVID-19 के लिए Tata CRISPR टेस्ट के लिए स्वीकृति वैश्विक महामारी से लड़ने में देश के प्रयासों को बढ़ावा देगी। Tata CRISPR टेस्ट का व्यावसायीकरण देश में जबरदस्त R&D प्रतिभा को दर्शाता है, जो वैश्विक स्वास्थ्य सेवा और वैज्ञानिक अनुसंधान जगत में भारत के योगदान को बदलने में सहयोग कर सकता है।”
टेस्ट का नाम फेलूदा कहाँ से पड़ा है?
‘फेलूदा’ नाम मशहूर लेखक और फिल्म डायरेक्टर सत्यजीत रे के काल्पनिक बंगाली जासूसी उपन्यास के एक कैरेक्टर फेलू ‘दा’ से प्रेरित है। मगर, तकनीकी रूप से बात करें तो फेलूदा FNCAS9 Editor Linked Uniform Detection Assay का शॉर्टफॉर्म है। यह स्वदेशी सीआरआईएसपीआर जीन-एडिटिंग टेक्नोलॉजी पर आधारित है। यह कोरोनावायरस SARS-CoV2 के जेनेटिक मटेरियल को पहचानता है और उसे ही टारगेट करता है।
कोरोना के पारंपरिक टेस्ट RT-PCR और फेलूदा में अंतर
वैसे तो फेलूदा आरटी-पीसीआर जितना ही सटीक है। मगर आरटी-पीसीआर टेस्ट को ही कोविड-19 के डायग्नोसिस में गोल्ड स्टैंडर्ड समझा जा रहा है। इनमें अंतर यह है कि फेलूदा के नतीजे जल्दी आते हैं। इसमें इस्तेमाल होने वाला डिवाइस सस्ता भी है। CSIR की मानें तो फेलूदा टेस्ट नोवल कोरोनावायरस की पहचान करने में 96% सेंसिटिव और 98% स्पेसिफिक रहा है।
फेलूदा टेस्ट प्रेग्नेंसी स्ट्रिप टेस्ट की तरह है यानी यदि संक्रमण होगा तो स्ट्रिप का कलर बदल जाएगा। इसका इस्तेमाल पैथ लैब में भी किया जा सकता है। डॉ. देबोज्योति चक्रवर्ती के मुताबिक Cas9 प्रोटीन को बारकोड किया गया है ताकि वह मरीज के जेनेटिक मटेरियल में कोरोनावायरस सीक्वेंस का पता लगा सकें।
इसके बाद Cas9-SARS-CoV2 कॉम्प्लेक्स को पेपर स्ट्रिप पर रखा जाता है, जहाँ दो लाइन (एक कंट्रोल, एक टेस्ट) बताती है कि मरीज को कोरोना है या नहीं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इसे करवाने में मात्र 500 रुपए का खर्चा आता है। वहीं पारंपरिक परीक्षण में व्यक्ति को 1,500 से 2,000 खर्च करने पड़ते हैं।