31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर का दो केंद्र-शासित प्रदेशों में बंटना इतिहास में एक बहुत बड़े बदलाव के रूप में दर्ज हो गया। भारतीय संविधान के वे सभी वाक्य अब हमेशा के लिए बदल गए हैं, जिनमें कहा जाता था, “यह कानून जम्मू-कश्मीर के अलावा अन्य राज्यों के लिए है”- यानी केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए सारे कानून अब जम्मू-कश्मीर में लागू होंगे। इसी के साथ भारतीय दंड संहिता की बजाय राज्य में लागू रणबीर दंड संहिता का भी अंत हो गया। इन्हीं बदलावों के बीच ‘रेडियो कश्मीर’ का नाम भी ‘ऑल इंडिया रेडियो’ हो गया है।
A day to remember Ministry of Information and Broadcasting employee Lassa Kaul, gunned down by militants in front of his house in 1990. He ignored threats not broadcast Indian programmes, and leave Srinagar. Died in the line of duty. Naman. https://t.co/ZFB5a4sty1
— Smita Prakash (@smitaprakash) October 31, 2019
हालाँकि रेडियो कश्मीर ‘जम्मू’ और रेडियो कश्मीर ‘श्रीनगर’ दोनों को ही ऑल इंडिया रेडियो के साथ जोड़ पहले ही दिया गया था, मगर इन दोनों ही स्टेशनों का नाम नहीं बदला गया था, क्योंकि इन्हीं के ज़रिए मुज़फ्फराबाद, पीओके से प्रसारित पाकिस्तानी प्रोपेगंडा को जवाब दिया जाता था।
इनके नाम बदलाव की इस घोषणा के बाद न्यूज़ एजेंसी एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के कर्मचारी लस्सा कौल के बारे में ट्वीट किया। बता दें कि कौल की हत्या का आरोप सूबे के जिहादी संगठन जेकेएलएफ यानी जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट पर है, जिसके आतंकियों ने उन्हें फरवरी 1990 को उन्हीं के घर के सामने गोली मार दी थी।
In peak of militancy, Kaul left his wife and daughter at a relative’s place in Ghaziabad. His son was at BITS, Pilani. After Kaul died, two of his DD colleagues were sent to Ghaziabad to bring his family to Delhi airport from where they’d be taken in a BSF plane to Srinagar +
— Rahul Pandita (@rahulpandita) April 4, 2019
13 फरवरी, 1990 की शाम करीब 7:15 बजे थे और दूरदर्शन कश्मीर के डायरेक्टर कौल अपने बीमार माता-पिता के पास उनसे मिलने जा रहे थे। जैसे ही घर के बाहर उन्होंने अपनी गाड़ी का दरवाज़ा खोला, जेकेएलएफ के बंदूकधारियों ने उन्हे गोली मार दी। कौल के निर्देशन में दूरदर्शन कश्मीर जिहादियों की अलगाववादी हिंसा का आलोचक था और इसके लिए कौल को जेकेएलएफ़ वालों ने धमकी भी दे रखी थी।
पत्रकार राहुल पंडिता ने अपने ट्वीट्स में जेकेएलएफ द्वारा उनकी हत्या के घटनाक्रम को याद करते हुए उनकी एक तस्वीर शेयर की। कौल की हत्या का मुख्य आरोपित सरगना बिट्टा कराटे है, जो फ़िलहाल जेकेएलएफ़ का मुखिया है और उसे ‘पंडितों का कसाई’ कहा जाता है।
In peak of militancy, Kaul left his wife and daughter at a relative’s place in Ghaziabad. His son was at BITS, Pilani. After Kaul died, two of his DD colleagues were sent to Ghaziabad to bring his family to Delhi airport from where they’d be taken in a BSF plane to Srinagar +
— Rahul Pandita (@rahulpandita) April 4, 2019
अपने ट्वीट में राहुल ने बताया कि कश्मीर में उग्रवाद बढ़ने के वक़्त कौल पहले ही अपनी पत्नी और बेटी को ग़ाज़ियाबाद स्थित एक रिश्तेदार के घर छोड़ गए थे। कौल की हत्या के बाद उनके दो सहकर्मी उनके परिवार को तलाशते हुए श्रीनगर ले जाने के लिए आए मगर उनके पास कोई पता नहीं था। उनका पता तब चला जब पुलिस को एक घर से विलाप की खबर मिली।
कुछ लोगों का मानना है कि कौल के साथी भी उनकी हत्या की साजिश में मिले हुए थे। कहा यह भी जाता है कि उनकी खबरें उनके ही आसपास के लोगों ने आतंकियों तक पहुँचाईं थीं। अपने माँ-बाप की सात संतानों में से इकलौते जिंदा बचे ‘लस्सा’ के नाम का कश्मीरी में अर्थ होता है ‘लम्बी उम्र वाला’, मगर जेकेएलएफ़ ने उनके जीवन की डोर बहुत पहले ही काट दी।
And was named “Lassa”, Lassiv in Kashmiri means to stay alive blessed, but nobody knew that his life would be cut & snatched by the barbaric & leaving his old parents in such helpless conditions. Lassa Koul had worked hard to come up the ladder. His father was a peon in J&K Govt.
— RomeshNadir?? (@RomeshNadir) October 31, 2019