अडानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अडानी (Gautam Adani) ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और वे एक ही राज्य से आते हैं, इसलिए कुछ लोग उन पर पीएम मोदी की मेहरबानी का आरोप लगाते हैं। उन्होंने कहा कि उनके औद्योगिक सफर की शुरुआत तब हुई, जब कॉन्ग्रेस के नेता राजीव गाँधी (Rajiv Gandhi) प्रधानमंत्री थे।
गौतम अडानी ने कहा कि राजीव गाँधी की एक्जिम पॉलिसी के कारण उनका एक्सपोर्ट हाउस शुरू हुआ। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार के कारण उन्हें बहुत लाभ हुआ। उन्होंने बताया कि 1995 में जब गुजरात में केशुभाई पटले मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने मुंडरा पर पहला पोर्ट बनाया था। उन्होंने अपने औद्योगिक सफर को चार भागों में भाँटा है।
नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने को लेकर गौतम अडानी ने इंडिया टुडे को बताया कि उनके आने के साथ ही गुजरात में तेजी से विकास हुआ और उद्योग-धंधे लगे। उनकी नीतियों के कारण गुजरात के अविकसित क्षेत्रों का भी विकास हुआ। उससे उद्योग और रोज़गार का विकास हुआ तथा आर्थिक बदलाव आया।
उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ निराधार आरोप लगाए जाते हैं कि पीएम मोदी के कारण उनकी तरक्की हुई। उन्होंने बताया कि गौतम अडानी लोकतांत्रिक भारत की उपज हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हार मानना अडानी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि वे योजनाबद्ध तरीके से काम करते हैं और बिजनेस मॉडल के तहत कंपनी शुरू करते हैं।
उन्होंने बताया कि उनके सारे उद्योग-धंधे काबिल और पेशेवर लोग चलाते हैं। वह दिन-प्रतिदिन के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते। उनका काम सिर्फ दिशा दिखाना, पूँजी आवंटित करना और सभी के कामों की समीक्षा करना है। इसे ही उन्होंने अपनी सफलता का मंत्र बताया। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें नए उद्योग-धंधे लगाने के लिए सोचने के बारे में समय मिल जाता है।
बता दें कि गौतम अडानी दुनिया के दुनिया के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति हैं। फोर्ब्स मैगजीन के अनुसार, उनका कुल नेटवर्थ 125.8 अरब डॉलर (करीब 10,410 अरब रुपए) है। वह भारत में आधारभूत ढाँचा के विकास के क्षेत्र के सबसे बड़े उद्योगपति माने जाते हैं। गौतम अडानी को यहाँ तक पहुँचने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े हैं।
60 वर्षीय गौतम अडानी 16 साल की उम्र में कारोबार में हाथ आजमाने के लिए सन 1978 में मुंबई आ गए थे। यहाँ उन्होंने हीरे का कारोबार शुरू किया। इस काम वे लंबे समय तक नहीं कर पाए और तीन साल बाद यानी 1981 में वे गुजरात वापस लौट गए। वहाँ उन्होंने अपने बड़े भाई की प्लास्टिक फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने आगे का रास्ता तय करना शुरू कर दिया।