पत्रकार सास्वत पाणग्रही ने वामपंथी उड़िया कवियों के बीच चल रहे उस ट्रेंड की तरफ ध्यान दिलाया, जो कि काफी तकलीफदेह और विचलित करने वाली है। इन कवियों में से कई कवि तो राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार विजेता हैं। ये तथाकथित ‘बुद्धिजीवी’ कई कविताओं और बयानों में खुलेआम हिन्दूफोबिया का प्रचार कर रहे हैं साथ ही हिंदू देवी-देवताओं के अपमान का अभियान भी चला रहे हैं।
राम नवमी पर अपने एक फेसबुक पोस्ट में, हिन्दूफोबिया से ग्रसित साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता उड़िया वामपंथी कवि राजेंद्र किशोर पांडा ने माँ सीता पर लिखा था, “अशोक वाटिका में, आप रावण द्वारा बलात्कार किए जाने की इच्छुक थीं, और फिर भी आपने अग्नि परीक्षा को आसानी से पूरा कर लिया। आप पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।”
एक अन्य कवि प्रदीप कुमार पांडा ने ‘रामनवमी’ नामक एक कविता लिखी। इसमें बड़ी ही धूर्तता से पोर्न, अस्पृश्यता और शिक्षा की कमी का उपयोग करते हुए कविता में हिंदू देवी के नाम में महिलाओं के यौन शोषण और वस्तुकरण को दर्शाया गया है। बता दें कि ये एक ऐसा विषय है, जो अक्सर वामपंथियों द्वारा अपनी रचनाओं को ‘बौद्धिक’ रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
प्रदीप कुमार पांडा की कविता का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सीता, तुम स्कूल में मेरी सहपाठी हो सकती थी, लेकिन अफसोस, ऐसा कभी नहीं हुआ। इसलिए नहीं कि आप तीन स्वस्थ बेटों और चार सुंदर बेटियों की माँ थीं, बल्कि इसलिए क्योंकि पुराणों में स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी। और इस सत्य की वजह से गाँव में बचे हुए भोजन, मृत पिल्लों और गंदे लंगोटों को इकट्ठा करना तुम्हारा (सीता का) काम था।”
कविता में आगे कहा गया है, “गाँव के कुछ कुत्ते हमेशा गाँव के बाहर सीता की कुटिया के बाहर उसको फॉलो करते हैं। वो सीता के पीछे वासना के लिए नहीं जाते थे। वो तो सीता के पीछे इसलिए जाते थे, क्योंकि वो अपने सिर पर बचे हुए भोजन का बर्तन अपने सिर पर रखी होती थी।”
ऐसी ही एक अन्य ‘बुद्धिजीवी’ कवि सुभाश्री सुभाष्मिता मिश्रा अपनी कविता में लिखती हैं, “वह एक वेश्या का जीवन जीती है। राम जैसे स्वार्थी पति के लिए, जो अपने अच्छे चरित्र के प्रमाण के रूप में उससे अग्नि परीक्ष की माँग करता है। वह चिता पर चढ़ जाती है और मुस्कुराते हुए दुनिया की ओर देखती है, उसका मजाक उड़ाती है। वह एक वेश्या का जीवन जीती है, अपने पति की सेवा करती है, उसके लिए बच्चों को पालती है, उनका पालन-पोषण करती है और आधी रात में कविताएँ लिखती है। हाँ, वह वास्तव में एक वेश्या का जीवन जीती है।”
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कवि प्रदीप पांडा की तथाकथित कविता के बाद सोशल मीडिया पर कुछ प्रतिक्रियाएँ भी मिलीं। एक अन्य कवि केदार मिश्रा ने इसका समर्थन किया और आलोचकों से पूछा, “क्या कवि आपकी राजनीतिक भावनाओं के ठेकेदार हैं?” उन्होंने आगे कहा, “आपकी राजनीतिक भावनाएँ वाल्मीकि या व्यास पर आधारित नहीं हैं। आपके राम और सीता राजनीति और टीवी धारावाहिकों के पात्र हैं। रामायण के विभिन्न रुपांतरणों में राम और सीता के पात्रों में कई विविधताएँ हैं।”
इसके बाद फिर केदार मिश्रा ‘बौद्धिक’ दलील देते हैं। उनका दावा है कि वाल्मीकि की सीता और बलराम दास, भानजा की सीता अलग-अलग हैं। हालाँकि, मिश्रा यह साबित करने में विफल रहे कि न तो बलराम दास और न ही उपेंद्र भानजा ने कभी सीता के चरित्र का हनन या अनादर करने की कोशिश की है। उनकी साहित्यिक कृतियाँ उड़िया घरों में प्रतिष्ठित हैं और रामायण की कहानियों के सरल, काव्यात्मक और भावनात्मक चित्रण के कारण उड़िया जीवन शैली का हिस्सा हैं। उन्होंने दावा किया कि कविताएँ रूपक हैं और चित्रण महाकाव्यों की विभिन्न व्याख्याओं पर आधारित हैं।
सास्वत पाणिग्रही ने बताया कि उन्होंने इन कवियों को इसी तरह अन्य धर्मों के रुपकों पर इसी तरह की व्याख्या करने की चुनौती दी थी। जिसके बाद उन्हें ब्लॉक कर दिया गया। उन्होंने आगे बताया है कि हिन्दूफोबिया से ग्रसित धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए कवियों राजेंद्र किशोर पांडा और सुभाश्री सुभाष्मिता मिश्रा के खिलाफ पुलिस शिकायतें दर्ज की गई हैं।
उल्लेखनीय है कि रक्षा विश्लेषक अभिजीत अय्यर मित्रा को नवीन पटनायक सरकार द्वारा 2018 में धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए 40 दिनों के लिए जेल में रखा गया था, जब उन्होंने कोणार्क सूर्य मंदिर में कामुक पोज में मूर्तियों का मजाक उड़ाया था।