सतीश भंडारी की 10 मई 1993 को आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। वे हिंदू रक्षा समिति के जम्मू-कश्मीर राज्य के महासचिव थे। उनके कारण किश्तवाड़ में आतंकी पैरा नहीं जमा पा रहे थे।
यह वह दौर था जब राज्य में हिंदुओं पर इस्लामिक आतंकियों के अत्याचार चरम पर थे। इसके कारण लाखों की संख्या में घाटी से रात के अँधेरे में अपना सब कुछ छोड़ कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़ा था।
90 के दशक की शुरुआत में इस्लामिक आतंकियों ने घाटी से कश्मीरी हिंदुओं को भगाने के बाद किश्तवाड़ में भी पैर फैलाने की कोशिश की। लेकिन सतीश भंडारी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने इन आतंकियों का जमकर मुक़ाबला किया और किश्तवाड़ में आतंक के पैर नहीं जमने दिए। pic.twitter.com/MU1zzo3pxX
— Jammu-Kashmir Now (@JammuKashmirNow) May 10, 2020
90 के दशक में पाकिस्तान के खुले समर्थन और अलगाववादियों की मदद से आतंकी रोज-रोज नए षड्यंत्र रच रहे थे। डोडा और उधमपुर के पहाड़ी इलाकों में आतंकियों ने अपना खूनी खेल शुरू कर दिया था। राज्य सरकार की गलत नीतियों के कारण आतंकवादियों के हौसले बुलंद थे।
सरकार की गलत नीतियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहले आतंकी संगठन में शामिल होते, फिर ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान के लिए जाते, वापस आकर जम्मू-कश्मीर में खून बहाते और पकड़े जाने पर हथियारों के साथ सरकार के सामने समर्पण कर देते। इसके बाद सरकारी मदद से जिंदगी भर ऐश आराम करते, क्योंकि समर्पण के बाद आतंकियों को खाना फ्री और रहना भी फ्री था।
नीतियों से व्यथित होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसका मुकाबला करने का निर्णय लिया। इसके लिए आरएसएस ने अपने संहयोगी संगठनो के साथ मिलकर राज्य में ‘संगठित हिंदू जागरण अभियान’ छेड़ दिया।
संघ द्वारा चलाए गए डोडा बचाओ अभियान से आतंकी इतना विचलित हो गए कि उन्होंने हिंदू रक्षा समिति के महासचिव सतीश भंडारी को अपने निशाने पर ले लिया। 10 मई 1993 को आतंकियों ने किश्तवाड़ के गुहड़ी चौक पर सरेआम गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद इलाके में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई। इसका फायदा उठाकर सैकड़ों दुकानों को में लूटपाट के बाद उनको आग के हवाले कर दिया गया। इसे देखते हुए सरकार को कर्फ्यू लगाना पड़ा।
इस अभियान के तहत कई देशभक्तों ने भारत माता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इसमें आतंकियों से लोहा लेते हुए बीजेपी नेता संतोष ठाकुर, भद्रवाह के संघ कार्यकर्ता स्वामी राज काटल, सुभाष सेन और रुचिर कुमार वीरगति को प्राप्त हो गए, लेकिन अपने जीते जी किश्तवाड़ इलाके में आतंकियों को अपने पैर नहीं जमने दिए। इसके बाद से ही उनकी शहादत पर किश्तवाड़ में हर साल एक कार्यक्रम आयोजित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
आपको बता दें कि आतंकियों ने सतीश भंडारी की हत्या करने के बाद 14 अगस्त 1993 को डोडा जिले के किश्तवाड़ा इलाके में सरथल सड़क पर जा रही यात्रियों से भरी बस को अपना निशाना बनाया था। नकाबपोश आतंकियों ने बस में बैठे 16 हिंदुओं को दिनदहाड़े गोलियों से भून डाला था। इसके बाद डोडा के कुलहांड और उधमपुर के बंसतगढ़ इलाकों में भी इस तरह के नरसंहार किए गए।