Sunday, November 17, 2024
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ट्विटर पर ₹50 लाख जुर्माना, केंद्र सरकार के कहने पर भी नहीं हटाए थे ट्वीट: हाई कोर्ट ने कहा- आप किसान नहीं जो कानून नहीं पता हो

न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा कि वह केंद्र सरकार के रुख से सहमत हैं कि उसके पास न केवल ट्वीट्स को ब्लॉक करने की शक्ति है, बल्कि वह खातों को भी ब्लॉक कर सकती है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की व्यापक दलीलें सुनने के बाद 21 अप्रैल को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार (30 जून 2023) को ट्विटर (Twitter) द्वारा फरवरी 2021 और 2022 के बीच केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया और उस पर जुर्माना लगाया है। इस दौरान केंद्र ने सोशल मीडिया कंपनी को दस आदेशों में 39 यूआरएल को हटाने का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर पर 50 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है और इसे 45 दिन के भीतर जमा करने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि अगर कंपनी निश्चित अवधि में जुर्माना कर्नाटक राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को नहीं करती है तो उसे प्रतिदिन 5,000 रुपए का फाइन देना होगा।

जस्टिस दीक्षित ने अपने फैसले में कहा कि कंपनी ने समय पर ब्लॉक करने की केंद्र सरकार के निर्देश का पालन नहीं किया और ना ही उसका कारण बताया। कोर्ट ने कहा कि ट्विटर किसान या कानून से अपरिचित कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है, बल्कि एक अरबपति कंपनी है।

न्यायाधीश ने कहा कि फैसले में लगभग आठ सवालों पर चर्चा की गई। इनमें ये शामिल था कि क्या उस ट्विटर यूजर को कारण बताया जाना चाहिए जिसके ट्वीट को ब्लॉक किया गया है और क्या ट्वीट को ब्लॉक करना एक अवधि के लिए होना चाहिए या क्या ट्वीट को अनिश्चित काल के लिए ब्लॉक किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा कि वह केंद्र सरकार के रुख से सहमत हैं कि उसके पास न केवल ट्वीट्स को ब्लॉक करने की शक्ति है, बल्कि वह खातों को भी ब्लॉक कर सकती है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की व्यापक दलीलें सुनने के बाद 21 अप्रैल को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

उधर, कोर्ट में सोशल मीडिया साइट ट्विटर ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार को सोशल मीडिया खातों को ब्लॉक करने के लिए सामान्य आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है और आदेशों में कारण शामिल होने चाहिए, जिन्हें उपयोगकर्ताओं को सूचित किया जाना चाहिए।

इसके साथ ही ट्विटर ने यह भी कहा गया है कि अवरुद्ध करने का आदेश केवल उस स्थिति में जारी किया जा सकता है, जहाँ सामग्री की प्रकृति सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत निर्धारित आधारों के अनुरूप हो। यदि ऐसे अवरुद्ध आदेशों में कारण दर्ज नहीं किए गए थे तो वह बाद में उस कारण के निर्मित होने की संभावना होगी।

सोशल मीडिया दिग्गज ने आगे तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालयों का रिट क्षेत्राधिकार) का आह्वान संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन तक ही सीमित नहीं है। इसलिए ट्विटर पर अदालत का दरवाजा खटखटाने पर कोई रोक नहीं है।

दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि ट्विटर अपने यूजर की ओर से नहीं बोल सकता। इसलिए, उसके पास याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है। केंद्र ने यह भी कहा कि चूँकि ट्विटर एक विदेशी इकाई है और सरकार के दस अवरोधक आदेश मनमाने नहीं थे, इसलिए कंपनी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत मौलिक अधिकारों से पीछे नहीं हट सकती।

उच्च न्यायालय के समक्ष दायर अपनी याचिका में ट्विटर ने तर्क दिया कि अकाउंट ब्लॉकिंग एक असंगत उपाय है और संविधान के तहत यूजर के अधिकारों का उल्लंघन करता है। दरअसल, केंद्र सकार द्वारा निर्देशित कुल 1,474 खातों और 175 ट्वीट्स में से ट्विटर ने केवल 39 यूआरएल को ब्लॉक करने संबंधित निर्देश को चुनौती दी।

याचिका में कहा गया है कि विचाराधीन आदेश स्पष्ट रूप से मनमाने हैं, और प्रक्रियात्मक और मूल रूप से आईटी अधिनियम की धारा 69ए के अनुरूप नहीं हैं। ट्विटर ने यह भी तर्क दिया कि संपूर्ण खातों को ब्लॉक करने का निर्देश आईटी अधिनियम की धारा 69ए का उल्लंघन है।

केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि कुछ ट्विटर खातों को ब्लॉक करने के निर्देश राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित में और लिंचिंग और भीड़ हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए जारी किए गए थे। सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि वह अपने नागरिकों को खुला, सुरक्षित, विश्वसनीय और जवाबदेह इंटरनेट प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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