देवभूमि उत्तराखंड एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। चमोली जिले में ग्लेशियर फटने की वजह से तबाही हुई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ धौलीगंगा और अलकनंदा का जलस्तर बढ़ने की वजह से 100 से 150 लोग बह गए हैं। इस घटना ने ‘केदारनाथ की 2013 की त्रासदी’ की भयावह यादें ताज़ा कर दी। केदारनाथ में आई उस प्रलय में हज़ारों लोग काल-कवलित हो गए थे। कुछ खुशकिस्मत थे। लेकिन प्राकृतिक तबाही को मात देने के बावजूद उनकी आपबीती दिल दहला देने वाली हैं।
तमाम कहानियों में एक दर्दनाक कहानी है सहारनपुर निवासी सविता नागपाल की है, जो अपने पति सुरेन्द्र नागपाल के साथ केदारनाथ यात्रा पर गई थीं। जिस होटल में बुजुर्ग दंपत्ति रुके थे, आपदा की रात उसमें पानी भर गया। अपनी जान बचाने के लिए वह होटल से बाहर निकल कर सड़क पर आ गए लेकिन उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि आगे कितनी भीषण अनहोनी उनका इंतज़ार कर रही है। बाहर पानी का बहाव इतना तेज़ था कि मलबे की चपेट में आकर सुरेन्द्र नागपाल की मौत हो गई। सविता लगभग दो दिन तक अपने पति के शव के पास बिलखती पड़ी हुई थीं। जब तीसरे दिन उनका बेटा किसी तरह वहाँ पहुँचा, तब तक सुरेन्द्र नागपाल का अंतिम संस्कार हो गया था।
ऐसी ही एक घटना में राजस्थान के कल्याण सिंह ने अपनी पत्नी को खो दिया था। वह भी अपनी पत्नी के साथ यात्रा पर आए थे और होटल में ठहरे थे। रातों-रात होटल में पानी भरा जिसकी वजह से उनकी नींद खुल गई। अपनी जान बचने के लिए होटल की तीसरी मंजिल पर पहुँच गए, तभी उनकी पत्नी का हाथ छूटा और वह पानी में बह गईं। कुछ ही देर में उनके साथ मौजूद कई साथी भी पानी की तेज धारा में बह गए। कल्याण सिंह बताते हैं कि वह रात उनके जीवन की सबसे कठिन रात थी, जिसे वह शायद ही भुला पाएँ।
केदारनाथ मंदिर के पुजारी रविन्द्र भट्ट 16-17 जून 2013 को आई प्रलय के बारे में बताते हैं कि रात तक सब कुछ सामान्य था। रात 8 बजे तक किसी को न तो भनक थी और न ही कल्पना। अचानक 8:15 बजे मंदिर की चारों दिशाओं से पानी का सैलाब नज़र आया। जान बचाने के लिए कुछ यात्रियों ने मंदिर के भीतर शरण ली, रात भर लोग डर के साए में रहे काँपते रहे। 17 जून की सुबह लगभग 6 बजे एक बार फिर जल प्रलय आई और इस बार की जल प्रलय के बाद का दृश्य अविश्वसनीय था। पत्थरों, चट्टानों, और रास्तों पर सिर्फ शव नज़र आ रहे थे, उस नज़ारे से भयावह शायद ही कुछ और होता।
ऐसे ही राजस्थान के सीकर, चूरू और झुंझनू से लगभग 12 परिवार केदारनाथ धाम की यात्रा के लिए गए थे। केदारनाथ त्रासदी के बाद उनका पता ही नहीं चला, वह कभी अपने घरों की ओर नहीं लौटे। कोई होटल के मलबे में दबा तो कोई पानी की धार के साथ बह कर लापता हो गया।
बेशक उनसे जुड़े लोग आज भी इनकी राह देखते होंगे लेकिन सच यही है कि ऐसी आशाएँ अंतहीन हैं। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ केदारनाथ त्रासदी में 4500 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। लेकिन कथित तौर पर मौत का आँकड़ा कहीं ज़्यादा है।