मोदी सरकार अक्सर ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिम गवर्नेंस’ की बात करती है। यदि इस फलसफे पर अमल किया जाए तो किस तरह के बदलाव आ सकते हैं, इसका बेहतरीन नमूना बनकर प्रधानमंत्री आवास योजना उभरा है।
जून 2015 में जब इस योजना का ऐलान किया गया तो इसकी व्यावहारिकता पर कई तरह के सवाल उठाए गए थे। योजना के तहत 2022 तक सभी परिवार को घर मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन, इस योजना को सरकार जिस तेजी से आगे बढ़ा रही है उससे लगा रहा है कि शहरी क्षेत्र में 1.12 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य अगले साल ही पूरा हो जाएगा। योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 2.95 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य भी जद में दिख रहा है।
रीयल एस्टेट क्षेत्र के उद्योगपतियों के संगठन नेशनल रीयल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नारेडको) के 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन में बीते दिनों केन्द्रीय आवास एवं शहरी विकास राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, “इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने में कई तरह की चुनौतियॉं हैं। लेकिन उम्मीद है कि हर भारतीय को घर उपलब्ध कराने का सरकार का लक्ष्य दो साल पहले यानी 2020 में ही हासिल कर लिया जाएगा।”
पुरी के अनुसार इस साल के अंत तक एक करोड़ मकान तैयार हो जाएँगे। शेष 12 लाख घर अगले साल मार्च तक पूरा होने की उम्मीद है। योजना के तहत 1.4 लाख घर बनाने की मंजूरी सरकार ने बीते जुलाई में ही दी है।
जुलाई में ही सरकार ने लोकसभा में बताया था कि प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत कुल 83,68,861 आवास मंजूर किए गए हैं। इनमें से 48,37,466 आवास का निर्माण चल रहा है। 26,13,799 आवास बनकर तैयार हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) जो ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन चल रहा है के तहत 1,05,54,674 आवास अब तक मंजूर किए गए हैं। इनमें से 82,07,054 घर तैयार हो चुके हैं।
पुरी के मुताबिक शहरी क्षेत्र में तैयार मकानों की संख्या जल्द ही 75 लाख हो जाएगी। इस योजना के तहत अब तक 24 लाख परिवारों को घर दिए भी जा चुके हैं।
बीते साल दिसंबर में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अनुमान लगाया था कि शहरी क्षेत्रों में एक करोड़ आवास का लक्ष्य पूरा करने के लिए सरकार को 2022 तक 1500 अरब रुपए खर्च करना होगा। शहरी विकास मंत्रालय में
पीएमएवाई के संयुक्त सचिव अमृत भंजन ने नारेडको के ही कार्यक्रम में बताया कि इस योजना के लिए फंड की कोई कमी नहीं है। 5 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। उन्होंने बताया कि करीब छह लाख रुपए के हिसाब से 85 लाख घरों के लिए पैसा मंजूर किया गया है। इसमें से 52,000 करोड़ रुपए केन्द्र सरकार जारी भी कर चुकी है।
योजना के ऐलान के वक्त विशेषज्ञों ने कई और तरह की भी आशंकाएँ उठाई थी। मसलन, नई तकनीक का अभाव, शहरी क्षेत्र में जमीन की कमी, महॅंगी जमीन, संपत्ति एवं भू-स्वामित्व से जुड़े दस्तावेजों में समस्या वगैरह। आवासीय अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र की 2017 की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत को आवासीय क्षेत्र में मानव अधिकारों पर आधारित एक व्यापक और अधिक दूरदर्शी कानून की आवश्यकता है। ऐसा कानून जो असमानता को दूर करता हो और लंबे समय के लिये रोड मैप मुहैया कराता हो।
सरकार पर यह भी आरोप लगा था कि उसने पहले से चली आ रही इंदिरा आवास योजना पर ही नया मुलम्मा चढ़ाया है। लेकिन, 2014 की आधिकारिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार के दौरान आवास बनाने की सालाना दर 16.5 लाख आवास थी। बीजेपी सरकार के दौरान 2016 से 2018 के दौरान सालाना 18.6 लाख आवास तैयार किए गए।
बीते साल खुद प्रधानमंत्री ने बताया था कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के आखिरी चार सालों में 25 लाख घर निर्मित किए गए थे, जबकि 2014 से सरकार में आने के बाद उनकी सरकार ने 1.25 करोड़ घर लोगों के लिए बनवाए हैं।
जाहिर है, मोदी सरकार जिस तरीके से इस योजना का कार्यान्वयन कर रही है उसके कारण अपने बुनियादी लक्ष्य में आकर्षक दिखने वाली प्रधानमंत्री आवास योजना अब हकीकत में भी वैसी ही दिख रही।