एशिया के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी का ध्यान अब अपनी विरासत पर है। उन्होंने अपने उत्तराधिकार को लेकर फैसले पर विचार करना शुरू कर दिया है। संपत्ति और कारोबार को बच्चों के बीच कैसे बाँटा जाए, इसे लेकर वो दुनिया भर के तमाम फॉर्मूलों का अध्ययन कर रहे हैं। वॉल्टन से लेकर कोच परिवार तक का अध्ययन कर वो देख रहे हैं कि दुनिया के अरबपतियों ने कैसे अपने उत्तराधिकार बाँटे कि विवाद भी नहीं हुआ और ये न्यायसंगत भी रहा।
मुकेश अंबानी का साम्राज्य 208 बिलियन डॉलर (15.50 लाख करोड़ रुपए) का है, ऐसे में ज़रूरी है कि इसका बँटवारा अच्छे से किया जाए। धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद जिस तरह से मुकेश और अनिल अंबानी में कारोबार के बँटवारे को लेकर विवाद हुआ था, वो नहीं चाहते कि उनके बच्चे उसी अनुभव से गुजरें। इसीलिए, एक खास उम्र तक वो बँटवारा कर देना चाहते हैं। क्योंकि उत्तराधिकार के संघर्ष के कारण बड़े-बड़े कारोबार तबाह हुए हैं और कारोबारी परिवार अलग-थलग हुए हैं।
हालिया उदाहरणों को देखते हुए मुकेश अंबानी को वॉलमार्ट नामक कंपनी का संचालन करने वाली वॉल्टन परिवार का फॉर्मूला ज्यादा पसंद आया है। कहा जा रहा है कि मुकेश अंबानी अपने परिवार की संपत्तियों को एक ट्रस्ट की तरह संस्था बना कर संचालन का दायित्व देने की योजना पर काम कर रहे हैं, जो रिलायंस ग्रुप का भी प्रबंधन करेगी। ‘मिंट’ और ‘ब्लूमबर्ग’ ने सूत्रों के हवाले से ये खबर चलाई है। बता दें कि आधिकारिक रूप से कहीं से इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है।
मुकेश अंबानी की योजना है कि नई संस्था में उनके और उनकी पत्नी नीता अंबानी के अलावा उनके दोनों बेटे और एक बेटी, इन सभी के स्टेक्स होंगे। साथ ही इसमें मुकेश अंबानी के कुछ करीबी लोग भी शामिल होंगे, जो वर्षों से उनके सलाहकार हैं। हालाँकि, प्रबंधन और प्रतिदिन के कारोबार का कार्य बाहरी प्रोफेशनल लोग ही रहेंगे और परिवार का इसमें दखल कम रहेगा। रिलायंस का साम्राज्य आज रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल से लेकर टेलीकम्युनिकेशन, ई-कॉमर्स और ग्रीन एनर्जी तक फैला हुआ है।
एशिया के कई ऐसे अरबपति कारोबारी हैं, जो ढलती उम्र के कारण संपत्ति और कारोबार के बँटवारे की समस्या से जूझ रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इनमें से अधिकतर कारोबार खड़े हुए थे। फिर उनके परिवार ने इसे आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई। आज ऐसे अरबपति कारोबारियों की तीसरी-चौथी पीढ़ी तैयार हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि अंबानी परिवार कैसे अपनी संपत्ति व कारोबार का बँटवारा करता है, इस पर अन्य लोगों की भी नजर है। 94 बिलियन डॉलर (7 लाख करोड़ रुपए) की संपत्ति वाले मुकेश अंबानी ने फ़िलहाल कोई निर्णय नहीं लिया है।
विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोरोना महामारी के बाद कई अरबपति कारोबारी और चिंता में हैं कि आगे के लिए पहले से सोचना शुरू कर दिया जाए। उत्तराधिकार के बँटवारे के लिए क्लाइंट्स की संख्या अचानक से बढ़ गई है। हालाँकि, मुकेश अंबानी अब भी रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, लेकिन अब उनके बेटे-बेटी ऊपरी तौर पर ज्यादा दिखाई देते हैं। जून में शेयरधारकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने जता दिया था कि उनके 30 वर्षीय जुड़वाँ बेटे-बेटी आकाश और ईशा, और 26 वर्षीय अनत कंपनी में बड़ा किरदार अदा करने वाले हैं।
उन्होंने कहा था कि उन्हें आकाश, ईशा और अनंत के नेतृत्व में रिलायंस की समृद्ध विरासत को संभालने वाली अगली पीढ़ी को लेकर उन्हें कोई शक नहीं है। बता दें कि 1992 में वॉलमार्ट के संस्थापक सैम वॉल्टन के निधन के बाद वॉल्टन परिवार में संपत्ति और कारोबार का जिस तरह से बँटवारा हुआ, उससे मुकेश अंबानी खासे प्रेरित हैं। आज भी वॉलमार्ट समूह आसमान की ऊँचाइयाँ छू रहा है। ‘हर्म्स फैशन एम्पायर’ चलाने वाला डुमास परिवार और जॉनसन कंपनी चलाने वाला परिवार भी अपनी अगली पीढ़ी को आगे कर चुका है।
वॉल्टन परिवार ने इस सम्बन्ध में जो तरीका अपनाया था, उसके तहत सैम वॉल्टन ने अपने जीवित रहते ही 1988 में डेविड ग्लास को CEO बना दिया था। उससे पहले वही कंपनी के CEO हुआ करते थे। दुनिया के इस सबसे अमीर परिवार ने खुद को बोर्ड तक सीमित कर लिया और बाकी ऑपरेशन्स प्रोफेशनल्स संभालते रहे। वॉलमार्ट के बोर्ड में सैम के बेटे रॉब और भतीजे स्टुअर्ट को शामिल किया गया। साथ ही उनकी पोती के पति ग्रेग पेनर को 2015 में अरकांसस स्थित कंपनी बेंटोनविल्ले का चेयरमैन बनाया गया।
हालाँकि, इसके लिए इस परिवार की आलोचना भी हुई थी कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल आकर के वो शेयरधारकों से ऊपर खुद ही सारे पद ले रहे हैं। लेकिन, इस परिवार के कई अन्य सदस्यों को वॉलमार्ट से अलग फिलैंथ्रॉपी और अन्य कंपनियों में पद दिए गए। उन्हें निवेश की जिम्मेदारी सौंपी गई। सैम ने अपने निधन से 40 वर्ष पूर्व 1953 में ही उत्तराधिकार की तैयारी शरू कर दी थी, जो उनके चार बेटों एलाइस, रॉब, जिम और जॉन में बँटी। अब भी ये परिवार वॉलमार्ट का 47% हिस्सा अपने पास रखे हुए है।
Mukesh Ambani eyes Walmart's Walton family for succession plan https://t.co/SHrxwqr555
— TOI Business (@TOIBusiness) November 23, 2021
इस परिवार का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि इतनी बड़ी कंपनी का आधा हिस्सा अपने पास रखने का अर्थ है कि जिन मैनेजर्स को वो हायर करते हैं, वो जानते हैं कि असली सत्ता कहाँ पर है। हालाँकि, वॉलमार्ट कहता है कि वो स्वतंत्र विचारों को कंपनी में जगह देने को प्राथमिकता देता है। बता दें कि 2002 में रिलायंस भी इसी समस्या में फँसा हुआ था, जब धीरूभाई अंबानी का निधन हुआ। उस समय मुकेश चेयरमैन और अनिल वाईस चेयरमैन हुआ करते थे और साथ काम कर रहे थे।
लेकिन, इसके बाद कंपनी के विस्तार के दौरान दोनों भाइयों में नाराज़गी बढ़ती गई। एक को लगता था कि दूसरा बिना पर्याप्त विचार-विमर्श किए निर्णय ले रहा है। अनिल अंबानी ने जब एक पॉवर जनरेशन प्रोजेक्ट की घोषणा की तो मुकेश अंबानी नाराज़ हो गए क्योंकि उनसे इस सम्बन्ध में राय नहीं ली गई थी। जबकि अनिल की शिकायत थी कि निवेशकों की संस्था में मुकेश ने अपनी मनमानी चलाई। अनिल अंबानी ने एक बार रिलायंस के वित्तीय स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था।
उनके द्वारा चलाई जा रही सब्सिडियरी के डायरेक्टर्स ने उनके समर्थन में इस्तीफा तक दे डाला। शीरूभाई के निधन के 3 वर्ष बाद उनकी पत्नी और अंबानी भाइयों की माँ कोकिलाबेन को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। 2005 में हुए समझौते में अनिल को टेलीकम्युनिकेशंस, एसेट मैनेजमेंट, मनोरंजन और पॉवर जनरेशन वाला कारोबार मिला, जबकि मुकेश को रिफाइनिंग, पेट्रोकेमिकल्स, तेल-गैस और टेक्सटाइल्स का। विशेषज्ञ कहते हैं कि उत्तराधिकार के मामले में ये एक बेहद बुरा समझौता और अनुभव साबित हुआ।