Friday, November 15, 2024
Homeविविध विषयअन्यगर्ल्स-बॉयज टॉयलेट अलग-अलग क्यों? बच्चे होते हैं कंफ्यूज: NCERT ने जेंडर मुद्दे पर जारी...

गर्ल्स-बॉयज टॉयलेट अलग-अलग क्यों? बच्चे होते हैं कंफ्यूज: NCERT ने जेंडर मुद्दे पर जारी किया प्रोग्राम, जाति-पितृसत्ता को बनाया दोषी

ट्रेनिंग मैनुएल के अनुसार, “ढाँचागत सुविधा के रूप में टॉयलेट का इस्तेमाल बच्चों को दो लिंगों में बदलने के लिए किया जाता है। लड़कियों को इस तरह से समझाया जाता है कि वो गर्ल्स टॉयलेट में जाएँ और लड़कों को बताया जाता है कि वो लड़के वाले टॉयलेट में ही जाएँ।”

नेशनल काउंसिल ऑफ एड्युकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने शिक्षकों के लिए एक नया प्रोग्राम शुरू किया है। इसका नाम ‘स्कूली शिक्षा में ट्रांसजेंडर बच्चों को शामिल करना: चिताएँ और दिशा-निर्देश  (Inclusion of Transgender Children in School Education: Concerns and Roadmap’ है। इसके मैनुएल में जेंडर संबंधी मुद्दों को परिभाषित किया गया है और इसमें वो चिह्न भी बताए गए हैं जिससे पहचाना जा सके कि व्यक्ति किस स्वभाव का है।

प्रोग्राम को कॉर्डिनेट करने वाली डॉ पूनम अग्रवाल ने कहा कि संस्थाओं में ट्रांसजेंड़र बच्चों को शामिल करना उनके लिए जनादेश का हिस्सा है, इसलिए उन्होंने शिक्षकों और पढ़ाने वालों को ट्रांसजेंडर बच्चों के अनुभव, उनकी उपलब्धियाँ और संघर्ष समझाने के लिए इस कार्यक्रम को तैयार किया है। 

अब इसी प्रोग्राम के एक सेक्शन में एक बेहद अजीबोगरीब मुद्दा भी उठाया गया है। लिंग विविधता पर बात करते हुए इसमें कहा गया कि ज्यादातर स्कूलों में दो तरह के टॉयलेट होते हैं जिनका उद्देश्य ये बताना होता है कि दुनिया में सिर्फ दो सेक्स हैं- पुरुष और महिला। प्रोग्राम के दस्तावेज के अनुसार, “ढाँचागत सुविधा के रूप में टॉयलेट का इस्तेमाल बच्चों को दो लिंगों में बदलने के लिए किया जाता है। लड़कियों को इस तरह से समझाया जाता है कि वो गर्ल्स टॉयलेट में जाएँ और लड़कों को बताया जाता है कि वो लड़के वाले टॉयलेट में ही जाएँ।”

दस्तावेज में बताया गया है कि जो बच्चे जेंडर डिस्फोरिया से जूझ रहे होते हैं उन्हें समझ नहीं आता कि वो कौन सा शौचालय में जाएँ। अब ऐसा क्यों होता है इसका ठीकरा भी उन्होंने गर्ल्स-बॉयज टॉयलेट के अलग होने वाले कॉन्सेप्ट पर फोड़ा है। इसके मुताबिक ये दो-दो लिंगों वाला ढाँचा है जो उन बच्चों के लिए परेशानी खड़ी करता है जो कम उम्र में अपनी चॉइस नहीं बना पाते कि उनका शरीर क्या चाहता है। उनके ऊपर ये कॉन्सेप्ट भार जैसा होता है।

आगे इस दस्तावेज में जाति पितृसत्ता को भी ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होते भेद-भाव के लिए दोषी कहा गया है। इसमें कहा गया है कि वेदिक काल से ही भारत में विभिन्न लिंगों के लोग थे लेकिन जाति पितृसत्ता की सामाजिक व्यवस्था ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ऐसे व्यवसाय में ढकेला जो कि कलंकित माने जाते हैं। आगे बताया गया कि कैसे ब्रिटिश काल में ट्रांसजेंडर वर्ग की हालत और खराब हुई और उनके साथ वैसा बर्ताव आज भी हो रहा है।

दस्वावेज में कहा गया कि फरवरी 2020 में सिर्फ 25 ट्रांसजेंडर ही 10वीं और 12वीं कक्षा के लिए रजिस्टर करवा पाए। इनमें 19 बच्चों ने 10 वीं के लिए नामांकन किया और बाकी 6 ने 12वीं के लिए। आगे प्रोग्राम में ये इस बात पर जोर दिया गया कि स्कूल से ये बाइनरी प्रैक्टिस खत्म होनी चाहिए फिर चाहे बात क्लासरूम में रो (पंक्ति) डिवाइड करने की हो, अलग-अलग यूनिफॉर्म पहनाने की हो…इस प्रोग्राम के मुताबिक सब अभ्यासों को डिस्कन्टिन्यू किया जाना चाहिए और हर ग्रुप में हर बच्चा होना चाहिए और साथ ही उनकी एक ड्रेस होनी चाहिए। बता दें कि इस मैनुएल के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर इसका खूब विरोध हो रहा है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

जिनके पति का हुआ निधन, उनको कहा – मुस्लिम से निकाह करो, धर्मांतरण के लिए प्रोफेसर ने ही दी रेप की धमकी: जामिया में...

'कॉल फॉर जस्टिस' की रिपोर्ट में भेदभाव से जुड़े इन 27 मामलों में कई घटनाएँ गैर मुस्लिमों के धर्मांतरण या धर्मांतरण के लिए डाले गए दबाव से ही जुड़े हैं।

‘गालीबाज’ देवदत्त पटनायक का संस्कृति मंत्रालय वाला सेमिनार कैंसिल: पहले बनाया गया था मेहमान, विरोध के बाद पलटा फैसला

साहित्य अकादमी ने देवदत्त पटनायक को भारतीय पुराणों पर सेमिनार के उद्घाटन भाषण के लिए आमंत्रित किया था, जिसका महिलाओं को गालियाँ देने का लंबा अतीत रहा है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -