राजभाषा हिंदी को पटना उच्च न्यायालय में आखिरकार प्रवेश मिल ही गया है। अब पटना हाईकोर्ट में सुनवाई अंग्रेजी के अलावा हिंदी में दायर याचिकाओं पर भी हो सकेगी। यह निर्णय वकील इन्द्रदेव प्रसाद की याचिका की सुनवाई के बाद लिया गया। इस याचिका में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी के प्रचार और विकास की संवैधानिक हिदायत का हवाला दिया था।
अहम है न्यायिक उपयोग में हिंदी
मंगलवार को दिए गए इस फैसले में तीन न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने अपने आदेश में कहा कि पटना हाईकोर्ट के जज अब हिंदी में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर सकेंगे। मुख्य न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप शाही के अलावा आशुतोष कुमार और राजीव रंजन प्रसाद इस पीठ के अन्य सदस्य हैं। याचिका में पटना हाइकोर्ट के वकील इंद्रदेव प्रसाद ने संविधान के अनुच्छेद 351 को उद्धृत करते हुए यह इंगित किया कि हिंदी का प्रचार और विकास तभी होगा जब हाईकोर्ट में याचिकाएँ दायर करने में हिंदी का प्रयोग लागू किया जाए। सुनवाई में अदालत ने यह भी कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश हिंदी भाषी क्षेत्र हैं और अगर यहाँ भी हिंदी के साथ भेदभाव हुआ तो यह अन्याय होगा।
सचिवालय की अधिसूचना से हुआ था भ्रम
प्रसाद ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार के मंत्रिमंडल (राजभाषा) सचिवालय ने 9 मई, 1972 को एक जारी अधिसूचना में एक ओर जहाँ आपराधिक और फौजदारी मामलों में हाईकोर्ट में हिंदी के प्रयोग की बात कही, वहीं दूसरी ओर संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत इसके विरोधाभास में हाईकोर्ट के मामलों को अंग्रेजी में दायर करने की बात की गई है।
पूर्ण पीठ ने राज्य सरकार को 4 हफ्ते के भीतर अधिसूचना को संशोधित करने का आदेश दिया था। साथ में यह भी जोड़ा था कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो अधिसूचना रद्द भी हो सकती है।
ऐसा करने वाला पाँचवाँ हाईकोर्ट
इस आदेश के साथ ही पटना हाईकोर्ट हिंदी को अनुमति देने वाला पाँचवाँ उच्च न्यायालय बन गया है। इससे पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, इलाहाबाद और राजस्थान के हाइकोर्ट भी हिंदी के न्यायिक कार्यों में प्रयोग की अनुमति दे चुके हैं।