हम भले ही आधुनिक समाज की बात करते हों, नई-नई तकनीकों के आविष्कार का दंभ भरते हों, चाँद से आगे बढ़ कर मंगल पर बस्तियाँ बसाने का खाका तैयार करते हों, लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि पीरियड्स (माहवारी) को लेकर अभी भी खुलकर बात नहीं होती हैं। ऐसे समय में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी इंजीनियर अरुण गुप्ता ने महिलाओं के हाइजीन को लेकर पिंकिंश फाउंडेशन (Pinkishe Foundation) नामक मुहिम शुरू किया और देखते ही देखते 20 लाख महिलाएँ इससे लाभान्वित हुईं और आज भी हो रही हैं।
दरअसल हमारे देश के अधिकांश हिस्सों में पीरियड्स को अक्सर शर्मनाक या फिर छिपाने वाली चीज की तरह माना जाता हैं और जिन महिलाओं को माहवारी हो रही होती है, उनसे इसे छिपाने की उम्मीद की जाती है। जिसकी वजह से उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
लड़कियाँ इस बारे में बात करते समय काफी असहज महसूस करती हैं, खासकर अपने पिता या भाई से बात करने में, मगर 16 साल की ख्याति गुप्ता ने ऐसा नहीं किया। एक दिन ख्याति ने घर की नौकरानी के कपड़ों पर खून का धब्बा देखा और जब उन्होंने उससे सेनेटरी पैड के बारे में बात की, तो उसे इसकी कोई जानकारी ही नहीं थी। ख्याति यह जानकर काफी हैरान रह गई कि वह पीरियड्स के दौरान वह सेनेटरी पैड नहीं, बल्कि पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती है।
नैपकिन की सुविधा मिलने के बावजूद यह अपने आप में बेहद परेशान करने वाली घटना है और जिनको नैपकिन भी नसीब नहीं उनके पीरियड्स के दिनों की कल्पना तो खुद उन लड़कियों के लिए भी असंभव है जिन्हें पैड्स नसीब हैं। वैसे आपको बता दें कि ख्याति के घर में काम करने वाली नौकरानी ही नहीं, बल्कि आज भारत में पीरियड्स से गुजरने वाली लगभग 35 करोड़ से भी ज्यादा लड़कियाँ/स्त्रियाँ गाँवों में रहती हैं। इनमें से सिर्फ 12 प्रतिशत पैड्स का इस्तेमाल करती हैं। देश की लड़कियों/स्त्रियों का एक बड़ा प्रतिशत (तकरीबन 88%) ऐसा है जो पीरियड्स के दौरान कई-कई महीने एक ही कपड़े को धोकर इस्तेमाल करती हैं और जिन्होंने पैड्स देखे तक नहीं हैं। एक स्टडी के अनुसार 70 फीसदी महिलाएँ सेनेटरी पैड खरीदने में सक्षम नहीं हैं।
अब आते हैं पिंकिंश फाउंडेशन (Pinkishe Foundation) की शुरुआती सफर पर। अरुण गुप्ता बताते हैं कि पैड बैंक बनाने का आइडिया उनकी बेटी ख्याति गुप्ता ने दिया था। ख्याति को जब अपनी नौकरानी के बारे में पता चला तो उन्होंने इस बारे में अपने पिता से बात की। इसके बाद ख्याति ने अपनी पॉकेट मनी से उसके लिए सेनेटरी पैड खरीदने का फैसला किया। ख्याति ने अपने पापा को आइडिया दिया कि हाइजीन को लेकर ऐसी महिलाओं की मदद के लिए कुछ काम करना चाहिए और यहीं से शुरू होता है पिंकिंश फाउंडेशन का सफर।
17 साल तक निजी कंपनी में बतौर इंजीनियर की नौकरी करने के बाद अरुण गुप्ता ने अब खुद को इसी मुहिम के प्रति समर्पित कर दिया है। सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाकर महिलाओं को उससे जोड़ा। ऐसे सभी शहरों में ग्रुप बनते चले गए। इसके बाद पैडबैंक (PadBank) नामक परियोजना शुरू की गई। इसके अंतर्गत इसने दो लाख से अधिक लड़कियों को मासिक धर्म साक्षरता प्रदान की गई और 17 से ज्यादा राज्यों में 20 लाख से अधिक मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए हैं।
फाउंडेशन अभी भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स से पीरियड्स से जुड़ी परेशानियों को दूर कर रही है और जरूरतमंद महिलाओं को नि:शुल्क सेनेटरी पैड बाँट रही है। इसके जरिए फाउंडेशन महिलाओं एवं लड़कियों को मासिक धर्म के समय अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखने के तरीके बताए हैं। इस अभियान का उद्देश्य है जरूरतमंद महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सैनेटरी पैड की जरूरत पड़ने पर कमी न हो। जिन्हें जरूरतमंद महिलाओं में संस्था द्वारा नि:शुल्क पैड बाँटी जाती है।
2017 में सिर्फ दो लोगों से शुरू हुए इस अभियान के सदस्यों की संख्या अब दो लाख तक पहुँच चुुका है और देश में इसके तकरीबन 50 ब्रांच हैं। इस फाउंडेशन में काम करने वाली महिलाएँ आम महिलाएँ हैं जिन्होंने अपनी जैसी महिलाओं और लड़कियों के जीवन में बदलाव लाने का संकल्प लिया है। वे अपने घरों से काम करते हैं और स्वेच्छा से अपनी सेवाओं का योगदान करते हैं। खास बात यह है कि पिंकिश में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो सैलरी या किसी अन्य रूप में मुआवजा लेता हो। यह लोगों की नि:शुल्क सेवा करती हैं। हाल ही में फेसबुक ने कम्यूनिटी एक्सलरेटर प्रोग्राम के विजेता के रूप में 130 ग्रुप चुना था, जिसमें ‘पिंकिश’ भी एक था। इस प्रोग्राम के लिए 13000 फेसबुक ग्रुप ने अपना नामांकन किया था।
पिंकिश फाउंडेशन देशभर में मासिक धर्म के समय स्वच्छता के संदेश को हर महिला तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा है। पैड बैंक बनाकर शहर की आर्थिक रूप से सक्षम महिलाओं से पैड कलेक्ट करने का काम करता है। जिन्हें जरूरतमंद महिलाओं में बाँटा जाता है। हर शहर में मेन ऑफिस में पैड जमा होता है और फिर जरूरत के मुताबिक इलाकों में भेजे जाते हैं। इसके अलावा सहायक कार्यालय भी बने हैं, इससे पैड जमा करने में मदद मिलती है।
अरुण गुप्ता ने बताया कि दानदाता के विश्वास को बनाए रखने के लिए मोबाइल एप की भी मदद ली जाती है। इसमें बैंक में कितने पैड कलेक्ट व दान हुए और कितनी लड़कियों को फायदा मिला, इसकी जानकारी दानदाता के पास पहुँच जाती है। इसके साथ ही प्राप्तकर्ता हर महीने उनसे मदद लें, इसके लिए उसे आईडी कार्ड भी दिया जाता है। पिंकिश फाउंडेशन सवा लाख से भी अधिक महिलाओं का समूह है। संस्था देश के अन्य 50 से भी अधिक शहरों में महिलाओं और बच्चियों को सशक्त करने के लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से विकास कार्यों में आगे आकर मदद करती है। इस फाउंडेशन ने कोरोना काल में भी लोगों की काफी मदद की। इसने कम आय वर्ग के परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान की, जिन्होंने कोरोना के कारण परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य खो दिया था।