Sunday, November 17, 2024
Homeविविध विषयअन्यकोविड जैसा संकट आया, फिर भी गरीबी को सिंगल डिजिट में खींच लाई मोदी...

कोविड जैसा संकट आया, फिर भी गरीबी को सिंगल डिजिट में खींच लाई मोदी सरकार: NCAER ने रिसर्च में बताया- 12 साल में 12.7% घटी गरीबी की दर

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा जारी किए गए रिसर्च पेपर से ये जानकारी सामने आई है कि कोरोना महामारी जैसी चुनौती के बावजूद भारत में 12 साल में गरीबी 12 फीसद तक गिरी है।

भारत में गरीबी पर आपको कई प्रोपगेंडाबाज प्रोपगेंडा फैलाते दिखेंगे लेकिन अगर अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट देखेंगे तो पता चलेगा कि भारत में गरीबी बढ़ी नहीं बल्कि घटी है। हाल में नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा जारी किए गए रिसर्च पेपर से ये जानकारी सामने आई है कि कोरोना महामारी जैसी चुनौती के बावजूद भारत में 12 साल में गरीबी 12.7 फीसद तक गिरी है।

थिंक टैंक NCAER के सोनाल्डे देसाई के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों के एक पेपर (जिसका शीर्षक ‘बदलते समाज में सामाजिक सुरक्षा दायरा पर पुनर्विचार’ है) में गरीबी के आँकड़ों को लेकर यह अनुमान लगाया गया है। इस सर्वे में कहा गया है कि भारत में गरीबी अनुपात में तेजी से गिरावट आई है। 2011-12 में ये 21.2% थी और अब घटकर 8.5% हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में ये आँकड़ा 24.8 से 8.6 फीसद तक आया है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में गरीबी 13.4 फीसदी से घटकर 8.4 फीसदी तक।

इस रिसर्च के लिए शोधकर्ताओं ने इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे की वेव 3, वेव 2 और वेव 1 के डेटा को आधार बनाया। साथ ही बताया कि देश में भले ही सरकार से मिलने वाले लाभों के कारण ये बदलाव आया हो लेकिन ये बात भी ध्यान देने वाली है कि लोगों के जीवन में होने वाली घटनाएँ उन्हें फिर से गरीबी में ढकेल सकती है। सोनल डे देसाई अपनी रिपोर्ट में इस बात को बताती है कि इन 8.5 फीसद गरीबों में 3.2 फीसद जन्म से गरीब थे जबकि 5.3 फीसद जीवन में हुई किसी दुर्घटना के बाद गरीब बने।

रिसर्च में देश में हो रहे आर्थिक विकास और गरीबी में आई कमी जैसे मुद्दों पर बात की गई। दस्तावेज में कहा गया है कि इकनॉमिक ग्रोथ और गरीबी की स्थिति में कमी से एक गतिशील परिवेश पैदा होता है। इसके लिए कारगर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की जरूरत होती है। सामाजिक बदलाव की रफ्तार के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बनाए रखना भारत के लिए एक प्रमुख चुनौती होगी।

रिसर्च में इस्तेमाल किया गया पेपर

बता दें कि इससे पहले नीति आयोग के सीईओ बी वी आर सुब्रह्मण्यम ने कुछ महीने पहले भारत में गरीबी को लेकर अनुमान लगाते हुए कहा था कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि देश में गरीबी घटकर 5 फीसदी रह गई है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों के पास पैसे आ रहे हैं।

NCAER क्या है?

मौजूदा जानकारी के अनुसार, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च भारत का सबसे पुराना और सबसे बड़ा स्वतंत्र, गैर-लाभकारी, आर्थिक नीति अनुसंधान थिंक टैंक है। 1956 में नई दिल्ली में स्थापित, इसने अपनी स्थापना के कुछ दशकों के भीतर ही काफी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल कर ली। यह सरकारों और उद्योग के लिए अनुदान-वित्तपोषित अनुसंधान और कमीशन अध्ययन का कार्य करता है, और यह वैश्विक स्तर पर उन कुछ थिंक टैंकों में से एक है जो प्राथमिक डेटा भी एकत्र करते हैं।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘भगवा लव ट्रैप’ का प्रोपेगेंडा रचने वाले मौलाना नोमानी की खिदमत में शौहर संग पहुँची स्वरा भास्कर: लड़कियों के स्कूल जाने को बता चुका...

भाजपा को वोट देने वालों का हुक्का-पानी बंद करने की अपील करने वाले सज्जाद नोमानी से स्वरा भास्कर और उनके शौहर ने मुलाकात की।

कार्तिक पूजा कर रहे थे हिंदू, ‘ईशनिंदा’ का आरोप लगा इस्लामी कट्टरपंथियों ने बोला धावा: बंगाल में पत्थरबाजी-आगजनी, BJP ने साझा किया हिंसा का...

मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा कस्बे में शनिवार (16 नवंबर 2024) की शाम को उग्र इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने हिंदू समुदाय के घरों पर हमला कर दिया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -