Saturday, December 21, 2024
Homeविविध विषयअन्यपीठ पर गुदवाए पुलवामा बलिदानियों के नाम, किसी को बेटी की करनी थी शादी...

पीठ पर गुदवाए पुलवामा बलिदानियों के नाम, किसी को बेटी की करनी थी शादी तो कोई जन्मदिन मनाकर लौटा था… देश कर रहा नमन

भीलवाड़ा जिले के अगरपुरा गाँव के नारायण ने भी पुलवामा में बलिदान हुए 40 जवानों का नाम अपने शरीर पर गुदवाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने शरीर पर तिरंगे के साथ इन बलिदानियों का नाम लिखवाया

पुलवामा के बलिदानियों की पाँचवी बरसी पर आज (14 फरवरी 2024) हर देश भक्त बलिदानियों को याद कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन सभी वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की है जो देश की सेवा करते करते बलिदान हो गए। प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, “मैं पुलवामा में बलिदान हुए वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। हमारे राष्ट्र के लिए उनकी सेवा और बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।”

बता दें कि पुलवामा के बलिदानियों की बरसी पर हर साल इन्हें हर देशभक्त अपने ढंग से याद करता है। कोई इनके स्केच बनाता है, कोई इनके शौर्य को याद करता है। ऐसे ही एक राष्ट्रभक्त भीलवाड़ा के अगरपुरा गाँव के नारायण हैं। उन्होंने अनूठा अंदाज में पुलवामा बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। भीलवाड़ा जिले के अगरपुरा गाँव के नारायण ने पुलवामा में बलिदान हुए 40 जवानों का नाम अपने शरीर पर गुदवाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने शरीर पर तिरंगे के साथ इन बलिदानियों का नाम लिखवाया और ये भी लिखा- एक विचार विश्व बदल सकता है। नारायण ने अपने सीने पर भगत सिंह की फोटो भी गुदवाई है।

न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा-

“14 फरवरी 2019 को शाम को जब हमने यह खबर सुनी की जम्मू कश्मीर के पुलवामा अटैक में हमारे देश के करीब 40 जवान शहीद हो गए हैं। इसके बाद मुझे पूरी रात नींद नहीं आई। मैंने सोचा कि मैं हर एक बलिदानी के अंतिम संस्कार में जा सकूँ। 14 फरवरी को हर कोई व्यक्ति प्रेम का दिवस मनाता है लेकिन इस प्रेमी ने देश की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए अपनी जान तक परवाह नहीं की और खुशी-खुशी अपनी जान दे दी। देश के सैनिक से बड़ा प्रेमी कोई नहीं हो सकता है। मैंने निर्णय लिया कि मैं इन सभी 40 शहीदों का नाम अपने शरीर पर गुदवाउँगा। जब तक मैं जिंदा रहूँगा इन सभी देश प्रेमी और 40 जवानों के नाम मेरे शरीर पर जिंदा रहेंगे और उन्हें हमेशा याद करते रहेंगे की कैसे उन्होंने अपने देश के लिए जान दी है।”

नारायण कहते हैं- “आजकल हम फिल्मों में हीरो देखते हैं वह हीरो नहीं है असल जिंदगी में हीरो देश का सैनिक है जो हमारी रक्षा के लिए तन मन से हमेशा लगे रहते है और देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने के लिए एक बार भी नहीं सोचते है। देश के जवान ही असल जिंदगी में एक रियल हीरो हैं। वैलेंटाइन डे को इन देशभक्तों के नाम करना चाहिए क्योंकि यह इसके सच्चे काबिल है।”

बता दें कि पुलवामा हमले की बरसी पर पूरा देश बलिदान हुए वीर जवानों को याद कर रहा है। ऐसे में ऑपइंडिया आपके लिए लेकर आया है वीरगति को प्राप्त हुए जवानों की कुछ चुनिंदा कहानियाँ… जिन्हें पढ़ आपको भी शायद लगे कि नारायण जैसे लोग आखिर क्यों इन बलिदानियों को सच्चा हीरो बताते हैं।

जन्मदिन मनाकर लौटे नसीर अहमद

पुलवामा में बलिदान हुए नसीर अहमद फिदायीन हमले से एक दिन पहले ही अपना 46 वाँ जन्मदिन मनाकर ड्यूटी पर वापस लौटे थे। 22 साल सेना को दे चुके नसीर उस बस के कमांडर थे, जिसे आत्मघाती हमले में निशाना बनाया गया। नसीर का पार्थिव शरीर जब उनके गाँव पहुँचा तो दोदासन देशभक्ति के नारों से गूँज उठा था। वहाँ मौजूद हर शख्स के चेहरे पर आतंकियों को लेकर गुस्सा था। नसीर का बेटा बार-बार बस यही दोहरा रहा था कि पहले वो पापा की मौत का बदला लेगा फिर अपना जन्मदिन मनाएगा।

संजय ने खुद बढ़वाए थे नौकरी के 5 साल

पुलवामा में वीरगति को प्राप्त हुए संजय राजपूत 20 साल की सेवा पूरी करने के बाद भी देश के लिए अपनी सेवा को पाँच वर्ष के लिए आगे बढ़वाया था। मगर उन्हें क्या मालूम था उनका यह फ़ैसला उन्हें हमेशा के लिए परिवार से दूर कर देगा। संजय के दो बच्चे हैं, जिनकी उम्र 13 और 10 साल है। उनके परिवार में चार भाई और एक बहन हैं। एक भाई को पहले ही परिवार एक्सिडेंट में खो चुका है।

‘बेटे को करूँगी सेना को समर्पित’

अपने घर के इकलौते कमाने वाले नितिन राठौर 14 फरवरी को हुए आत्मघाती हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। महज 23 की उम्र में साल 2006 में सीआरपीएफ में शामिल होने वाले नितिन के घर में उनकी पत्नी वंदना, बेटा जीवन, बेटी जीविका माँ सावित्री बाई, पिता शिवाजी, भाई प्रवीण समेत दो बहनें हैं। नितिन के वीरगति के प्राप्त होने की ख़बर सुनने के बाद गाँव के लोगों ने अपने घरों में खाना नहीं बनाया। वहीं वीर की पत्नी ने हिम्मत दिखाते हुए कहा था कि वो अपने बेटे को भी सेना को समर्पित करेंगी क्योंकि यह उनके पति (नितिन) का सपना था।

वीर कुलविंदर की अंतिम यात्रा में पहुँचीं थी मंगेतर

कुलविंदर सिंह 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में आतंकियों के कायरतापूर्ण हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। कुलविंदर अपने माता-पिता के इकलौती संतान थे। कुलदीप की आठ नवंबर को शादी होनी तय थी। इस खबर को सुनकर उनकी मँगेतर अमनदीर कौर ससुराल आई और भारत माता के वीर सपूत की अंतिम यात्रा में शामिल हुई। उन्होंने वीरगति को प्राप्त अपने मंगेतर के पार्थिव शरीर को सैल्यूट ठोक शत्-शत् नमन किया। कुलविंदर सिंह के पिता दर्शन सिंह यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि उन्होंने अपने जवान बेटे को सदा के लिए खो दिया है। उन्होंने हमले वाले दिन से ही अपने बेटे की वर्दी पहन रखी थी। उनके इस जोश को देख कर अन्य लोग भी अभिभूत थे।

छिन गया सबसे छोटा बेटा

अश्वनी कुमार काछी भी पुलवामा में हुए हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। अश्वनी कुमार काछी परिवार के सबसे छोटे बेटे थे। चार भाइयों में सबसे छोटे अश्वनी की पहली पोस्टिंग साल 2017 में श्रीनगर में हुई थी। उनके बुज़ुर्ग पिता ने कहा कि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु पर गर्व है, लेकिन यक़ीन नहीं होता कि वो अब इस दुनिया में नहीं है। अश्वनी कुमार घर के एकमात्र कमाऊ पूत थे। अश्वनी की माँ अपने पाँचों बच्चों के भरण-पोषण के लिए बीड़ी बनाने का कार्य किया करती थी। जब अश्विनी की नौकरी लगी, तब उन्होंने अपनी माँ से बीड़ी बनाने वाला कार्य छुड़वा दिया था।

बेटी की शादी के लिए लड़का देखने जाने वाले थे संजय

पुलवामा आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त बिहार के संजय कुमार सिन्हा को अपनी बड़ी बेटी रूबी की शादी की फ़िक्र सता रही थी। वापस ड्यूटी पर जाते वक़्त उन्होंने घरवालों से दोबारा आने का वादा किया था। संजय ने कहा था कि वह घर लौटते ही बेटी के लिए लड़का देखने जाएँगे। घरवाले भी उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन जब उनके वीरगति को प्राप्त होने की सूचना मिली, पूरा परिवार ही स्तब्ध रह गया और गाँव में मातम पसर गया। जब उनकी मृत्यु का समाचार आया, तब उनकी पत्नी बबीता भोजन कर रही थी। यह दुःखद सूचना मिलते ही थाली उनके हाथों से गिर पड़ी और वह दहाड़ मार कर रोने लगी।

सालगिरह के दिन वीरगति को प्राप्त हुए थे तिलक राज

हिमाचल प्रदेश स्थित कांगड़ा के सीआरपीएफ जवान तिलक राज 14 फ़रवरी को पुलवामा हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। जिस दिन उन्होंने मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर किए, उसी दिन उनकी चौथी मैरिज एनिवर्सरी भी थी। जब तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा तिलक के परिजनों से मिलने पहुँचे, तब सावित्री ने उनसे कहा- ‘साहब, मुझे भी सीआरपीएफ की नौकरी दे दो।‘ एक माह से भी कम उम्र के बच्चे को अपनी गोद में लेकर बैठी सावित्री की आवाज़ में गज़ब की दृढ़ता थी।

सबको सिसकियाँ भरने के लिए छोड़ गए विजय

पुलवामा आतंकी हमले में जान गँवा बैठे जवानों में एक नाम देवरिया के सीआरपीएफ जवान विजय कुमार मौर्य का भी है। विजय के इस हमले में शिकार होने के बाद उनके कई रिश्ते ताउम्र सिसकियाँ भरने के लिए पीछे छूट गए। इस हमले में सिर्फ़ देश की सेना का एक जवान ही नहीं बलिदान हुआ बल्कि बुजुर्ग पिता ने विजय के रूप में अपने घर के सबसे होनहार बेटे को गवाँ दिया। उस पत्नी का सुहाग भी उजड़ गया जिसके पास विजय की तीन साल की मासूम बच्ची है, जो अभी अपने पिता को ढंग से जान भी नहीं पाई थी। इसके अलावा दो भतीजियों की आस भी टूट गई, जिनकी जिम्मेदारी उनके पिता की मौत के बाद विजय ने ही उठाई हुई थी।

गर्भवती पत्नी को अकेला छोड़ गए वीर रतन ठाकुर

14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए रतन ठाकुर अपनी गर्भवती पत्नी को अकेला छोड़कर चले गए थे। रतन के पिता निरंजन ने बताया कि दोपहर डेढ़ बजे रतन ने पत्नी राजनंदनी को फोन करके यह बताया था कि वो श्रीनगर जा रहे हैं और शाम तक वहाँ पहुँच जाएँगे। रतन ठाकुर ने अपनी पत्नी से होली पर आने का वादा किया था और इसी इंतज़ार में उनकी पत्नी के दिन कट रहे थे। बता दें कि रतन सिंह का चार साल का बेटा भी है जो कहता है कि उसके पिता ड्यूटी पर हैं। चार साल के इस बच्चे को हर पल अपने पिता का इंतज़ार रहता है।

4 दिन पहले ही ड्यूटी पर लौटे थे वीर अजीत कुमार

14 फरवरी को हुए आतंकी हमले में अजीत कुमार को उनके घरवालों ने हमेशा के लिए खो दिया। अजीत की उम्र मात्र 38 साल थी। चार दिन पहले ही अजीत अपनी छुट्टियाँ बिताकर ड्यूटी पर वापस लौटे थे। अजीत कुमार सीआरपीएफ की 115वीं बटालियन में तैनात थे। अजीत के वीरगति के प्राप्त होने की सुनने के बाद घर में कोहराम मच गया। अजीत के भाई रंजीत ने बताया कि एक महीने पहले ही उनके बड़े भाई अजीत छुट्टियों में घर आए थे, लेकिन 10 फरवरी को छुट्टी समाप्त होने पर वो जम्मू वापस लौट गए थे। किसे मालूम था कि अजीत के घरवालों की मुलाकात उनसे आखिरी है, इसके बाद वो तिरंगे में लिपट कर ही वापस आएँगे।

क्या हुआ था 14 फरवरी 2019 को और उसके बाद

गौरतलब है 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा (Pulwama Attack) में हुए भीषण आतंकी हमले में CRPF के 40 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। पुलवामा हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन संगठन जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammad) ने ली थी। इस हमले के 12 दिन बाद यानी 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में घुसकर एयर स्ट्राइक की थी। इस एयर स्ट्राइक में जैश-ए-मोहम्मद के 350 से अधिक आतंकी मारे गए थे।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘शायद शिव जी का भी खतना…’ : महादेव का अपमान करने वाले DU प्रोफेसर को अदालत से झटका, कोर्ट ने FIR रद्द करने से...

ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग को ले कर आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले एक प्रोफेसर को दिल्ली हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया है।

43 साल बाद भारत के प्रधानमंत्री ने कुवैत में रखा कदम: रामायण-महाभारत का अरबी अनुवाद करने वाले लेखक PM मोदी से मिले, 101 साल...

पीएम नरेन्द्र मोदी शनिवार को दो दिवसीय यात्रा पर कुवैत पहुँचे। यहाँ उन्होंने 101 वर्षीय पूर्व राजनयिक मंगल सेन हांडा से मुलाकात की।
- विज्ञापन -