13 साल का एक पारसी लड़का था। नाम था- पेस्तोंजी इदुल्जी दलाल (Pestonji Edulji Dalal)। इस महत्वाकांक्षी लड़के ने 13 साल की उम्र में ही बॉम्बे (अब के मुंबई) में 1888 में कॉफी एक दुकान खोली। अपने पुकारू नाम पॉली और अंग्रेजों की उच्चारण सुविधा का ख्याल रखते हुए दुकान का नाम दिया- पॉलसन।
बॉम्बे के अंग्रेज अफसरों के बीच दुकान जल्द ही फेमस हो गई। 1910 आते-आते अपने 35वें साल में पॉली की महत्वाकांक्षा और बढ़ गई। अंग्रेज अफसरों से बातचीत करते हुए उनके बटर की डिमांड पॉली को नया बिजनेस आइडिया दे गई। बॉम्बे से दूर गुजरात के काइरा में उसने एक डेयरी खोली। सिर्फ खोली नहीं, यह सुनिश्चित भी किया कि बॉम्बे के आर्मी और रेलवे वाले अंग्रेज कॉन्टैक्ट्स के जरिए वो यहाँ के प्रोडक्ट सप्लाई भी करे।
पॉलसन डेरी और बटर बिजनेस
1930 के बाद से पॉलसन डेरी ने इंडियन बटर बिजनेस पर एक तरह से राज किया। कोई कॉम्पिटिशन था ही नहीं। लेकिन यही पॉलसन डेरी की काल भी बनी। हुआ यह कि महत्वाकांक्षा में बिजनेस तो पॉलसन का खूब बढ़ा, लेकिन उसने दूध उत्पादकों का इस क्रम में दोहन बहुत किया।
1946 आते-आते गुजरात के काइरा में ही एंट्री होती है महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित एक किसान और सामाजिक कार्यकर्ता त्रिभुवनदास पटेल की और इसके साथ आते हैं सरदार पटेल भी। दूध उत्पादकों की समस्याओं से सरदार पटेल 1942 से ही अवगत थे और कॉपरेटिव सोसायटी को लेकर उनके अंदर आइडिया भी था, लेकिन यह फलीभूत हो पाया 14 दिसंबर 1946 को KDCMPUL (Kaira District Cooperative Milk Producer’s Union Limited) के रूप में।
पॉलसन डेरी के सामने KDCMPUL
त्रिभुवनदास पटेल और सरदार पटेल की जोड़ी ने पॉलसन डेरी के खिलाफ जो अभियान छेड़ा, वो सिर्फ 2 कॉपरेटिव सोसायटी और 247 लीटर दूध प्रतिदिन के साथ शुरू हुआ। बॉम्बे मिल्क स्कीम को यहाँ से दूध की डायरेक्ट सप्लाई की जाती थी। इनका बिजनस मॉडल सपाट था पॉलसन डेरी से कम कीमत पर दूध की सप्लाई, लेकिन दूध उत्पादकों को प्रति लीटर भुगतान पॉलसन डेरी से ज्यादा।
1948 आते-आते KDCMPUL से और भी दूध उत्पादक जुड़ते चले गए। 247 लीटर दूध से शुरू हुआ सफर अब 5000 लीटर प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता तक पहुँच गया था। लेकिन यही अब इसकी समस्या बनने जा रही थी। पॉलसन की मोनोपॉली को तोड़ने के लिए तकनीकी रूप से दक्ष किसी की जरूरत थी KDCMPUL को। यहीं पर सरदार पटेल को डॉ. वर्गीज कुरियन की याद आई। डेयरी इंजीनियरिंग कर विदेश से लौटे उस युवा की क्षमता से सरदार पटेल वाकिफ थे।
1949 में डॉ. वर्गीज कुरियन गुजरात के आनंद में एक सरकारी डेयरी में डेप्यूटेशन पर थे। वह यहाँ स्वेच्छा से नहीं थे। वह यहाँ इसलिए थे क्यों उनकी पढ़ाई में मिली सरकारी स्कॉलरशीप के बदले बॉण्ड के तहत उन्हें यहाँ सेवा देनी थी। इच्छा के विरुद्ध काम कर रहे डॉ. वर्गीज कुरियन को पटेल जोड़ी ने KDCMPUL में आग्रह कर बुलाया। उनके आने के बाद कॉपरेटिव सोसायटी को आगे बढ़ने और मार्केट शेयर का हिस्सा बनने के लिए जिस तकनीकी दक्षता की जरूरत थी, वो पूरी हुई। त्रिभुवनदास पटेल के साथ मिल कर प्रसार करते हुए उन्होंने खेड़ा जिले में भी कॉपरेटिव सोसायटी का गठन किया।
KDCMPUL से अमूल का सफर
पॉलसन जैसे डेरी के सबसे बड़े बिजनेस ब्रांड से लड़ने के लिए KDCMPUL (Kaira District Cooperative Milk Producer’s Union Limited) जैसे टेढ़े-मेढ़े-बड़े नाम को बदलना वक्त की जरूरत थी। 1950 में इस सोसायटी के जनरल मैनेजर बन चुके डॉ. वर्गीज कुरियन ने नाम बदलने के लिए खुद की सोच लोगों पर नहीं थोपी। बल्कि इसके उलट उन्होंने सभी कर्मचारियों और यहाँ तक की दूध उत्पादकों से भी नए नाम का आग्रह किया। क्वालिटी कंट्रोल सुपरवाइजर के पद पर काम कर रहे एक कर्मचारी ने नाम सुझाया- अमूल्य। यह संस्कृत से लिया गया था। इसी में थोड़ा बदलाव करते हुए और तब के संभ्रांत मार्केट को ध्यान में रखते हुए नाम पड़ा AMUL (Anand Milk Union Limited)
आनंद को जल्द से जल्द छोड़ कर जाने की इच्छा रखने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन अब AMUL से दिल लगा बैठे थे। डेयरी इंजीनियरिंग की उनकी डिग्री अब तक बस नाम मात्र की थी। नाम मात्र इसलिए क्योंकि उन पर जिम्मेदारी दूध उत्पादकों से दूध लेने और ग्राहकों तक उसे सही-सलामत पहुँचाने की ज्यादा थी। पॉलसन के मुकाबले के लिए कॉपरेटिव सोसायटी का प्रसार भी करना था। इसके लिए त्रिभुवनदास पटेल और डॉ. वर्गीज कुरियन ने 2-लेवल डिस्ट्रीब्यूशन चैनल डिजाइन किया।
पहले लेवल में दूध उत्पादकों से गाँव के ही कॉपरेटिव सोसायटी द्वारा दूध लेने, उसमें फैट लेवल की जाँच करने, मिलावट की रोकथाम करने आदि से लेकर उसे नजदीक के चिलिंग यूनिट तक पहुँचाने और वहाँ कुछ घंटे तक उसे ठंडा करने के बाद पाश्चुराइजेशन प्रोसेस के लिए पाश्चुराइजर यूनिट तक ले जाना शामिल था।
दूसरे लेवल के डिस्ट्रीब्यूशन चैनल में पाश्चुराइजेशन के बाद दूध की पैकेजिंग और कूलिंग के अलावे होलसेलर और डिस्ट्रिब्यूटर तक इसकी पहुँच से लेकर रिटेलर से होते हुए ग्राहक तक इसे सही-सलामत पहुँचाना शामिल था।
भैंस का दूध और डॉ. वर्गीज कुरियन की डेयरी इंजीनियरिंग
भैंस का दूध इससे पहले प्रयोग तो होता था लेकिन इसका बड़े स्तर पर बिजनेस नहीं हो पाता था। कारण था भैंस के दूध का पाउडर बनाने की तकनीक का नहीं होना। डॉ. वर्गीज कुरियन वो पहले इंसान थे, जिन्होंने इस समस्या का सबसे पहले हल खोजा। भैंस के दूध से पाउडर बनाने वाले डॉ. कुरियन दुनिया के पहले व्यक्ति थे। 1955 से पहले इसके लिए सिर्फ गाय के दूध का इस्तेमाल किया जाता था।
कैरा डेयरी में अक्टूबर 1955 में भैंस के दूध से पाउडर बनाने का प्लांट लगाया गया। यह AMUL की बहुत बड़ी सफलता थी। सफलता इस मायने में क्योंकि इससे पहले दूध उत्पादकों से जितना दूध लिया जाता था और पाश्चुराइजेशन के बाद जितना बिक पाता था, उसके अलावे बचा हुआ दूध बर्बाद हो जाता था, क्योंकि पाउडर बनाने की तकनीक (भैंस के दूध के लिए) थी ही नहीं। AMUL के लिए रेवेन्यू जेनरेशन में इस एक तकनीक ने गजब का रोल प्ले किया। 1960 आते-आते AMUL की सक्सेस स्टोरी छपने लगी थी। पॉलसन पीछे छूट चुका था।
ऑपरेशन फ्लड से श्वेत क्रांति (दुग्ध क्रांति)
1964 में AMUL ने अत्याधुनिक कैटल फीड प्लांट (जहाँ पशुओं का चारा तैयार किया जाता है) का निर्माण किया। इसके शुभारंभ के लिए तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को निमंत्रित किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने PM लाल बहादुर शास्त्री का कार्यक्रम सिर्फ एक दिन का तय किया था। उन्हें दिन में प्लांट का शुभारंभ कर शाम में दिल्ली लौट जाना था। लेकिन ऐसा हो न सका। कारण खुद PM शास्त्री थे।
कैटल फीड प्लांट का शुभारंभ करने के बाद PM लाल बहादुर शास्त्री ने आनंद में ही रुकने का फैसला किया। उन्होंने घूम-घूम कर न सिर्फ AMUL की कार्यशैली देखी, बल्कि जितने भी कॉपरेटिव सोसायटी थे, लगभग सभी में जा-जा कर, घूम-घूम कर यह समझा कि कैसे AMUL इनसे दूध लेता है, बाजार तक पहुँचाता है और बदले में उस क्षेत्र के दूध उत्पादकों को वित्तीय रूप से मजबूत बना रहा है।
सब कुछ समझने के बाद PM लाल बहादुर शास्त्री दिल्ली चले गए। 1965 में उन्होंने डॉ. वर्गीज कुरियन को याद किया। मकसद था AMUL से भी कुछ बड़ा करने का… इतना बड़ा, जितना किसी ने पूरी दुनिया में डेयरी के विकास के लिए सोचा भी न था! Billion-Litre-Idea के साथ PM लाल बहादुर शास्त्री ने राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (NDDB) का गठन किया। डॉक्टर कुरियन को इस बोर्ड का अध्यक्ष बनाया। लक्ष्य स्पष्ट था और एक ही था- अमूल मॉडल को पूरे देश में लागू करना, दूध उत्पादकों और किसानों को वित्तीय रूप से मजबूत बनाना।
NDDB शुरू तो हो गया। AMUL मॉडल को एक शहर आनंद से निकाल कर 700 शहरों में फैलाना था। PM शास्त्री का कद छोटा था लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति अटल थी। लेकिन पैसे कहाँ से और कैसे आएँगे? इसके पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। भारत तब लगभग गरीब देश था। NDDB ने वर्ल्ड बैंक से लोन का आग्रह किया। लेकिन एक शर्त रखी- लोन देने के नाम पर कोई शर्त या बंदिश नहीं होनी चाहिए। वर्ल्ड बैंक के प्रेसिंडेंट 1969 में इंडिया आए। डॉ. वर्गीज कुरियन ने उनसे कहा- “पैसे दीजिए और भूल जाइए।” आश्चर्य इस बात का कि डॉ. कुरियन की बातों से प्रभावित होकर प्रेसिंडेंट के इंडिया से लौटते ही NDDB को लोन दे दिया गया और शर्त रखी गई- एक भी शर्त नहीं।
इस तरह 1970 से शुरू हुआ ऑपरेशन फ्लड तीन चरणों में 1996 तक चला। आनंद से निकलकर AMUL मॉडल 94 लाख किसानों के बीच 73,300 डेयरी कॉपरेटिव (1996 तक) के रूप में पहुँच गया था। 1960 में मात्र 20 टन दूध का उत्पादन करने वाला भारत 2011 आते-आते 122000000 टन दूध का उत्पादन करने लगा था। दुनिया में कोई भी देश दूध उत्पादन में भारत से आगे नहीं (1,44,246 डेयरी कॉपरेटिव, साल 2012 तक) है।
दूध उत्पादकों की महत्वाकांक्षा ही मेरी महत्वाकांक्षा
सवाल उठता है कि क्या किसी इंसान की तकनीकी दक्षता ही काफी होती है, उसके संस्थान के सफल होने और रिकॉर्ड तोड़ रिजल्ट देने में? शायद नहीं। कम से कम यह एक अकेली चीज सफलता की गारंटी तो नहीं दे सकती। डॉ. वर्गीज कुरियन में लेकिन यह एक अकेली चीज नहीं थी। भैंस के दूध से सबसे पहले पाउडर बनाने वाले डॉ. वर्गीज को घमंड खा सकता था, लेकिन वो अपनी सफलता का श्रेय खुद के बजाय किसानों और दूध उत्पादकों को देते थे। अपनी सैलरी तक को वो किसानों की मेहनत का नतीजा बताते थे। यह वीडियो उनकी तकनीकी दक्षता से परे उनके व्यक्तित्व को बताती है, जिसने AMUL को दुनिया भर की डेरी का रोल मॉडल बना दिया।
बेटी के चलते जब दिया संस्थान से इस्तीफा
डॉ. वर्गीज कुरियन के एक बहुत करीबी दोस्त एब्रिल एसजे ने 2012 में BBN चैनल को एक इंटरव्यू दिया था। यह इंटरव्यू 11 सितंबर 2012 को दिया गया था… मतलब डॉ. वर्गीज की मृत्यु के ठीक 2 दिन बाद। एक तरह से यह श्रद्धांजलि था अपने दोस्त के लिए।
एब्रिल एसजे ने डॉ. वर्गीज कुरियन के बारे में वो बातें बताई थीं, जो अक्सर रिकॉर्ड और सफलता के नीचे दब जाती हैं। यह बातें थीं उनके व्यक्तित्व की, उनकी ईमानदारी की। एक बार का किस्सा सुनाते हुए एब्रिल एसजे ने बताया कि डॉ. वर्गीज कुरियन को अपने ही संस्थान से इस्तीफा देना पड़ गया था। कारण बनी थीं उनकी इकलौती बेटी। हुआ यह कि डॉ. वर्गीज की इकलौती बेटी ने AMUL की एक सब्सिडरी राष्ट्रीय सहकारी डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NCDFI) में जॉब के लिए अप्लाई किया, नौकरी भी मिल गई। लेकिन एक पेंच फँस गया। डॉ. वर्गीज कुरियन इसके चेयरमैन थे। जब उन्हें पता चला कि उनकी बेटी को NCDFI में नौकरी मिल गई है तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
चेयरमैन के इस्तीफा देने के बाद संस्थान में स्वभाविक खलबली मच गई। डॉ. वर्गीज कुरियन से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था- “जहाँ मेरी बेटी नौकरी करे, मैं ऐसे किसी संस्थान का चेयरमैन नहीं रह सकता। मेरे या मेरी बेटी के ऊपर पक्षपात के आरोप लगेंगे।” और हुआ यह कि उनकी बेटी को फाइनली इस्तीफा देना पड़ा और वो चेन्नई में नौकरी करने चली गईं।
26 नवंबर 1921 को कालीकट में पैदा हुए वर्गीज कुरियन ने गुजरात के आनंद को अपनी कर्मभूमि बनाई। AMUL को दुनिया भर में एक ब्रांड… और इस क्रम में भारत डेयरी उत्पादन का #1 देश बना और दूध उत्पादकों को मिला वित्तीय सहारा।